
छपरा विधानसभा में 63 साल से महिलाएं हाशिये पर, सुंदरी देवी के बाद किसी को नहीं मिला मौका
सारण जिले के छपरा विधानसभा क्षेत्र में महिलाओं को राजनीतिक नेतृत्व का अवसर बहुत कम मिला है। 1962 में कांग्रेस की सुंदरी देवी के विधायक बनने के बाद अभी तक कोई भी महिला इस क्षेत्र से निर्वाचित नहीं हो सकी है। राजनीतिक पार्टियां महिला कार्यकर्ताओं का उपयोग तो करती हैं, मगर जब टिकट देने की बात आती है, तो पुरुषों को ही प्राथमिकता दी जाती है। इसी वजह से यहां महिलाओं से जुड़े मुद्दे भी अक्सर दब जाते हैं। अब यह जरूरी हो गया है कि महिला सशक्तिकरण को केवल नारों में ही नहीं, बल्कि टिकट देने जैसी ठोस पहल में भी बदला जाए।
महिला कार्यकर्ताओं की मेहनत, टिकट से दूरी
छपरा में सभी राजनीतिक दलों में महिला कार्यकर्ताओं की अच्छी मौजूदगी है। प्रचार हो या संगठन की बैठकें, महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। पंचायत चुनावों में 50% आरक्षण मिलने के बाद पंचायत स्तर तक महिलाएं सत्ता व नेतृत्व तक पहुंची हैं। लेकिन जैसे ही विधानसभा चुनाव की बात आती है, समीकरण बदल जाते हैं और टिकट पुरुषों को ही थमाया जाता है। सभी दलों में महिला फ्रंट या विंग तो है, लेकिन टिकट देने में कोई पार्टी उन्हें प्राथमिकता नहीं देती।
दलों की रणनीति और दोहरा मापदंड
हर चुनाव से पहले राजनीतिक दल महिला सशक्तिकरण के नारे जरूर लगाते हैं। कांग्रेस ने 1962 में सुंदरी देवी को टिकट देकर इतिहास रचा, लेकिन उसके बाद महिला उम्मीदवार की कभी चर्चा नहीं की। राजद और जदयू में भी महिलाओं को संगठन में जोड़ने की बातें होती रहीं, लेकिन टिकट पुरुषों को ही दिया जाता है। भाजपा ने भी अब तक इस सीट पर केवल पुरुष उम्मीदवारों को ही उतारा है। यानी सभी को महिला कार्यकर्ताओं की मेहनत तो चाहिए, लेकिन निर्णायक भूमिका देने का साहस नहीं है।
असर महिलाओं के मुद्दों पर
महिला प्रतिनिधित्व की कमी का असर सीधे विधानसभा में दिखता है। महिलाओं से जुड़े शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, रोजगार जैसे मुद्दे चुनावी भाषणों में तो उठते हैं, लेकिन जीत के बाद प्राथमिकता में नहीं होते। पंचायत स्तर पर महिलाएं जब सत्ता में आई, तो निर्णयों में संवेदनशीलता और नये दृष्टिकोण दिखे, जो विधानसभा में अक्सर गायब है। विश्लेषकों का मानना है कि महिला विधायकों के आने से कई समस्याओं का समाधान अलग और बेहतर नजरिए से निकल सकता था।
वक्त की मांग: टिकट और भरोसा
अब समय है कि दल महिला सशक्तिकरण को नारों और महिला मोर्चे तक सीमित न रखें, बल्कि छपरा जैसी सीटों पर भी महिलाओं को टिकट देकर सही मायने में भरोसा दिखाएं। मतदाताओं को भी बदलाव की मांग करनी होगी और महिला प्रत्याशियों को समर्थन देना होगा। पंचायत की तर्ज पर विधानसभा चुनाव में भी महिला आरक्षण की जरूरत है।
सुंदरी देवी तक सिमटी कहानी
छपरा विधानसभा में महिला प्रतिनिधित्व केवल सुंदरी देवी के नाम तक सिमटा हुआ है। छह दशक का इंतजार बता रहा है कि दल चुनाव जीतने की रणनीति में महिलाओं को सिर्फ सहायक मानते हैं, नेतृत्व के योग्य नहीं। हालांकि इस बार कई महिला कार्यकर्ता चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। देखना है कि क्या पार्टियां उनकी दावेदारी को मौका देंगी या फिर एक बार और उन्हें हाशिये पर ही छोड़ दिया जाएगा।
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