
सरकारी ऑडिट में खुलासा: सीवर सफाई में मरने 90% श्रमिकों को नहीं मिले थे बेसिक सेफ्टी गियर
भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान होने वाली मौतों को लेकर हालिया सोशल ऑडिट ने एक बेहद चौंकाने वाली सच्चाई उजागर की है। रिपोर्ट के मुताबिक, इन खतरनाक परिस्थितियों में जान गंवाने वाले 90% से अधिक श्रमिकों को न तो कोई सुरक्षा उपकरण उपलब्ध था और न ही उन्हें प्रशिक्षण दिया गया था। यह तब है जब भारत में कानूनन बिना सुरक्षा उपायों के सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई करना पूरी तरह प्रतिबंधित है। संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने मंगलवार को इस ऑडिट रिपोर्ट को सार्वजनिक किया। यह ऑडिट केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय द्वारा सितंबर 2023 में शुरू किया गया था, जिसमें 2022 और 2023 के बीच आठ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 17 जिलों में हुई 54 मौतों की जांच की गई।
सीवर सफाई के दौरान 49 श्रमिकों के पास नहीं थे सुरक्षा उपकरण
रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से 49 श्रमिकों के पास कोई भी सुरक्षा उपकरण नहीं था, जबकि पांच के पास केवल दस्ताने थे। केवल एक श्रमिक को दस्तानों के साथ गमबूट भी उपलब्ध कराए गए थे। रिपोर्ट यह भी बताती है कि इन 54 में से 47 मामलों में न तो मशीनी उपकरण दिए गए और न ही सुरक्षा गियर। प्रशिक्षण की स्थिति और भी निराशाजनक रही—सिर्फ एक मामले में श्रमिक को आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त था। इतना ही नहीं, 45 मामलों में संबंधित एजेंसी के पास सुरक्षा या आपात स्थिति से निपटने के लिए कोई तैयारी नहीं थी। मौत के बाद जागरूकता अभियान भी सिर्फ सात मामलों में ही चलाए गए, वह भी आंशिक रूप से।
इन परिस्थितियों से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 'नमस्ते योजना' (नेशनल एक्शन फॉर मैकेनाइज्ड सैनिटेशन इकोसिस्टम) शुरू की है, जिसका उद्देश्य सीवर-सफाई को पूरी तरह मशीनीकृत करना है। इस योजना के तहत अब तक देश के 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लगभग 85 हजार सीवर श्रमिकों की पहचान की जा चुकी है। इनमें से आधे से अधिक को पीपीई किट और सुरक्षा उपकरण दिए गए हैं। खासतौर पर ओडिशा में यह प्रक्रिया अधिक प्रभावी रही, जहां सभी 1,295 चिन्हित श्रमिकों को सुरक्षा उपकरण प्रदान किए गए हैं। केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री वीरेंद्र कुमार के अनुसार, योजना के तहत अब तक 707 श्रमिकों को 20 करोड़ रुपये से अधिक की पूंजीगत सब्सिडी दी जा चुकी है और 1,000 से अधिक कार्यशालाएं आयोजित की गई हैं।
सेप्टिक टैंक सफाई में लगे 91.9% श्रमिक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति...
हालांकि, यह योजना अपनी जगह पर एक सकारात्मक पहल है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसे ज़मीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू करने और नियमित निगरानी की आवश्यकता है। समस्या की जड़ केवल तकनीकी नहीं, सामाजिक भी है। आंकड़े बताते हैं कि सीवर और सेप्टिक टैंक सफाई में लगे 91.9% श्रमिक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं—इसमें 68.9% एससी, 14.7% ओबीसी और 8.3% एसटी समुदाय से हैं।
यह केवल एक आकस्मिक आंकड़ा नहीं, बल्कि यह सामाजिक असमानता का प्रतिबिंब है, जहां जातिगत पहचान खतरनाक और अमानवीय कार्यों से जुड़ी हुई है। इस काम में लगे अधिकांश श्रमिक संविदा पर कार्यरत होते हैं, जिससे उन्हें कोई स्थायी लाभ जैसे चिकित्सा सुविधा, जीवन बीमा या सुरक्षा प्रशिक्षण नहीं मिल पाता।
भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग को 1993 में प्रतिबंधित किया गया था और 2013 में इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया। बावजूद इसके, कानूनों का पालन न होने के चलते हर साल सैकड़ों श्रमिक मौत के मुंह में चले जाते हैं। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि मैनुअल सफाई के दौरान जान गंवाने वाले श्रमिकों के परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए, जिसे 2023 में बढ़ाकर 30 लाख रुपये कर दिया गया। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि बहुत से मामलों में न तो समय पर मुआवजा दिया जाता है और न ही जिम्मेदार एजेंसियों या ठेकेदारों पर कोई कार्रवाई होती है।
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