
श्री बांके बिहारी कॉरिडोर पर सुप्रीम कोर्ट में टकराव, व्यक्ति बोला- मैं मंदिर का वंशज हूं
सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई है। यह याचिका उत्तर प्रदेश सरकार की 500 करोड़ रुपये की पुनर्विकास योजना पर पुनर्विचार की मांग करती है, जिसे पहले शीर्ष अदालत ने आंशिक रूप से मंजूरी दी थी। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने 22 मई को सुनवाई के लिए याचिका को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। यह याचिका मथुरा निवासी और मंदिर प्रबंधन से जुड़े देवेंद्र नाथ गोस्वामी ने दाखिल की थी। याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट अमित आनंद तिवारी ने कोर्ट में पक्ष रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई को उत्तर प्रदेश सरकार की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर के लिए पांच एकड़ भूमि अधिग्रहण की अनुमति दी थी। कोर्ट ने मंदिर की निधि का उपयोग केवल 'होल्डिंग एरिया' यानी भीड़ नियंत्रण क्षेत्र के निर्माण तक सीमित रखने का निर्देश दिया था।
देवेंद्र नाथ गोस्वामी द्वारा दाखिल याचिका में तर्क दिया गया है कि प्रस्तावित परियोजना न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि इससे मंदिर का पारंपरिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्वरूप भी प्रभावित हो सकता है। याचिका में यह भी कहा गया कि इस योजना को मंदिर के पारंपरिक प्रबंधन में शामिल लोगों की राय लिए बिना लागू करना प्रशासनिक अराजकता को जन्म दे सकता है।
एडवोकेट आशुतोष झा द्वारा दाखिल याचिका में दावा किया गया है कि देवेंद्र नाथ गोस्वामी श्री बांके बिहारी मंदिर के संस्थापक स्वामी हरिदास गोस्वामी के वंशज हैं, और उनका परिवार पिछले पांच सदियों से मंदिर के दैनिक धार्मिक एवं प्रशासनिक कार्यों में संलग्न है। याचिका में कहा गया है कि यह पुनर्विकास योजना मंदिर के चारों ओर के धार्मिक इकोसिस्टम को नुकसान पहुँचा सकती है और श्रद्धालुओं के धार्मिक अनुभव को कृत्रिम बना सकती है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जल्द ही सुनवाई करेगा और यह तय करेगा कि उत्तर प्रदेश सरकार की योजना में सुधार की आवश्यकता है या नहीं। यह मामला धार्मिक धरोहरों के संरक्षण और आधुनिक विकास के बीच संतुलन के प्रश्न को एक बार फिर केंद्रित करता है।
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