
एमपी/एमएलए कोर्ट का बड़ा फैसला, बीजेपी विधायक मिश्री लाल को भेजा गया जेल
बिहार के दरभंगा जिले में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक मिश्री लाल यादव को एक पुराने मारपीट के मामले में जेल भेज दिया गया है। यह कार्रवाई 2019 में दर्ज एक मामले के संबंध में की गई है। दरभंगा स्थित विशेष एमपी/एमएलए अदालत ने गुरुवार को अलीनगर विधानसभा क्षेत्र से विधायक यादव और उनके एक सहयोगी को न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया। इस आदेश से यह संदेश स्पष्ट है कि कानून अब जनप्रतिनिधियों के प्रति भी कठोर और निष्पक्ष होता जा रहा है।
यह मामला 29 जनवरी 2019 की एक घटना से जुड़ा है। पीड़ित उमेश मिश्रा ने शिकायत दर्ज कराई थी कि विधायक मिश्री लाल यादव और उनके साथियों ने उनके घर के बाहर आकर उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। प्राथमिकी में दर्ज आरोपों के अनुसार, यह विवाद स्थानीय राजनीतिक खींचतान का परिणाम था, जिसमें शक्ति प्रदर्शन और व्यक्तिगत दुश्मनी की झलक साफ दिखती है। फरवरी 2025 में विशेष एमपी/एमएलए अदालत ने विधायक यादव और उनके सहयोगी को दोषी ठहराते हुए तीन महीने की सश्रम सजा और 500 रुपये का जुर्माना सुनाया था। इस फैसले के खिलाफ विधायक ने ऊपरी अदालत में अपील की थी, जिसकी सुनवाई गुरुवार को होनी थी। सुनवाई के दौरान विधायक की पेशी के बाद अदालत ने उन्हें 24 घंटे की न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
अदालत में मौजूद सहायक लोक अभियोजक (एपीपी) रेणु झा ने मीडिया को बताया कि गवाही के दौरान विधायक और उनके सहयोगी को हिरासत में लेने के आदेश अदालत ने मौके पर ही दिए। अदालत का यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में तेजी और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। हिरासत में लिए जाने के बाद मीडिया से बातचीत में विधायक मिश्री लाल यादव ने कहा, “मैंने एमपी/एमएलए अदालत के फैसले को चुनौती दी है। मुझे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है और मुझे उम्मीद है कि मुझे न्याय अवश्य मिलेगा। यह मामला राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित है।”
यह मामला केवल एक व्यक्तिगत विवाद नहीं है, बल्कि इसके राजनीतिक निहितार्थ भी स्पष्ट हैं। जानकारों का मानना है कि यह घटनाक्रम उस व्यापक सामाजिक और कानूनी परिप्रेक्ष्य का हिस्सा है, जिसमें जनप्रतिनिधियों को अब आम नागरिकों की तरह ही कानून की प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है।
यह घटना यह भी दिखाती है कि अब न्यायपालिका जनप्रतिनिधियों के खिलाफ भी निष्पक्ष रूप से सख्त रुख अपनाने में संकोच नहीं कर रही है। यह जनमानस में न्यायपालिका के प्रति विश्वास को और मजबूत करता है और दर्शाता है कि लोकतंत्र में कानून सबके लिए समान है।
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