जब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर लगा थीसिस चुराने का आरोप!

देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) के जन्म 5 सितंबर को पूरे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन इनसे जुड़ा एक विवाद हमेशा सुर्ख़ियों में रहा है और यह विवाद उनकी प्रसिद्ध किताब ‘भारतीय दर्शन’ के भाग 2 से जुड़ा हुआ है। दावा किया जाता है कि इस किताब के दूसरे भाग को राधाकृष्णन ने नहीं लिखा था, बल्कि उन्होंने जदुनाथ सिन्हा नाम के एक छात्र की थीसिस (Thesis) को चोरी करके इस किताब तैयार किया गया था। यह भी कहा जाता है कि जदुनाथ की किताब और राधाकृष्णन की किताब की विषय सामग्री में कोई भी अंतर नहीं पाया गया था। दोनों एक दूसरे से हूबहू मिलती हैं।


 

राधाकृष्णन

 

1920 के दशक में कोलकाता में "मॉडर्न रिव्यू" (Modern Review) नामक एक मासिक पत्रिका प्रकाशित होती थी। जनवरी 1929 के उसके प्रकाशन में जदुनाथ सिन्हा नाम के एक छात्र ने सनसनीख़ेज़ दावा किया। उन्होंने लिखा कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने "साहित्यिक चोरी" करते हुए उनकी थीसिस के प्रमुख हिस्से अपने बताकर प्रकाशित करवा लिए। उन्होंने आरोप लगाया कि राधाकृष्णन की किताब "भारतीय दर्शन - 2" में उनकी थीसिस का इस्तेमाल किया गया है। फिर फ़रवरी, मार्च और अप्रैल के संस्करण में जदुनाथ ने अपने दावे के समर्थन में कई साक्ष्य पेश किए जिससे यह विवाद ज़्यादा बढ़ गया।


जदुनाथ

 

उधर, राधाकृष्णन ने जदुनाथ के दावों पर जवाबी पत्र लिखते हुए कहा कि चूंकि उनकी किताब और जदुनाथ की थीसिस का विषय एक ही था, इसलिए इत्तेफ़ाक़न दोनों की विषय सामग्री मिलती जुलती है। उनके ये जवाब पत्रिका के फ़रवरी और मार्च के संस्करण में प्रकाशित हुए थे। फिर अगस्त 1929 में जदुनाथ ने राधाकृष्णन पर केस कर दिया। जवाब में राधाकृष्णन ने जदुनाथ और पत्रिका के संपादक रामनाथ चट्टोपाध्याय दोनों के ख़िलाफ़ केस दर्ज करा दिया। बाद में श्यामा प्रसाद मुखर्जी (Shyama Prasad Mukherjee) ने कोर्ट के बाहर दोनों पक्षों का समझौता कराया।


ऑल इंडिया रेडियो न्यूज़ (All India Radio News) के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र यादव (Mahendra Yadav) का दावा है कि राधाकृष्णन ने जानबूझकर थीसिस पास करने में देरी की और उसे अपने नाम से ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (University of Oxford) से छपवा लिया। उसके बाद जदुनाथ की थीसिस पास की गईं। उन्होंने जदुनाथ को श्रेय तक नहीं दिया, इसी को लेकर जदुनाथ ने 20 दिसंबर, 1928 को मॉडर्न रिव्यू पत्रिका के संपादक को पत्र लिखा था जो इसमें प्रकाशित हुआ।


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