हाईकोर्ट में पूर्व बीजेपी प्रवक्ता आरती साठे की नियुक्ति पर बवाल, विपक्ष ने उठाए सवाल

महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व प्रवक्ता रहीं आरती साठे की बॉम्बे हाईकोर्ट में जज के रूप में नियुक्ति ने एक बड़ा राजनीतिक और संवैधानिक विवाद खड़ा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा 28 जुलाई को घोषित इस नियुक्ति के बाद विपक्षी दलों ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। साठे की राजनीतिक पृष्ठभूमि को लेकर विरोधी दलों—खासकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) और कांग्रेस ने तीव्र आपत्ति जताई है। इन दलों का कहना है कि न्यायिक नियुक्तियों में राजनीतिक जुड़ाव रखने वाले व्यक्तियों को शामिल करना लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे को कमजोर करता है। 


आरती साठे की नियुक्ति पर विपक्ष का तिखा हमला


एनसीपी नेता रोहित पवार ने तीखा हमला बोलते हुए कहा, "सत्तारूढ़ दल की प्रवक्ता रह चुकीं किसी व्यक्ति को सीधे न्यायाधीश नियुक्त करना न्याय प्रणाली की निष्पक्षता के लिए खतरा है। यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को कमजोर करने और संविधान की भावना को आघात पहुंचाने जैसा है।" उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या ऐसी नियुक्ति न्याय प्रक्रिया को राजनीतिक पूर्वाग्रह से मुक्त रख पाएगी। पवार ने सुप्रीम कोर्ट से इस पर हस्तक्षेप करने और नियुक्ति पर पुनर्विचार करने की मांग की। 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नाना पटोले ने भी इसी तरह की आशंका जताते हुए कहा, "अगर किसी राजनीतिक व्यक्ति को जज नियुक्त किया जाता है, तो यह कैसे सुनिश्चित किया जाएगा कि उसका न्याय निर्णय निष्पक्ष होगा? यह केवल चिंताजनक नहीं, बल्कि लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है।" विपक्ष ने साठे की नियुक्ति के विरोध में कार्रवाई की मांग की है, लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि वे कानूनी या राजनीतिक स्तर पर कौन-से ठोस कदम उठाएंगे।

कॉलेजियम प्रणाली पर फिर उठे सवाल


सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट में पांच नए जजों की नियुक्ति की सिफारिश की थी, जिसमें साठे का नाम भी शामिल था। लंबे समय तक भाजपा की महाराष्ट्र इकाई की प्रवक्ता रहीं साठे ने विभिन्न टेलीविज़न डिबेट और मंचों पर पार्टी का पक्ष मजबूती से रखा है। उनकी नियुक्ति की खबर सामने आते ही सोशल मीडिया पर बहस तेज हो गई। यह पहली बार नहीं है जब बॉम्बे हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति विवादों में रही हो। पूर्व में भी कॉलेजियम की पारदर्शिता और चयन प्रक्रिया को लेकर सवाल उठते रहे हैं। कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की न्यायपालिका में सीधी नियुक्ति जनता के बीच अदालतों की विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकती है। वरिष्ठ वकीलों और न्यायविदों का कहना है कि न्यायपालिका की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए कॉलेजियम प्रणाली में व्यापक सुधार की आवश्यकता है, ताकि चयन प्रक्रिया राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रह सके।

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