
सत्येंद्र जैन केस क्लोज़: क्या CBI और ED बन गए हैं राजनीतिक हथियार?
साल 2019, दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार थी और सत्येंद्र जैन दिल्ली के पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट यानी PWD मंत्री थे। इसी दौरान विजिलेंस डायरेक्टरेट ने CBI को एक शिकायत भेजी। शिकायत PWD मंत्री सत्येंद्र जैन के ख़िलाफ़ थी। आरोप लगाया गया कि सत्येंद्र जैन ने PWD में एक 17 लोगों की “क्रिएटिव टीम” बना दी, वो भी सरकारी नियम-कायदों को किनारे रखकर। शिकायत में कहा गया कि इन लोगों को ऐसे प्रोजेक्ट्स के फंड से पेमेंट किया गया, जिनका इस क्रिएटिव टीम से कोई लेना-देना ही नहीं था। भर्ती में न कोई फाइनेंस डिपार्टमेंट की मंज़ूरी ली गई, न स्टैंडर्ड रिक्रूटमेंट प्रोसेस को फॉलो किया गया। यानी सीधे-सीधे बात ये थी कि सरकार ने कानून को ताक पर रखकर निजी लोगों को काम दे दिया।
इसके बाद विजिलेंस ने शिकायत को CBI के पास भेजा और फिर 29 मई 2019 को CBI ने इस मामले में FIR दर्ज कर ली। FIR दर्ज होते ही पूरे सिस्टम में हलचल मच गई। मामला एक मंत्री से जुड़ा था, और वो भी उस पार्टी के मंत्री का, जो कट्टर ईमानदार होने का दावा करती थी। CBI ने इस केस की जांच पड़ताल शुरू की। जांच में देखा जाना था कि क्या वाकई कोई गड़बड़ी हुई है? क्या किसी को नियमों से हटकर काम दिया गया है? क्या कोई गलत फायदा पहुंचाया गया? क्या सरकार को कोई नुक़सान हुआ? कुल मिलाकर ये पता लगाना था कि क्रिएटिव टीम के 17 लोगों को किस तरह हायर किया गया, प्रोसेस क्या रही?
सत्येंद्र जैन ने किसी कानून का उलंघन नहीं किया- CBI
लेकिन ये जांच एक-दो महीने नहीं बल्कि 6 सालों तक चलती है।CBI की जांच धीरे-धीरे आगे बढ़ती है। कागज़ी कार्रवाई, भर्ती से जुड़े दस्तावेज़, पेमेंट रिकॉर्ड, और इंटरव्यू प्रोसेस तक का बारीकी से ऑडिट किया जाता है। 6 साल बाद अब CBI कहती है कि सत्येंद्र जैन ने किसी कानून का उलंघन नहीं किया इसलिए इस केस को क्लोज़ कर दिया जाना चाहिए। यानी साफ शब्दों में कहा कि इस केस में CBI कोई अपराध नज़र नहीं आया। न कोई ग़लत मंशा मिली, न सरकारी पैसे का दुरुपयोग साबित हुआ, और न ही कोई रिश्वत या फायदे का लेन-देन। CBI ने कोर्ट में साफ-साफ कहा कि PWD में जिन 17 लोगों की भर्ती हुई थी, वह जरूरत के हिसाब से की गई थी। उस वक्त विभाग में लगभग 50% पद खाली थे, और सरकार के पास कई इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट थे जिन्हें तय वक्त पर पूरा करना ज़रूरी था। इसलिए फटाफट काम के लिए आउटसोर्सिंग एजेंसी के ज़रिए कंसल्टेंट्स को लाया गया।
CBI ने यह भी बताया कि भर्ती कोई चोरी-छिपे नहीं हुई थी इसके लिए बाकायदा ओपन विज्ञापन निकाला गया था। करीब 1700 लोगों ने आवेदन किया और सिलेक्शन मेरिट के आधार पर किया गया। पैसे भी तय नियमों और अनुमत सीमा के भीतर दिए गए। कोई “अंदर की सेटिंग” या “अपना बंदा घुसाना” जैसी चीज़ सामने नहीं आई। इसके बाद कोर्ट ने भी बड़ी साफ़गोई से कहा, “CBI जैसी जांच एजेंसी जब कई साल की जांच में कोई ठोस सबूत नहीं ढूंढ सकी, तो ऐसे केस को आगे बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है।” कोर्ट ने ये भी जोड़ा कि ना तो कोई क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी साबित हुई, ना पॉवर का दुरुपयोग, ना कोई निजी लाभ, और ना ही सरकारी खज़ाने को नुक़सान। इस मामले में सिर्फ प्रशासनिक फैसले लिए गए जो नियमों से थोड़े अलग हो सकते हैं, लेकिन इसे अपराध नहीं कहा जा सकता।
PWD भर्ती मामले से तो सत्येंद्र जैन को कोर्ट से राहत मिल गई, लेकिन उनके खिलाफ कानूनी मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं। उनके नाम पर आज भी कई हाई-प्रोफाइल मामले दर्ज हैं जिनकी जांच देश की सबसे बड़ी केंद्रीय जांच एजेंसियां कर रही हैं। 571 करोड़ के CCTV प्रोजेक्ट से जुड़ा हुआ मामला, जहां BEL पर लगने वाली पेनल्टी को 7 करोड़ की कथित रिश्वत लेकर माफ करने का आरोप है। दूसरा मामला स्कूलों में 2,000 करोड़ रुपये के क्लासरूम निर्माण घोटाले से जुड़ा है, जिसमें ED मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर रही है। तीसरे मामले में 5,590 करोड़ के अस्पताल निर्माण में ठेके देने में गड़बड़ियों के आरोप हैं और Delhi Anti-Corruption Branch यानी ACB ने FIR दर्ज की है। वहीं चौथा केस दिल्ली जल बोर्ड के 1,943 करोड़ के टेंडर घोटाले से जुड़ा है, जिसकी जांच भी ED कर रही है। और सबसे बड़ा और चर्चित मामला मनी लॉन्ड्रिंग का है, जिसे भी ED देख रही है। आरोप है कि सत्येंद्र जैन ने कुछ फर्जी कंपनियों के ज़रिए करोड़ों रुपये का लेन-देन किया और आय से अधिक संपत्ति जमा की। इसी केस में मई 2022 में ED ने उन्हें गिरफ्तार किया और करीब डेढ़ साल जेल में रखा गया। बाद में अक्टूबर 2024 में उन्हें जमानत मिल गई। लेकिन हैरानी की बात ये है कि इतने वक्त के बावजूद इनमें से ज़्यादातर मामलों में ट्रायल की शुरुआत तक नहीं हुई है। यानी मामला कोर्ट में है, लेकिन बहस या सुनवाई शुरू नहीं हुई। ज़्यादातर में या तो सिर्फ FIR दर्ज हुई है, या शुरुआती पूछताछ।
क्या ये राजनीतिक दबाव बनाने का तरीका?
अब यहाँ ये सवाल उठाना लाज़मी हो जाता है कि क्या ये वाकई जांच हैं, या सिर्फ राजनीतिक दबाव बनाने का तरीका? इन जांच एजेंसियों के ऐसे मामलों की फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है जहाँ इन्होंने विपक्ष के नेताओं पर विभिन्न मामलों में कार्येवाही की लेकिन जैसे ही वो नेता सत्ताधारी पार्टी के पाले में गए तो इन एजेंसियों ने जांच को ठंडे बस्ते में दाल दिया। उदाहरण से समझिए, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा जब ये कांग्रेस में थे, तो CBI और ED उनके खिलाफ लगातार जांच कर रही थीं खासकर असम के शारदा चिटफंड घोटाले में। लेकिन जैसे ही उन्होंने बीजेपी जॉइन की तो न सिर्फ जांच थम गई, बल्कि कोई भी नया समन या कार्रवाई नहीं हुई। सुवेंदु अधिकारी भी ऐसा ही नाम है, पश्चिम बंगाल में TMC सरकार में मंत्री रहते हुए वो नारदा स्टिंग ऑपरेशन में रंगे हाथों पैसे लेते दिखे थे।
CBI और ED दोनों ने उनके खिलाफ गंभीर जांच शुरू की थी। लेकिन जब सुवेंदु ने TMC छोड़कर बीजेपी का दामन थामा, तो मानो जांच को ब्रेक लग गया अब जांच एजेंसियां खामोश हैं। ठीक ऐसा ही हुआ नारायण राणे के साथ। शिवसेना में रहते हुए उनके खिलाफ ED की रेड पड़ी, पूछताछ भी हुई। लेकिन बीजेपी में शामिल होते ही वो भी ‘क्लीन’ हो गए। न कोई नया नोटिस, न कोई चार्जशीट। और फिर सबसे ताज़ा उदाहरण है अजीत पवार का जिनके खिलाफ ED ने कथित 70 हजार करोड़ के सिंचाई घोटाले की जांच शुरू की थी। लेकिन जैसे ही वो एनसीपी को तोड़कर NDA का हिस्सा बने, तो जांच एजेंसियां अचानक मौन हो गईं। न कोई गिरफ्तारी, न कोई अपडेट। ये घटनाएं सिर्फ आरोप नहीं हैं ये पैटर्न बन चुका है। विपक्षी नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियां तीव्र, आक्रामक और दिखावटी तरीके से काम करती हैं। मीडिया ट्रायल होता है, छापे मारे जाते हैं, प्रेस कॉन्फ्रेंस होती हैं। लेकिन जैसे ही वही नेता सत्ताधारी दल की तरफ झुकते हैं, एजेंसियों की रफ्तार मंथर हो जाती है, या कहें पूरी तरह रुक जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने ED-CBI की निष्पक्षता पर सवाल उठाए
CBI और ED जैसी संस्थाएं देश की सबसे ताक़तवर जांच एजेंसियों में गिनी जाती हैं। इन पर जिम्मेदारी होती है कि भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और बड़े आर्थिक अपराधों की निष्पक्ष जांच करें। लेकिन जब बार-बार यह देखा गया कि ये एजेंसियां सिर्फ चुनिंदा नेताओं, वो भी ज़्यादातर विपक्षी पार्टियों के नेताओं के खिलाफ ही ऐक्शन ले रही हैं। जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने भी CBI और ED की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। एक बार तो कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि ऐसा क्यों है कि ED की सक्रियता सिर्फ विपक्षी नेताओं तक ही सीमित है? यह सवाल मामूली नहीं है। यह देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था की ओर से आया हुआ अविश्वास का संकेत है। इसी साल एक सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में PMLA यानी Prevention of Money Laundering Act का इस्तेमाल selective तरीके से किया जा रहा है और ये गंभीर चिंता की बात है।
कोर्ट ने कहा कि ED को इस तरह काम नहीं करना चाहिए कि उसकी कार्रवाई एकतरफा लगे। ED को “राजनीतिक टूल” की तरह नहीं दिखना चाहिए। एक और मामले में कोर्ट ने पूछा कि ED और CBI जब किसी मामले में चार्जशीट दाखिल कर देती हैं, तो उसका ट्रायल सालों-साल क्यों नहीं शुरू होता? क्या एजेंसियां जानबूझकर मुकदमे लटकाए रखती हैं ताकि आरोपी को लंबे वक्त तक ‘दागदार’ बनाए रखा जाए? इन टिप्पणियों से यह बात और पक्की हो जाती है कि जांच एजेंसियों की साख अब अदालतों की नज़र में भी पूरी तरह बेदाग नहीं रही। जब सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था यह पूछे कि “आप विपक्ष के पीछे ही क्यों पड़े हैं?” तो यह किसी राजनीतिक दल का आरोप नहीं रह जाता यह एक संवैधानिक चिंता बन जाती है। तो आख़िर में मुद्दा सिर्फ सत्येंद्र जैन का नहीं है। असली सवाल ये है कि क्या हमारे देश की जांच एजेंसियां अब कानून के हिसाब से चल रही हैं, या फिर सत्ता के इशारों पर? अगर किसी नेता ने वाकई गड़बड़ी की है, भ्रष्टाचार किया है तो सख्त सज़ा होनी चाहिए, बेशक होनी चाहिए। लेकिन अगर किसी को सिर्फ इसलिए घसीटा जा रहा है क्योंकि वो केंद्री की सत्ता में क़ाबिज़ बीजेपी के ख़िलाफ़ है, तो ये जांच नहीं, बदले की कार्रवाई है। अगर आरोप सच हैं तो कार्रवाई हो, लेकिन अगर जांच सालों तक सिर्फ इसलिए खिंचती रहे ताकि किसी की छवि खराब की जा सके, तो ये न इंसाफ है, न लोकतंत्र। ये तो एक तरह की राजनीतिक धमकी है कि अगर तुम हमारे खिलाफ गए, तो तुम्हारी बारी आएगी। और यही सबसे बड़ा ख़तरा है। क्योंकि जब कानून का इस्तेमाल ईमानदारी की जगह राजनीतिक रणनीति के तौर पर होने लगे, तो फिर देश में न्याय नहीं, सिर्फ डर और भ्रम बचता है। इसलिए सवाल सिर्फ इतना नहीं कि कौन दोषी है सवाल ये है कि जांच करने वाला कितना निष्पक्ष है। क्योंकि अगर जांच ही भरोसे के लायक नहीं रही, तो फिर इंसाफ किससे मांगें?
Read This Also:
For all the political updates download our Molitics App :
Click here to Download