बिहार की राजनीति में पीके का तीखा हमला: कांग्रेस को कहा ‘वजूदहीन’, राजद पर निर्भर

जन सुराज अभियान के नेता और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने एक बार फिर बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। कांग्रेस पार्टी पर सीधे निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि अब बिहार में कांग्रेस की पहचान सिर्फ राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की पिछलग्गू पार्टी के रूप में रह गई है, जो केवल उसका “झोला उठाने” का काम कर रही है। प्रशांत किशोर के इस बिंदुवार और आक्रामक बयान ने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है, जिस पर सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी महागठबंधन दोनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। प्रशांत किशोर ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली में कुछ सांसदों की कुर्सी बचाने के लिए बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्य की राजनीति को राजद के हवाले कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि कभी बिहार में कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था, जब संयुक्त बिहार में उसके पास 53 लोकसभा सांसद थे, लेकिन अब वह केवल चार सीटों पर सिमटकर रह गई है। यह गिरावट कांग्रेस के नेतृत्वहीनता और रणनीतिक असफलताओं का परिणाम है। उन्होंने दावा किया कि राज्य में अब कांग्रेस का कोई स्वतंत्र जनाधार नहीं बचा है और वह पूरी तरह से राजद पर निर्भर है। 


प्रशांत किशोर का यह बयान ऐसे समय आया है जब बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और सभी प्रमुख दल अपने-अपने वोटबैंक को साधने में जुटे हैं। किशोर, जो पहले कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के चुनावी रणनीतिकार रह चुके हैं, अब खुद जन सुराज अभियान के ज़रिए बिहार की राजनीति में स्वतंत्र भूमिका निभाने का प्रयास कर रहे हैं। उनके इस बयान पर महागठबंधन में शामिल दलों ने तीखा पलटवार किया। राजद प्रवक्ता एज्या यादव ने कहा कि पीके खुद ‘झोला पॉलिटिक्स’ के प्रतीक हैं। उन्होंने व्यंग्यात्मक अंदाज़ में कहा कि जो व्यक्ति कभी जेडीयू, कभी कांग्रेस, और कभी टीएमसी के लिए रणनीति बनाता रहा हो, वह आज दूसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ा रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि प्रशांत किशोर की आलोचना दरअसल उनकी हताशा का संकेत है क्योंकि उन्हें जनता से वो समर्थन नहीं मिल पा रहा जिसकी वे अपेक्षा कर रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता ज्ञान रंजन ने भी पीके को याद दिलाया कि पटना के गांधी मैदान में उन्होंने अपनी पहली रैली किस तरह की थी और उसका क्या नतीजा निकला था। उन्होंने कहा कि जो लोग कांग्रेस को कमजोर समझते हैं, उन्हें इतिहास से सबक लेना चाहिए। ज्ञान रंजन ने कहा कि प्रशांत किशोर अब खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए मीडिया में तीखे बयान दे रहे हैं, लेकिन जनता उनके इस राजनीतिक अभिनय को समझती है। 

जेडीयू प्रवक्ता अरविंद निषाद ने तो प्रशांत किशोर को “राजनीतिक ठग” बताते हुए कहा कि बिहार की जनता जानती है कि असली नेतृत्व किसके पास है। उन्होंने कहा कि राज्य की जनता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व पर आज भी भरोसा करती है, और प्रशांत किशोर जैसे "बाहरी सलाहकार" अब केवल भ्रम फैलाने का काम कर रहे हैं। बीजेपी प्रवक्ता दानिश इकबाल ने भी पीके पर हमला बोलते हुए कहा कि जिनकी राजनीति कभी कांग्रेस की रणनीति गढ़ने में लगी थी, वे आज उसी कांग्रेस को ‘निकम्मा’ बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर की राजनीति दिशाहीन और अवसरवादी हो चुकी है। वह स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं कि वे जनसेवक हैं या फिर केवल एक ब्रांड जो हर चुनाव में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना चाहता है। राजद के प्रवक्ता एजाज अहमद ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए पीके को “बीजेपी की बी टीम” तक कह दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशांत किशोर सिर्फ भ्रम फैलाने और बहुजन-मुस्लिम एकता को तोड़ने का काम कर रहे हैं ताकि भाजपा को अप्रत्यक्ष लाभ मिल सके। इन तमाम बयानों से यह साफ है कि प्रशांत किशोर का बयान केवल एक टिप्पणी नहीं, बल्कि आने वाले चुनावी संघर्ष की एक झलक है। उनके इस आक्रामक तेवर से संकेत मिलता है कि वे बिहार में न केवल जन सुराज को विकल्प के रूप में पेश करना चाहते हैं, बल्कि खुद को एक स्वतंत्र राजनीतिक शक्ति के तौर पर स्थापित करने की रणनीति पर भी काम कर रहे हैं।

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