विदेश नीति पर फेल भारत? डोनाल्ड ट्रम्प और पाकिस्तान की बढ़ती नजदीकियों पर खामोशी क्यों

मीडिया से आपने खूब सुना होगा कि 2014 के बाद भारत विश्वगुरु बन चुका है। विश्वगुरु दिखने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी हर सम्मेलन में कैमरे के सामने मुस्कराते नज़र आते हैं, हर विदेश दौरे को एक इवेंट की तरह पेश करते हैं। लेकिन असलियत ये है कि दुनिया हमें देखने का तरीका बदल चुकी है। अमेरिका भारत पर 25% टैरिफ और एक पेनल्टी लगाकर साफ कह रहा है “India will be paying.” मतलब ये कि तुम्हें क़ीमत चुकानी पड़ेगी। उधर पाकिस्तान, जिसे हम मंचों पर आतंकवाद का गढ़ बताते हैं, आज अमेरिका और चीन दोनों की गोद में बैठा है।  अमेरिका, पाकिस्तान के साथ मिलकर उसके Natural Gas और Oil Reserves को एक्सप्लोर करने की डील कर चुका है। 


सिर्फ इतना ही नहीं अमेरिका खुलेआम कह रहा है कि एक दिन ऐसा आएगा जब पाकिस्तान भारत को तेल सप्लाई करेगा। यानी भविष्य का सपना अमेरिका अब भारत से नहीं, पाकिस्तान से जोड़ रहा है। चीन भी पीछे नहीं है। उसने पाकिस्तान में अपना AI डेटा सेंटर खोल दिया है। अब वो पाकिस्तान के साथ सिर्फ बॉर्डर नहीं, बल्कि भविष्य की टेक्नोलॉजी भी शेयर कर रहा है। सोचिए कुछ सालों पहले पाकिस्तान को दुनिया का सबसे खतरनाक देश माना जाता था लेकिन अब Counter-Terrorism Committee का उपाध्यक्ष बना दिया गया है। चीन-अमेरिका से टेक्नोलॉजी डील हो रही हैं। और हम? हम बस ट्वीट करते हैं, डेलीगेशन भेजते हैं, इवेंट करते हैं, और फिर चुप बैठ जाते हैं। आज भारत की विदेश नीति इतनी कमज़ोर हो चुकी है कि हमारी बात न G20 में गूंजती है, न UN में, न White House में। हम जिनको “मित्र” समझते रहे, वही आज हमारे खिलाफ आर्थिक और रणनीतिक मोर्चे खोल चुके हैं। तो क्या ये है 2025 के “विकसित भारत” की विदेश नीति? क्या यही है “विश्वगुरु” बनने की राह? क्या अब हम सच में नेतृत्व कर रहे हैं या बस अंतरराष्ट्रीय राजनीति के तमाशबीन बन गए हैं? और सवाल ये भी कि क्या हमारी कमजोर नीति और नेतृत्व की वजह से पाकिस्तान अमेरिका में करीबी बढ़ गई है?

इंडिया पर 25% टैरिफ लगेगा: डोनाल्ड ट्रम्प


राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का एक बयान आया हैं कि इंडिया ने अपने ज़्यादातर हथियार रशिया से ख़रीदें हैं अब इंडिया को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। 1 अगस्त से इंडिया के सामान पर 25% टैरिफ लगेगा और ऊपर से एक जुर्माना भी। टैरिफ मतलब टैक्स, जब एक देश अपना सामान दूसरे देश में बेचता है यानी एक्सपोर्ट करता है तो वहाँ की सरकार उस समान पर अपने देश में बेचने के लिए कुछ टैक्स वसूलती है और इस टेक्स को ही टैरिफ़ कहा जाता है। ये पैसा सरकार उस चीज़ के दाम में जोड़ देती है, जिससे वो सामान उस देश के मार्केट में महंगा हो जाता है। जैसे अब अमेरिका ने कहा कि जो भी सामान इंडिया से आएगा, उस पर 25% टैरिफ़ लगेगा। मतलब अगर कोई भारतीय कंपनी 100 रुपये का सामान अमेरिका भेज रही है, तो वहाँ उसका रेट सीधे 125 रुपये हो जाएगा। 

अब सोचिए, अब अगर उसी जैसे सामान को ख़ुद अमेरिका या कोई दूसरा देश सस्ता बेच रहा है, तो ग्राहक कौनसा खरीदेगा? सीधी सी बात है जो सस्ता होगा। यानी इंडिया के माल की बिक्री कम हो जाएगी। नुकसान सीधा-सीधा इंडियन एक्सपोर्टर्स को होगा। हम जो अमेरिका को दवाई भेजते हैं, टेक्नोलॉजी सर्विस देते हैं, कार के पार्ट्स या सॉफ्टवेयर बनाकर भेजते हैं सब पर असर पड़ेगा। इंडिया की फार्मा इंडस्ट्री, ऑटोमोबाइल सेक्टर, आईटी कंपनियां इन सारे सेक्टर में एक्सपोर्ट कम होगा। और जब एक्सपोर्ट घटता है, तो फैक्ट्रियों में काम घटता है, नौकरियां जाती हैं, देश की कमाई कम होती है। अमेरिका इंडिया का बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है। और अगर वही देश इस तरह टैरिफ़ लगा दे, तो उसका सीधा मतलब होता है कि उसको आपकी कोई परवाह नहीं है। लेकिन हमने तो न्यूज़ में देखा है ट्रम्प मोदी के सबसे अच्छे दोस्त हैं। 

ट्रम्प ने अपने सपथग्रहण समोरोह में विदेश मंत्री S जयशंकर को भी फ्रंट-रो में बैठाया था तो। मोदी जी ने भी कोरोना के समय में ट्रम्प के लिए नमस्ते ट्रम्प तक करवाया था। लेकिन जब अमेरिका जैसे देश खुलेआम भारत पर 25% टैरिफ और पेनल्टी थोप देते हैं तब सवाल उठता है ये कैसी दोस्ती है? और ये कैसी विदेश नीति थी? क्या ये सब एक दिखावा था? देखिए मोदी सरकार की विदेश नीति के बारे में देश में एक बड़ा नैरेटिव बनाया गया है कि अब दुनिया भारत को गंभीरता से लेती है, मोदी जी की बात सुनी जाती है, और वो जहां जाते हैं, दुनिया झुक जाती है। मीडिया और भक्त मंडली ने इसे इतना बार-बार दोहराया कि लोग सच मान बैठे। लेकिन ये सच नहीं है। याद कीजिए अप्रैल 2020 का समय जब पूरी दुनिया कोरोना से जूझ रही थी। तब डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन की मांग की, और धमकी के अंदाज़ में कहा, “अगर नहीं दी तो जवाबी कार्येवाही होगी।” ये सब डोनाल्ड ट्रम्प ने तब किया जब मोदी ने दो महीने पहले ही फ़रवरी 2020 में ट्रम्प के लिए नमस्ते ट्रम्प का आयोजन किया था। मतलब इस आयोजन का कुछ रिजल्ट निकला ही नहीं बेवजह देश को खतरे में डाला गया सिर्फ़ ये इमेज बनाने के लिए कि मोदी और ट्रम्प में गहरी दोस्ती है। आगे देखिए, जब ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात हुए तो ट्रम्प ने ट्वीट करके युद्धविराम की घोषणा कर दी। और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे स्वीकार कर लिया। ये देश के इतिहास में पहली बार था जब पाकिस्तान के मुद्दे पर किसी तीसरे देश ने मध्यस्था कराई हो। यहाँ अमेरिका ने दिखा दिया कि असली विश्वगुरु कौन है।

पाकिस्तान पर क्यों मेहरबान हो रहे डोनाल्ड ट्रम्प


लेकिन बात यहीं तक सीमित नहीं रही, इस दौरान इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड यानी IMF आता है और कहता है ये लो पाकिस्तान 2.3 अरब डॉलर का लोन। 1 अरब डॉलर यानी लगभग 8500 करोड़ रुपए अभी ले लो। बाक़ी 1.3 अरब डॉलर यानी लगभग 11 हजार करोड़ रुपए का लोन अगले 28 महीने तक किस्तों में मिल जाएगा। अब अगर आपको लग रहा है कि IMF तो एक संस्था है तो इसके पाकिस्तान को लोन देने से पाकिस्तान-अमेरिका के संबंधों को भारत से कैसे जोड़ा जा सकता है? तो आपको की IMF की लोन प्रक्रिया को समझने की जरूरत है। IMF यानी इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड, दुनिया की सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्था है। 190 से ज़्यादा देश इसके सदस्य हैं। इसमें कोई भी फैसला लेने से पहले वोटिंग होती है। हर देश को वोट डालने का अधिकार होता है लेकिन हर देश के पास एक जैसा वोट नहीं होता। यहाँ हर देश कुछ परसेंट ऑफ़ वोट डालता है। जिन्हें वोटिंग राइट्स कहते हैं। जैसे अमेरिका के पास सबसे अधिक 16.5 परसेंट वोटिंग राइट्स हैं। कोई भी फैसला लेने के लिए 85% तक वोट की जरूरत होती है। ऐसे में अगर अमेरिका वोट न करे तो किसी भी मुद्दे को बहुमत नही मिलता और कोई भी फैसला नहीं लिया जा सकता। मतलब पाकिस्तान को जो लोन मिला उसमें अमेरिका की पूरी मंजूरी थी। इसके बाद अमेरिका की मदद से पाकिस्तान को एक और तौफा मिला।

पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र की तालिबान प्रतिबंध कमेटी का अगला अध्यक्ष बना दिया गया। तालिबान प्रतिबंध कमेटी को 1988 कमेटी भी कहा जाता है। इस कमेटी का काम ये होता है कि अफगानिस्तान में तालिबान या उनसे जुड़े जिन भी लोगों से दुनिया के लिए खतरा माना जाता है, उन पर पाबंदियां लगाई जाएं जैसे कि उनके बैंक खातों को फ्रीज करना, विदेश यात्रा पर रोक लगाना, और हथियारों की खरीद-फरोख्त बंद करना। इतना ही नहीं, UN ने पाकिस्तान को एक और जिम्मेदारी दी है। पाकिस्तान को Counter-Terrorism Committee में भी उपाध्यक्ष बना दिया गया है। इस कमेटी का काम दुनियाभर में आतंकवाद से निपटने के तरीके तय करना है। पाकिस्तान को ये पद इसलिए मिला क्योंकि वो 2025–26 के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का ग़ैर-स्थायी सदस्य चुना गया था। इसी हैसियत से उसे ये अहम भूमिकाएं सौंपी गई हैं। भारत सालों से कोशिश करता रहा है कि दुनिया पाकिस्तान को आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला देश माने। लेकिन हालात ये हो गए हैं कि पाकिस्तान अब खुद आतंकवाद के खिलाफ फैसले लेने वाली कुर्सी पर बैठ गया है। जो निश्चित तौर पर भारत सरकार की कूटनीतिक विफलता है।

यह फ़ैसले ऑपरेशन सिंदूर के बाद क्यों हुए


ये सब हुआ ऑपरेशन सिंदूर के तुरंत बाद। हालांकि मोदी सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर को एक “बड़ी जीत” की तरह पेश किया था। टीवी चैनलों पर ग्राफिक्स चले, मंत्रियों ने ट्वीट किए, और प्रधानमंत्री ने संसद में इसे “भारत की ताकत का प्रतीक” बताया। लेकिन ज़मीनी हकीकत क्या है? अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को झटका लगा है। सोचिए, अगर ऑपरेशन इतना सफल था तो फिर पाकिस्तान को UN में काउंटर करने के लिए भारत को ऑल पार्टी डेलीगेशन क्यों भेजना पड़ा? क्यों विदेश मंत्रालय को अलग-अलग देशों को समझाना पड़ा? क्यों दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को सफाई देनी पड़ी? सरकार ने सफ़ाई दी लेकिन उसके बाद भी कामयाबी नहीं मिली। सरकार ने जो 7 ऑल पार्टी डेलीगेशन भेजे थे उनमें से एक डेलीगेशन की अगुवाई बीजेपी सांसद बैजयंत पांडा कर रहे थे। वो डेलीगेशन सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन और अल्जीरिया के दौरे पर था। 

मकसद साफ था इन देशों को भारत का नजरिया समझाना और पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर अलग-थलग करना। लेकिन रिजल्ट क्या निकला उसका उदाहरण देखिए बैजयंत पांडा वाला डेलीगेशन 26 और 27 मई 2025 को कुवैत पहुंचा, जहां उन्होंने भारतीय पक्ष रखा। उम्मीद थी कि कुवैत भारत के अनुभव को समझेगा और पाकिस्तान के खिलाफ कोई ठोस रुख अपनाएगा। लेकिन इसके उलट 27 मई को ही, यानी जिस दिन भारतीय सांसद कुवैत में थे, कुवैत सरकार ने पाकिस्तान पर 19 साल से लगा वीज़ा बैन हटा दिया। ऑल पार्टी डेलीगेशन के कुवैत पहुँचने के एक दिन बाद पाकिस्तान से वीजा बैन हटना एक सयोंग हो सकता है। लेकिन इस फैसले से इतना साफ़ है कि भारत का डेलीगेशन कुवैत में कोई माहौल नहीं बना पाया। सच्चाई ये है कि सरकार जवाबदेही से बचने के लिए हर मुद्दे को इवेंट में बदल देती है। चाहे वो surgical strike हो, Balakot हो या अब ऑपरेशन सिंदूर।

अमेरिका ने क्यूबा पर ट्रेड बैन लगाया

क्यूबा पर ट्रेड बैन लगाया दूसरी और अगर अमेरिका की बात करें अमेरिका का इतिहास हिपोक्रेसी से भरा हुआ है। उसने ईरान पर सैंक्शन लगाए क्योंकि ईरान ने उसका कहा नहीं माना। क्यूबा पर ट्रेड बैन लगाया क्योंकि क्यूबा अमेरिका की पॉलिसी से नहीं चला। और अब वही पैंतरा भारत पर भी आज़माया जा रहा है खुलेआम धमकी, टैक्स और दंड के ज़रिए। लेकिन अमेरिका की दोहरी चालें तब और ज़्यादा नुकसान करती हैं जब हमारी खुद की सरकार भी आधी-अधूरी और दिखावटी विदेश नीति पर चल रही हो। मोदी सरकार हर मुद्दे पर बड़ी-बड़ी बातें करती है “56 इंच”, “Laal aankhein”, “Atmanirbhar Bharat”, “Vishwa Guru” लेकिन जब हकीकत सामने आती है, तो सब सिर्फ नारे और इवेंट निकले। आत्मनिर्भर भारत” का क्या हुआ? ये तो कहा गया था कि अब सब कुछ देश में बनेगा, बाहर से मंगवाना बंद होगा। 

लेकिन हकीकत क्या है? फार्मा सेक्टर के रॉ मटीरियल्स चीन से, मोबाइल पार्ट्स चीन से, चिप्स कोरिया और ताइवान से, और सबसे मज़ेदार बात “Make in India” का लोगो तक चीन में बना। मतलब आत्मनिर्भरता सिर्फ होर्डिंग और ट्वीट तक सीमित रह गई। आज जो दुनिया भारत को हल्के में ले रही है उसमें सबसे बड़ा योगदान है भारत की “image-based diplomacy” का है। जहां असल काम कम, प्रचार ज़्यादा होता है। जहां आंखों में आंख डालकर सवाल पूछने की बजाय, सिर्फ फोटो खिंचवाने पर ज़ोर दिया जाता है। तो अब सवाल ये है मोदी सरकार कहती है कि भारत अब किसी के दबाव में नहीं झुकता। फिर जब ट्रंप जैसे नेता खुलेआम कहते हैं कि “India will be paying,” तब सरकार की ज़ुबान क्यों सिल जाती है? दुनिया में दोस्ती फोटो से नहीं होती। गले मिलकर या हाथ पकड़कर रिश्ते नहीं बनते, रिश्ते बनते हैं फैसलों से। हम “विश्वगुरु” नहीं विश्व-कंज़्यूमर हैं, क्योंकि फिलहाल तो दुनिया हमें एक ऐसा देश मान रही है, जो चीज़ें खरीद सकता है, पर सवाल नहीं पूछ सकता। हमसे तेल लो, हमसे हथियार लो, हमसे टेक्नोलॉजी लो लेकिन जैसे ही हम अपनी मर्ज़ी से कुछ करने जाएं, तो धमकी मिलती है, टैक्स लगता है, सज़ा सुनाई जाती है। और हमारा रवैया? बस चुप्पी।

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