BNS लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एक्ट की जरूरत क्यों? हाईकोर्ट ने मांगा सरकार से जवाब

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्थित इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न उठाते हुए कहा है कि जब भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 में संगठित अपराधों से निपटने के लिए विस्तृत प्रावधान मौजूद हैं, तो फिर उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एक्ट की प्रासंगिकता अब कितनी रह गई है?


न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने कहा, “प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि BNS-2023 के लागू होने के बाद गैंगस्टर एक्ट के प्रावधान अप्रासंगिक हो गए हैं।” अदालत ने इस सवाल को विचारणीय मानते हुए राज्य सरकार सहित सभी प्रतिवादियों से तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। साथ ही, याची को जांच में सहयोग करने की शर्त पर गिरफ्तारी से अंतरिम राहत भी दी गई है।

उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एक्ट पर कोर्ट की टिप्पणी

यह टिप्पणी मिर्जापुर निवासी विजय सिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान दी गई, जिनके खिलाफ हलिया थाना क्षेत्र में गैंगस्टर एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अजय मिश्रा ने तर्क दिया कि विजय सिंह पर दर्ज सभी प्राथमिक मामलों में उन्हें पहले ही जमानत मिल चुकी है। बावजूद इसके, राजनीतिक द्वेष और झूठे आरोपों के आधार पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की गई है। वहीं, राज्य की ओर से पेश अपर शासकीय अधिवक्ता ने दावा किया कि याची एक संगठित आपराधिक गिरोह से जुड़ा है और इस मामले में प्रत्यक्ष रूप से संलिप्त है।

अदालत ने अपने आदेश में BNS-2023 की धारा 111 का विशेष उल्लेख किया, जिसके तहत अपहरण, डकैती, वसूली, साइबर अपराध, मानव तस्करी, सुपारी किलिंग, भूमि कब्जा और अवैध कारोबार जैसे गंभीर संगठित अपराधों के खिलाफ विस्तृत और कठोर कानूनी प्रावधान हैं। इसमें ऐसे व्यक्तियों के लिए भी सजा का प्रावधान है जो इन अपराधों में सहायता करते हैं या आरोपियों को संरक्षण देते हैं।कोर्ट ने कहा, "जब BNS के अंतर्गत संगठित अपराधों की रोकथाम और दंड के लिए व्यापक व्यवस्था उपलब्ध है, तो फिर गैंगस्टर एक्ट के तहत समानांतर कार्रवाई विधिक दृष्टिकोण से उचित प्रतीत नहीं होती।"

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