वोटर लिस्ट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, “समीक्षा में गलती नहीं, लेकिन देरी पर सवाल”

बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन को लेकर मचे राजनीतिक घमासान के बीच सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को इस मुद्दे पर अहम सुनवाई हुई। इस दौरान चुनाव आयोग की कार्रवाई को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं और आयोग, दोनों पक्षों की ओर से लंबी दलीलें पेश की गईं। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने याचिकाकर्ताओं की बात सुनने के बाद अहम टिप्पणी करते हुए कहा, "गैर-नागरिकों को मतदाता सूची से हटाना चुनाव आयोग का नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है।"



सुनवाई के दौरान कोर्ट की अहम टिप्पणी

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा शुरू किया गया विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (SIR) मतदाताओं पर अपनी नागरिकता साबित करने का दबाव डालता है, जो संविधान की भावना के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि आयोग की तरफ से आधार कार्ड तक को पहचान पत्र के रूप में स्वीकार नहीं किया जा रहा और नागरिकों से माता-पिता तक के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। नारायण ने कोर्ट को बताया कि चुनाव निकट हैं और आयोग का दावा है कि 30 दिनों के भीतर पूरी मतदाता सूची को संशोधित कर दिया जाएगा, जो न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि मौलिक मताधिकार में बाधा भी बन सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह भी पूछा कि इतनी महत्वपूर्ण प्रक्रिया को चुनाव से इतने कम समय पहले क्यों शुरू किया गया। हालांकि, पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि वोटर लिस्ट की समीक्षा अपने आप में गलत नहीं है, लेकिन इसे चुनावी प्रक्रिया से काफी पहले शुरू किया जाना चाहिए था ताकि कोई भ्रम या असुविधा न हो।

चुनाव आयोग के वकील ने कोर्ट को बताया कि मतदाता सूची पुनरीक्षण के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर आयोग को आपत्ति है। आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से संवैधानिक दायरे में की जा रही है और इसका उद्देश्य केवल फर्जी या अयोग्य नामों को हटाकर मतदाता सूची को पारदर्शी बनाना है। बिहार में इस मुद्दे को लेकर सियासी सरगर्मी तेज है। हाल ही में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में पटना में एक विरोध मार्च निकाला गया था, जिसमें मतदाता सूची से नाम हटाने की आशंका को लेकर चुनाव आयोग पर सवाल खड़े किए गए।

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