
भारत का आसियान FTA को खत्म करने पर विचार, फ्री ट्रेड एग्रीमेंट बना घाटे का सौदा
भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान (ASEAN) के बीच 2009 में हुए मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर संकट गहराता जा रहा है। नौ दौर की समीक्षा वार्ता के बावजूद कोई ठोस नतीजा नहीं निकलने से भारत जल्द ही इस समझौते को रद्द कर सकता है। भारतीय उद्योग जगत लंबे समय से इस समझौते पर पुनर्विचार की मांग कर रहा है, और सरकार पर दबाव बना रहा है कि अगर 10वीं समीक्षा बैठक भी निष्फल रही तो इसे समाप्त कर दिया जाए।
एकतरफा नुकसान का आरोप
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय उद्योग जगत का मानना है कि यह समझौता एकतरफा साबित हुआ है, जिससे घरेलू उद्योगों को नुकसान हुआ है। समझौते के तहत आसियान देशों से सस्ती दरों पर वस्तुएं भारत में आ रही हैं, जबकि भारत का निर्यात अपेक्षाकृत कम है। सबसे ज्यादा चिंता चीनी सामानों की आसियान देशों के ज़रिए भारी मात्रा में डंपिंग को लेकर है।
FTA के तहत भारत के लिए ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम जैसे देशों के साथ आयात-निर्यात की शर्तें सरल की गई थीं। 1 जनवरी 2010 को लागू हुए इस समझौते को उस समय के तत्कालीन वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने हस्ताक्षरित किया था। पर अब इसे भारत के व्यापार संतुलन के लिए प्रतिकूल बताया जा रहा है।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, आसियान समूह अब समीक्षा प्रक्रिया में तेजी लाने को तैयार है। दो वर्षों से जारी गतिरोध को खत्म करने के लिए दोनों पक्षों में सहमति बनी है कि 10वीं समीक्षा बैठक निर्णायक होनी चाहिए। यह बैठक अगले महीने दिल्ली में आयोजित हो सकती है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि समीक्षा में तेजी लाई जाए ताकि व्यापारिक असंतुलन को ठीक किया जा सके और एक निष्पक्ष समझौते तक पहुंचा जा सके। हमारा लक्ष्य है कि 2025 तक ठोस परिणाम मिले।”
भारतीय उद्योग संगठनों ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि आगामी बैठक में कोई समाधान नहीं निकलता तो भारत को इस समझौते से बाहर निकलने में संकोच नहीं करना चाहिए। उनके अनुसार, मौजूदा एफटीए के तहत भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ा है, और इसकी शर्तें घरेलू व्यापार के हित में नहीं हैं।
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