अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को कोर्ट से नहीं मिली राहत
अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को सोमवार को राहत नहीं मिल सकी, क्योंकि सोनीपत की जिला अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रोफेसर को हिरासत में रखा जाना उचित है। इस मामले की अगली सुनवाई अब 27 मई को निर्धारित की गई है। प्रोफेसर महमूदाबाद को रविवार को ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित एक सोशल मीडिया पोस्ट के मामले में गिरफ्तार किया गया था।
गिरफ्तारी के बाद से ही यह मामला विवादों में है, क्योंकि प्रोफेसर पर देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरे में डालने सहित कई गंभीर धाराओं के तहत दो प्राथमिकी दर्ज की गई हैं। यह आरोप उनकी सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणियों के आधार पर लगाए गए हैं, जो कथित तौर पर देशविरोधी मानी गईं। हरियाणा राज्य महिला आयोग ने भी उनकी विवादास्पद टिप्पणियों पर संज्ञान लेते हुए उन्हें नोटिस भेजा था।
हालांकि, प्रोफेसर महमूदाबाद का कहना है कि उनके बयानों का गलत मतलब निकाला गया है। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग किया और किसी भी तरह से संविधान या कानून का उल्लंघन नहीं किया।
मामले ने तब और तूल पकड़ लिया जब सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करने की सहमति दी। इस याचिका में उन्होंने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी है और इसे असंवैधानिक करार देने की मांग की है। चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने प्रोफेसर महमूदाबाद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों पर विचार किया।
सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में जोर देकर कहा कि प्रोफेसर महमूदाबाद को देशभक्ति से जुड़े बयान देने के कारण गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने अदालत से अपील की कि इस मामले को अत्यधिक प्राथमिकता दी जाए और इसे जल्द से जल्द सूचीबद्ध किया जाए। सिब्बल ने कहा, “इस तरह की गिरफ्तारी न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ भी है। कृपया इस याचिका को आज ही सूचीबद्ध करें।”
प्रधान न्यायाधीश ने उनकी अपील पर सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि मामले को मंगलवार या बुधवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। यह घटना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों के दायरे में चल रही बहस को फिर से केंद्र में ले आई है।
इस बीच, विभिन्न संगठनों, शिक्षाविदों और छात्रों ने प्रोफेसर की गिरफ्तारी की निंदा की है। उन्होंने इसे शिक्षाविदों पर दबाव बनाने और लोकतांत्रिक अधिकारों को कमजोर करने का प्रयास बताया है। कुछ संगठनों ने यह भी सवाल उठाया है कि क्या प्रोफेसर की टिप्पणियों को देश की सुरक्षा के लिए वास्तविक खतरा माना जा सकता है। वहीं, सरकार और सुरक्षा एजेंसियों का तर्क है कि देश की संप्रभुता और अखंडता से जुड़े मामलों में कोई समझौता नहीं किया जा सकता।