सरकारी संरक्षण से पूजा नहीं रुकती',वक्फ बिल पर सुनवाई में CJI ने खजुराहो मंदिर का दिया उदाहरण

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार से वक्फ संशोधन अधिनियम, 1995 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक बार फिर विस्तृत सुनवाई शुरू हो गई है। यह मामला लंबे समय से विचाराधीन है और अब इसकी सुनवाई चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस एची मसीह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच कर रही है। इससे पहले यह केस पूर्व जज संजीव खन्ना की बेंच में था, जिन्होंने अपने रिटायरमेंट से पहले इसे वर्तमान सीजेआई को सौंप दिया था। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने वक्फ कानून पर कड़ा ऐतराज जताते हुए कोर्ट के सामने कई अहम बिंदु रखे। उन्होंने कहा कि वक्फ की अवधारणा पूरी तरह से धार्मिक है और इसका अर्थ है – ‘अल्लाह के लिए स्थायी समर्पण’। जब कोई संपत्ति वक्फ के रूप में घोषित कर दी जाती है, तो वह न तो ट्रांसफर की जा सकती है, न ही उसमें कोई बदलाव संभव होता है। सिब्बल ने दलील दी कि वर्तमान वक्फ संशोधन अधिनियम एक ऐसा उपकरण बन गया है, जिससे सरकार किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित करके उस पर सीधा नियंत्रण स्थापित कर सकती है, बिना किसी पारदर्शी प्रक्रिया या न्यायिक जांच के। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के तहत किसी संपत्ति को वक्फ घोषित करने का अधिकार सिर्फ एक सरकारी अधिकारी को दे दिया गया है, जिसके फैसले से कई विवाद पैदा हो सकते हैं। उन्होंने चिंता जताई कि यह अधिकार मनमाने ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे संपत्ति के मालिकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा। 


कपिल सिब्बल ने ऐतिहासिक स्मारकों को लेकर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यदि कोई वक्फ संपत्ति किसी ऐतिहासिक महत्व के कारण सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित कर दी जाती है, तो उसका वक्फ का दर्जा समाप्त हो सकता है। इससे वहां की धार्मिक गतिविधियों पर रोक लग सकती है और लोगों के पूजा-अर्चना के अधिकार का हनन होगा। इस पर चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने एक उदाहरण पेश करते हुए कहा कि किसी संपत्ति के सरकारी संरक्षण में आने का मतलब यह नहीं है कि उपासना का अधिकार छिन जाएगा। उन्होंने खजुराहो मंदिर का उदाहरण देते हुए कहा कि यह एक संरक्षित स्मारक है, लेकिन आज भी वहां आम लोग पूरी श्रद्धा के साथ पूजा कर सकते हैं। उन्होंने यह संकेत दिया कि कानून का उद्देश्य संरक्षण है, प्रतिबंध नहीं। सुनवाई के दौरान यह भी चर्चा हुई कि वक्फ अधिनियम को पारित करते समय क्या प्रक्रियागत खामियां थीं और क्या यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 25-28 (धार्मिक स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 300A (संपत्ति के अधिकार) का उल्लंघन करता है। 

इस बेहद संवेदनशील और कानूनी रूप से जटिल मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला न सिर्फ वक्फ संपत्तियों के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि धार्मिक, सामाजिक और संवैधानिक संतुलन को लेकर भी एक बड़ा उदाहरण बन सकता है।

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