
जज के घर बरामद बेहिसाब नकदी पर चुप्पी क्यों? उपराष्ट्रपति ने FIR न होने पर उठाए सवाल
मार्च 2025 में दिल्ली में हुए एक अग्निकांड के दौरान हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से बेहिसाब नकदी बरामद हुई थी। इस सनसनीखेज घटना के कई महीने बीत जाने के बावजूद अब तक कोई प्राथमिकी (FIR) दर्ज नहीं की गई है। इस स्थिति पर सोमवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गंभीर सवाल उठाते हुए न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता और जवाबदेही पर बहस को नया मोड़ दे दिया।
एक पुस्तक विमोचन समारोह में बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “लोग जानना चाहते हैं – उस नकदी का स्रोत क्या था? उसका उद्देश्य क्या था? क्या न्यायिक प्रक्रिया इससे प्रभावित हुई? और इस पूरे मामले में असली मास्टरमाइंड कौन है?”
धनखड़ ने इसे “अरबों लोगों के मन को झकझोरने वाली घटना” बताते हुए गहन, वैज्ञानिक और फोरेंसिक जांच की आवश्यकता पर बल दिया ताकि सच्चाई सामने आ सके और कुछ भी छिपा न रहे। इस घटना के बाद, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने 22 मार्च को एक तीन सदस्यीय आंतरिक समिति का गठन किया था। समिति की रिपोर्ट में आरोपों को “विश्वसनीय” माना गया, फिर भी न तो कोई FIR दर्ज की गई और न ही किसी प्रकार की कानूनी कार्रवाई हुई।
धनखड़ ने सवाल उठाया कि क्या केवल एक आंतरिक जांच रिपोर्ट, जिसकी संवैधानिक वैधता स्पष्ट नहीं है, इतनी गंभीर घटना के लिए पर्याप्त मानी जा सकती है? उन्होंने यह भी कहा कि जब जनता का भरोसा पूरी तरह न्यायपालिका पर टिका हो, तब केवल प्रशासनिक प्रक्रिया पर्याप्त नहीं मानी जा सकती।
उपराष्ट्रपति ने 1991 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के वीरास्वामी फैसले पर भी सवाल उठाए, जिसमें किसी न्यायाधीश के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए उच्च स्तर की पूर्व स्वीकृति को अनिवार्य बताया गया है।
धनखड़ के अनुसार, “इस तरह की व्यवस्था न्यायिक प्रणाली के चारों ओर एक 'दंडमुक्ति का कवच' बना देती है। अगर हम पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना चाहते हैं, तो इस पर पुनर्विचार जरूरी है।” धनखड़ ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, “लुटियंस दिल्ली में हमारे एक न्यायाधीश के घर नोट जलाए गए, बेहिसाब नकदी बरामद हुई, लेकिन आज तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई। क्या यह कानून के शासन वाला देश है?”
उन्होंने आगे कहा कि कानून के शासन में एक पल की भी देरी नहीं होनी चाहिए और लोकतंत्र की रक्षा के लिए संस्थाओं व व्यक्तियों दोनों को जवाबदेह ठहराना ज़रूरी है।
अपने भाषण में उपराष्ट्रपति ने लोकतंत्र की तीन आधारशिलाओं – अभिव्यक्ति, संवाद और जवाबदेही – पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि केवल बोलने की स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं है, जब तक कि उसमें संवाद और आत्ममंथन की भावना न हो। “किसी संस्था या व्यक्ति को जांच से बाहर रखना, उसे पतन की ओर ले जाने का सबसे निश्चित मार्ग है।” धनखड़ ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की इस बात के लिए प्रशंसा की कि उन्होंने समिति की रिपोर्ट जैसे संवेदनशील आंतरिक दस्तावेजों को सार्वजनिक किया। उन्होंने इसे न्यायपालिका में विश्वास बहाली की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया और उम्मीद जताई कि पारदर्शिता और जवाबदेही की यह परंपरा भविष्य में और मजबूत होगी।
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