बिहार वोटर लिस्ट से 65 लाख नाम गायब: महिलाओं और मुसलमानों पर सबसे बड़ी मार
बिहार में चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट का नया ड्राफ्ट जारी किया है, जिसके तहत 65 लाख 60 हज़ार वोटरों के नाम हटा दिए गए हैं। इनमें आधे से ज़्यादा महिलाएँ हैं। कहा जाता है कि नीतीश कुमार के शराब बंदी के फैसले के बाद महिलाएँ सबसे ज़्यादा खुश थीं, लेकिन अब बाहर हुए वोटरों में अधिकांश महिलाएँ ही हैं। क्या इससे नीतीश कुमार की पार्टी की स्थिति कमज़ोर होगी, जैसा महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के साथ हुआ था?
यह मामला सिर्फ़ महिलाओं तक सीमित नहीं है। आँकड़े (बिहार वोटर लिस्ट) दिखाते हैं कि जिन पाँच ज़िलों में सबसे ज़्यादा वोटर हटाए गए हैं, वे उन दस ज़िलों में शामिल हैं जहाँ मुस्लिम आबादी सबसे अधिक है। क्या यह महज़ संयोग है या कोई सोची-समझी रणनीति? ये वोटर वे हैं जिन्होंने 24 जून से 26 जुलाई के बीच अपने फॉर्म भरे थे, लेकिन अब उनसे सबूत माँगा जा रहा है कि वे देश के नागरिक हैं। तेजस्वी यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि सबसे ज़्यादा वोटर लालू प्रसाद के क्षेत्र से हटाए गए हैं। सवाल उठते हैं: जिन सीटों पर मुस्लिम वोटर जीत-हार तय करते हैं, वहाँ कितने वोट कटे? जातिगत आधार पर कितने वोट हटाए गए? क्या SC/ST वोटरों की कटौती ज़्यादा हुई?
क्या कहता है बिहार वोटर लिस्ट का आँकड़ा?
ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से 65 लाख 60 हज़ार लोगों के नाम हटाए गए हैं। इनमें 22 लाख 30 हज़ार लोग मृत घोषित किए गए।
36 लाख 30 हज़ार लोगों को कहा गया कि वे अब यहाँ नहीं रहते, स्थायी रूप से कहीं और चले गए, या मौजूद ही नहीं हैं।
7 लाख लोगों के नाम एक से ज़्यादा जगहों पर थे। चुनाव आयोग का दावा है कि यह सब SIR (Special Intensive Revision) प्रक्रिया के तहत हुआ। लेकिन आयोग के BLOs (Booth Level Officers) का कहना है कि उन्हें घर-घर जाकर वेरिफिकेशन का समय नहीं मिला। कुछ BLOs को निर्देश दिए गए कि घर जाए बिना ही दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर कर लें। पत्रकार अजीत अंजुम ने इस प्रक्रिया में धाँधली का खुलासा किया, लेकिन उनकी शिकायत पर कार्रवाई के बजाय उन पर ही FIR दर्ज कर दी गई।
गोपालगंज सबसे ज़्यादा प्रभावित ज़िला है, जहाँ 15.10% वोटरों के नाम हटाए गए। इसके बाद सीमांचल के पूर्णिया (12.08%) और किशनगंज (11.82%) का नंबर आता है। सीमांचल के चार ज़िलों (अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार) में वोटर कटौती का प्रतिशत क्रमशः 7.59%, 11.82%, 12.08%, और 8.27% है। इन ज़िलों में मुस्लिम आबादी अन्य ज़िलों की तुलना में ज़्यादा है।
नीतीश कुमार के गृह ज़िले नालंदा में केवल 6% वोटर हटाए गए, जो सबसे कम प्रभावित ज़िलों में से एक है। वहीं, लालू प्रसाद यादव के गोपालगंज में 15.10% वोटर हटाए गए, जो बिहार के 38 ज़िलों में सबसे ज़्यादा है। हर छठा-सातवाँ वोटर यहाँ लिस्ट से बाहर है।
मुस्लिम और दलित क्षेत्रों पर असर
SC रिज़र्व सीटों जैसे भोरे, पिरपैंती, और राजनगर में भी कटौती देखी गई। किशनगंज (68% मुस्लिम आबादी), कटिहार (44%), अररिया (43%), पूर्णिया (39%), दरभंगा, पश्चिम चंपारण, सीतामढ़ी (22%), पूर्वी चंपारण (19%), भागलपुर और मधुबनी (18%) जैसे ज़िलों में मुस्लिम आबादी ज़्यादा है। इन ज़िलों में वोटर कटौती का प्रतिशत भी अधिक है। जब इन आँकड़ों को प्लॉट किया गया, तो साफ़ दिखा कि जैसे-जैसे मुस्लिम आबादी बढ़ती है, वोटर कटौती की दर भी बढ़ती है।
बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 43 सीटों पर 60% या उससे ज़्यादा हटाए गए नाम महिलाओं के हैं। 1 जनवरी 2025 की वोटर लिस्ट में 47.7% महिलाएँ थीं, जो 1 अगस्त 2025 के ड्राफ्ट में घटकर 47.2% रह गईं। दक्षिण बिहार के कैमूर ज़िले में सबसे ज़्यादा 64% महिला वोटरों के नाम कटे। राजपुर (SC रिज़र्व) सीट पर 69% और ब्रह्मपुर सीट पर 63% SC महिला वोटरों के नाम हटाए गए। बक्सर में 63% महिला वोटरों को लिस्ट से हटाया गया।
बिहार वोटर लिस्ट में खामियाँ
ड्राफ्ट में कई त्रुटियाँ सामने आईं। तेजस्वी यादव ने दावा किया कि उनका नाम भी वोटर लिस्ट में नहीं है। कई जगह वोटर के पति का नाम "हसबैंड" ही लिखा गया। उदाहरण- गया (बाराचट्टी): बूथ नंबर 305 पर एक ही Epic नंबर (DQN0922989) पर प्रमिला देवी और शांति देवी के नाम दर्ज।
भोरे विधानसभा: बूथ नंबर 339 पर कुदरत खाँ और शैलेश प्रसाद के नाम SIR में नहीं, लेकिन आयोग ने अलग Epic नंबरों के साथ उनके नाम होने का दावा किया।
तरारी विधानसभा: बूथ नंबर 210 पर विनय कुमार तिवारी ने तीन अलग-अलग नामों से वोटर लिस्ट में जगह बनाई।
औरंगाबाद: बूथ 31 और 32 से सही वोटरों (प्रमिला देवी, सुमित्रा देवी, आदि) के नाम हटाए गए।
दीघा: बूथ 260 और 262 पर 10 मृत वोटरों के नाम SIR में शामिल।
जहानाबाद: जाफरगंज के मुस्लिम मुहल्ले में 200 से ज़्यादा वोटरों के नाम काटे गए।
क्या यह वोटर लिस्ट की कटौती कुछ खास समुदायों और ज़िलों को टारगेट करके की गई है? क्या यह चुनाव से पहले जनता की चुपके से छँटनी है, ताकि हाशिए पर मौजूद समुदाय और सवाल उठाने वाले लोग वोटिंग में असर न डाल सकें? महिलाओं, दलितों, और मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में ज़्यादा कटौती ने कई सवाल खड़े किए हैं। क्या यह लोकतंत्र का सशक्तिकरण है या कमज़ोर करने की प्रक्रिया?