
बंगाली मुस्लिमों को ‘घुसपैठिया’ बताकर भारत से निकला जा रहा : HRW रिपोर्ट
न्यूयॉर्क स्थित मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) ने भारत सरकार द्वारा प्रवासी मुसलमानों, खासकर रोहिंग्या और बंगाली मुस्लिमों के खिलाफ की गई कार्रवाई को गंभीर रूप से अनुचित और जल्दबाज़ी में लिया गया कदम बताया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि निष्कासन की ये कार्रवाइयाँ "उचित प्रक्रिया से जुड़े अधिकारों, घरेलू गारंटियों और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों की अवहेलना" करती हैं।
बंगाली मुस्लिमों को बनाया जा रहा निशाना: HRW रिपोर्ट
एचआरडब्ल्यू की एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली पियर्सन ने कहा, "सरकार राजनीतिक समर्थन जुटाने के लिए उन समुदायों को निशाना बना रही है जिन्हें ऐतिहासिक रूप से भारत ने शरण दी है। यह भारत के मानवीय मूल्यों और शरण देने की परंपरा को कमजोर करता है।"
रिपोर्ट में मई 2025 में हुई घटना का ज़िक्र है, जिसमें लगभग 40 रोहिंग्या शरणार्थियों को कथित रूप से हिरासत में लेकर अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में नौसेना के जहाज से छोड़ दिया गया। यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने इन दावों को "खूबसूरती से गढ़ी गई कहानी" करार दिया, लेकिन केंद्र सरकार ने इन आरोपों का अब तक सार्वजनिक खंडन नहीं किया है।
एचआरडब्ल्यू के अनुसार, जिन लोगों को निष्कासित किया गया, उनमें कुछ बांग्लादेशी नागरिक थे, जबकि अन्य भारत के ही पूर्वोत्तर और पूर्वी राज्यों — विशेष रूप से असम और पश्चिम बंगाल — के बंगाली भाषी मुसलमान थे। रिपोर्ट बताती है कि कई लोगों को बिना उचित प्रक्रिया के सीधे देश से निकाल दिया गया, जबकि कानूनन किसी की नागरिकता की पुष्टि किए बिना ऐसा नहीं किया जा सकता।
विशेष रूप से असम से करीब 300 लोगों को निष्कासित किया गया, जहां पहले से ही नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया (NRC) को लेकर विवाद जारी है। अन्य प्रवासी मजदूर पश्चिम बंगाल से काम की तलाश में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और दिल्ली जैसे राज्यों में पहुंचे थे।
राजनीतिक एजेंडे में 'घुसपैठ' का मुद्दा
बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उससे जुड़े संगठनों के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह मुद्दा विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में चुनावी रूप से संवेदनशील है, जो 2026 के विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण राज्य बना हुआ है। एचआरडब्ल्यू ने ऐसे दर्जनों पीड़ितों और उनके परिजनों से बातचीत की, जिनमें से कई को बांग्लादेश भेजा गया था और बाद में वे किसी तरह भारत लौटे।
मुंबई में पांच साल से रह रहे पश्चिम बंगाल के प्रवासी मज़दूर नजीमुद्दीन शेख ने बताया, "पुलिस ने मेरे घर पर छापा मारा, मेरे पहचान पत्र फाड़ दिए, और मुझे 100 से अधिक लोगों के साथ सीमा पर छोड़ दिया गया।"
उन्होंने कहा, "अगर हम कुछ कहते थे, तो हमें पीटा जाता था। मेरी पीठ और हाथों पर लाठियां मारी गईं। वे कहते थे — तुम बांग्लादेशी हो।"
इसी तरह असम के एक अन्य मजदूर ने बताया, "जब मुझे बांग्लादेश ले जाया गया, तो ऐसा लगा जैसे मैं एक लाश हूं। वहां बंदूकधारी लोग थे। मुझे लगा कि वे मुझे गोली मार देंगे और मेरे परिवार को कभी पता भी नहीं चलेगा।"
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