
बाढ़-भूस्खलन से रेलवे परियोजनाओं को झटका, 5 साल में 200 करोड़ रुपये का नुक़सान
भारतीय रेलवे देशभर में अपने नेटवर्क के विस्तार पर ज़ोर दे रहा है, विशेषकर पूर्वोत्तर राज्यों में रेल संपर्क को बेहतर बनाने के लिए कई परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। हालांकि, इन पहाड़ी इलाकों में बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण इन परियोजनाओं की रफ्तार बार-बार प्रभावित हो रही है। इसी वजह से बीते पांच वर्षों में 200 करोड़ रुपये से अधिक का रेलवे को नुकसान झेलना पड़ा है। यह जानकारी रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को लोकसभा में दी।
रेल मंत्री ने बताया कि परियोजनाओं की योजना बनाते समय पूर्वोत्तर राज्यों की भौगोलिक जटिलताओं और पर्यावरणीय जोखिमों को ध्यान में रखा जाता है। उन्होंने कहा, "पिछले पांच वर्षों में बाढ़, भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे की पटरियों और संरचनाओं को भारी नुकसान पहुंचा है, जिसका कुल आकलन 200 करोड़ रुपये से अधिक है।"
रेलवे को नुकसान: कुल 12 रेल परियोजनाओं को मंज़ूरी
रेल मंत्रालय के अनुसार, 1 अप्रैल 2025 तक पूर्वोत्तर क्षेत्र में कुल 12 रेल परियोजनाओं को मंज़ूरी दी जा चुकी है, जिनमें आठ नई रेल लाइनें और चार दोहरीकरण परियोजनाएं शामिल हैं। इनका कुल ट्रैक विस्तार 777 किलोमीटर है और इन पर अनुमानित खर्च 69,342 करोड़ रुपये बैठता है। मार्च 2025 तक इनमें से 278 किलोमीटर लंबी परियोजनाओं पर 41,676 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं।
वैष्णव ने संसद को यह भी बताया कि मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड जैसे राज्यों में निर्माण कार्य शुरू करने से पहले विस्तृत भू-तकनीकी जांच और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अनिवार्य रूप से कराया जाता है।
इन अध्ययनों के ज़रिए ढलानों की स्थिति, चट्टानों और मिट्टी की प्रकृति, वनस्पति आवरण और जल विज्ञान पैटर्न का विश्लेषण किया जाता है। इन निष्कर्षों के आधार पर निर्माण के दौरान भूस्खलन जैसे जोखिमों को कम करने की रणनीति अपनाई जाती है। पूर्वोत्तर भारत की भौगोलिक स्थिति रेलवे परियोजनाओं के लिए तकनीकी चुनौती पेश करती है। यहां की अस्थिर मिट्टी, अत्यधिक वर्षा और संवेदनशील ढलानों के कारण बुनियादी ढांचे की मजबूती को लेकर विशेष सतर्कता बरती जाती है। इसके बावजूद सरकार इस क्षेत्र को मुख्यधारा रेल नेटवर्क से जोड़ने के अपने संकल्प पर कायम है।
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