
संविधान की प्रस्तावना पर संघ-सरकार में मतभेद, 'समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष'शब्दों को हटाने पर क्या बोली सरकार?
भारतीय संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की मांग को लेकर जारी बहस के बीच केंद्र सरकार ने स्थिति साफ कर दी है। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गुरुवार को राज्यसभा में कहा कि सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है और न ही इस दिशा में कोई संवैधानिक या कानूनी प्रक्रिया शुरू की गई है। दरअसल, समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन ने यह सवाल उठाया था कि क्या केंद्र सरकार संविधान की उद्देशिका में प्रयुक्त इन दो शब्दों पर पुनर्विचार की योजना बना रही है, और क्या कुछ सामाजिक संगठनों द्वारा इसके लिए माहौल तैयार किया जा रहा है?
‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की माँग किसने की?
यह सवाल तब और प्रासंगिक हो गया जब आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा कि संविधान की मूल प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द नहीं थे और इनकी प्रासंगिकता पर आज चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि ये शब्द 1976 में आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन के जरिए जोड़े गए थे।
उनके इस बयान के बाद असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ समेत कई भाजपा नेताओं ने भी इन शब्दों को हटाने की पैरवी की।
इन बयानों के विपरीत, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि कुछ सामाजिक संगठन या व्यक्ति इस पर चर्चा कर सकते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि सरकार इस दिशा में कोई औपचारिक निर्णय ले चुकी है। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से अब तक ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं लाया गया है और फिलहाल इन शब्दों को हटाने की कोई योजना नहीं है। कानून मंत्री ने नवंबर 2024 में आए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी उल्लेख किया। डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ मामले में कोर्ट ने 42वें संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा था कि ‘समाजवाद’ भारतीय संदर्भ में कल्याणकारी राज्य का प्रतीक है और ‘धर्मनिरपेक्षता’ संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न अंग है।
प्रस्तावना में शब्दों का इतिहास
भारत के संविधान की प्रस्तावना में प्रारंभ में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द शामिल नहीं थे। संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को अंगीकृत प्रस्तावना में भारत को "एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, लोकतंत्रात्मक गणराज्य" कहा गया था। 1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल के दौरान 42वें संशोधन के जरिए इन दोनों शब्दों को जोड़ा, जिसके बाद से इन पर समय-समय पर बहस होती रही है।
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