
ABVP के साथ झगड़ा, फिर गायब और अब केस बंद, कहा है JNU स्टूडेंट नजीब ?
15 अक्टूबर 2016 को देश की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से M.Sc बायोटेक्नोलॉजी फ़र्स्ट ईयर के छात्र नजीब अहमद अचानक लापता (JNU स्टूडेंट नजीब) हो जाते हैं। उन्हें दाख़िला लिए सिर्फ़ 2 से 3 महीने ही हुए थे। फिर उनका लापता होना एक ऐसी पहेली बन कर रह जाता है, जिसे जैसे देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी CBI भी नहीं सुलझा सकी। बीते 30 जून को दिल्ली के राउज़ एवेन्यू की निचली अदालत ने CBI की क्लोज़र रिपोर्ट को स्वीकृति दे दी, जिसके बाद JNU की दीवारों पर लिखा सवाल फिर अनसुलझा रह गया – नजीब कहाँ है? हम JNU गए और हमारी मुलाकात नजीब की अम्मी और उनके रूममेट से हुई। साथ में हमने इस मामले को समझने के लिए कुछ छात्र–छात्राओं से भी बात की।
JNU स्टूडेंट नजीब का इंतजार कर रही मां फातिमा
9 सालों से अपने बेटे को खोज रहीं नजीब की अम्मी फ़ातिमा नफ़ीस बताती हैं, "नजीब खुद नहीं गया, उसे ग़ायब किया गया। पहले दिन से पुलिस ने हमें गुमराह किया, सबूत मिटाए। SIT आई, उसने बची-खुची कसर पूरी की। फिर क्राइम ब्रांच ने फ़र्ज़ी ऑटो वाला और प्रोफेसर प्लांट किए, लेकिन CBI ने इन सबका पर्दाफ़ाश किया। नजीब ऑटो में नहीं गया था, ये झूठ है।"
अम्मी नजीब को याद करते हुए कहती हैं, "नजीब जहाँ भी होगा, सेफ़ होगा। अगर नजीब के साथ सब खड़े रहते, तो शायद उसे कोई ग़ायब नहीं कर सकता था।
CBI की क्लोज़र रिपोर्ट पर फ़ातिमा जी कहती हैं, "मैं नजीब का केस लड़ती रहूँगी, आख़िरी साँस तक लड़ूँगी। क्लोज़र रिपोर्ट को आगे कोर्ट में चैलेंज किया जाएगा। सभी स्टूडेंट्स, यूनिवर्सिटीज़ से आए छात्र मेरे साथ हैं और रहेंगे। डरने की ज़रूरत नहीं है — ये यूनिवर्सिटीज़ हमारी हैं, हमारा हक़ है यहाँ पढ़ना।"
नजीब को JNU के माही मांडवी हॉस्टल का रूम नंबर 106 अलॉट हुआ था। 14 अक्टूबर 2016 की रात नजीब और ABVP से जुड़े कुछ छात्रों के बीच हिंसक झड़प हुई। अगले दिन नजीब की बात उनकी मां फ़ातिमा नफ़ीस से हुई, जिसमें उन्होंने कहा था, "मेरे साथ कुछ ग़लत हुआ है।" मां और भाई बदायूं से ट्रेन लेकर 15 की दोपहर दिल्ली पहुँचते हैं। JNU के हॉस्टल नजीब से मिलने गए, पर नजीब वहाँ नहीं मिला।
“हर सुबह आँख खोलता हूँ तो नजीब सामने होता है"
माही मांडवी हॉस्टल में नजीब के रूममेट और इस केस के गवाह रहे मोहम्मद क़ासिम नजीब को याद करते हुए बताते हैं, "आज इतने साल हो गए हैं। कोई ऐसी रात नहीं हुई जिस रात मैंने नजीब को नहीं याद किया हो। अभी भी जब सो कर उठता हूँ तो सामने नजीब की तस्वीर कमरे में लगी है। मेरी ज़िंदगी का एक ही मक़सद है — नजीब को इंसाफ़ मिले।"
जांच पर सवाल उठाते हुए क़ासिम कहते हैं, "अगर जांच एजेंसियाँ नजीब को ढूँढ नहीं सकतीं, तो वो क़बूल कर लें अपनी नाकामी को। JNU एडमिनिस्ट्रेशन ने भी अपने छात्र को खोजने की कोई कोशिश नहीं की।"
नजीब की अम्मी पर बात करते हुए क़ासिम कहते हैं, "मां की हिम्मत से हमें ताक़त मिलती है। फ़ातिमा अम्मी को अपनी मां जैसा मानता हूँ और उसी दर्द को समझने की कोशिश कर रहा हूँ। हमारे सारे सवालों का एक ही जवाब है — नजीब।"
नजीब के केस की तहक़ीक़ात शुरुआत में दिल्ली पुलिस ने की, फिर क्राइम ब्रांच और उसके बाद CBI ने। 560 गवाहों से पूछताछ, इंटरपोल की मदद, जेल प्रशासन, वक़्फ़ बोर्ड, रेलवे, एयरलाइंस, टैक्सी ऑपरेटर, ऑटो ड्राइवर और टेलीकॉम कंपनियों से जानकारी जुटाना, पता बताने वाले को 10 लाख के इनाम का ऐलान — और भी तमाम कोशिशें, जिन्हें CBI अपनी क्लोज़र रिपोर्ट में बताती है, लेकिन नजीब नहीं मिला।
JNU छात्रों का ग़ुस्सा और सवाल
नजीब केस पर जब हमने JNU स्टूडेंट्स से बात की तो उन्होंने जांच में लापरवाही का आरोप लगाया।
JNU प्रेसिडेंट नीतीश कुमार ने हमें बताया, "नजीब के केस को 9 साल हो गए हैं, लेकिन शुरू से ही दिल्ली पुलिस और CBI ने इसे सुलझाने के बजाय सबूतों को मिटाने का काम किया। जिन ABVP के 9 लोगों पर मारपीट का आरोप था, उनसे कभी गंभीरता से पूछताछ नहीं हुई, न गिरफ्तारी हुई। CBI ने क्लोज़र रिपोर्ट फाइल की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया — जिसकी हम कड़ी निंदा करते हैं और इसे चुनौती देंगे।"
JNSU की पूर्व प्रेसिडेंट आइशी घोष ने जब हमसे बात की तो उन्होंने दो टूक कहा, "सबूत मिटाने की कोशिश पहले दिन से शुरू हो गई थी। 15–20 दिन बाद स्निफर डॉग लाकर जांच शुरू करना इसी का सबूत है। फ़ातिमा अम्मी को न सरकार से और न ही शिक्षा मंत्रालय से कोई संवेदना या सहयोग मिला।" JNU AISA अध्यक्ष रणविजय ने कहा, "जब रूममेट का नार्को टेस्ट हो सकता है, तो आरोपियों का क्यों नहीं?"
"नजीब की मां जब कैंपस पहुँचीं, उससे ठीक आधे घंटे पहले नजीब ग़ायब हो चुका था। वो मां जो बेटे से मिलने आई थी, सोचिए उनका दर्द क्या होगा।"
देश के सेंट्रल यूनिवर्सिटीज़ में माइनॉरिटी स्टूडेंट्स की सुरक्षा को लेकर भी स्टूडेंट्स ने हमसे बात की।
आइशी घोष ने कहा, "पिछले छात्रसंघ चुनाव के दौरान जॉइंट सेक्रेटरी मोहम्मद साजिद को ‘नजीब की तरह ग़ायब कर देंगे’ जैसी धमकियाँ दी गईं। ये सब दिखाता है कि नजीब को एक डर का प्रतीक बनाया जा रहा है, ताकि माइनॉरिटी स्टूडेंट्स खामोश रहें।"
"हमारी लड़ाई इसी सोच के ख़िलाफ़ है। नजीब का मामला सिर्फ़ एक यूनिवर्सिटी का नहीं, पूरे देश के माइनॉरिटी स्टूडेंट्स की सुरक्षा का मामला है। किसी भी छात्र को डर के कारण शिक्षा या यूनिवर्सिटी छोड़नी न पड़े — यही हमारी माँग है।"
JNSU की जनरल सेक्रेटरी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स की सुरक्षा पर चिंता जताते हुए कहती हैं, "जब से ये सरकार आई है, माइनॉरिटी समुदाय - चाहे दलित हों, मुस्लिम हों या महिलाएं - हम खुद को दबा हुआ महसूस कर रहे हैं। हमें अपनी आवाज़ उठाने में डर लगता है, और परिवार तक कहते हैं कि ‘नजीब जैसी हालत हो जाएगी।’ जब पुलिस, CBI, प्रशासन कुछ नहीं कर पाए, तो आम लोगों के मन में डर बैठना लाज़मी है।" आगे वो कहती हैं, "JNU की लेगेसी है — हम कभी कुछ नहीं भूलते। हम नजीब के लिए आवाज़ उठाते रहेंगे।"
CBI की क्लोज़र रिपोर्ट को भले ही कोर्ट ने मंज़ूरी दे दी हो, लेकिन इस फ़ाइल के बंद होने से एक मां का इंतज़ार खत्म नहीं होता। नजीब का ना मिलना, सिर्फ़ और सिर्फ़ सिस्टम की नाकामी पर सवाल खड़ा करता है।
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