देशभर में 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की हड़ताल: क्या हैं वो 17 मांगें जिन्हें लेकर भारत बंद का ऐलान हुआ?
आज देशभर में भारत बंद का व्यापक असर देखा जा रहा है। इसकी अगुवाई देश की 10 प्रमुख केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके सहयोगी संगठनों ने की है। इन संगठनों ने केंद्र सरकार पर ‘मजदूर विरोधी, किसान विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक’ नीतियों का आरोप लगाते हुए राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। इस बंद का असर बैंकिंग, डाक सेवाओं, कोयला खनन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और कई सरकारी कामकाज पर पड़ सकता है। कुछ इलाकों में ट्रेनों के प्रभावित होने और बिजली आपूर्ति में बाधा की आशंका भी जताई जा रही है।
ट्रेड यूनियनों का कहना है कि उन्होंने सरकार के समक्ष 17 सूत्रीय मांगों का एक चार्टर पेश किया था, जिसे लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है। यूनियन पदाधिकारियों का आरोप है कि पिछले 10 वर्षों में सरकार ने एक बार भी वार्षिक श्रम सम्मेलन नहीं बुलाया है। इसके अलावा वे सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करने और जन आंदोलनों को अपराधी ठहराने का भी आरोप लगा रहे हैं। महाराष्ट्र में प्रस्तावित पब्लिक सिक्योरिटी बिल और छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में समान प्रकृति के कानूनों को इसी कड़ी में देखा जा रहा है।
हड़ताल का प्रमुख विरोध सरकार द्वारा लागू किए गए चार नए लेबर कोड को लेकर है। ट्रेड यूनियनों का कहना है कि ये कोड श्रमिकों के हक छीनते हैं, कार्य के घंटे बढ़ाते हैं और हड़ताल के अधिकार को कमजोर करते हैं। साथ ही ये नियोक्ताओं को जवाबदेही से बचाते हैं और यूनियनों की स्वायत्तता को प्रभावित करते हैं। यूनियनें मांग कर रही हैं कि इन चारों कोडों को तुरंत रद्द किया जाए।
सरकार की निजीकरण नीति भी इस आंदोलन का एक बड़ा कारण बनी हुई है, खासकर बिजली वितरण और उत्पादन के क्षेत्र में। यूनियनों का कहना है कि इससे लाखों कर्मचारियों की नौकरी अस्थिर हो जाएगी और वेतन व सेवा की सुरक्षा भी खत्म हो जाएगी। इसका प्रभाव न सिर्फ कर्मचारियों बल्कि आम उपभोक्ताओं पर भी पड़ेगा।
इस भारत बंद में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC), AITUC, CITU, HMS, AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF और UTUC जैसे संगठन सक्रिय रूप से शामिल हैं। इनके साथ संयुक्त किसान मोर्चा और ग्रामीण श्रमिक संगठनों का समर्थन भी मिला है, जो इस आंदोलन को और व्यापक आधार दे रहा है। ट्रेड यूनियनें सरकार पर आरोप लगा रही हैं कि वह बेरोजगारी के संकट से निपटने में नाकाम रही है। नई भर्तियों को रोका जा रहा है, जबकि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को दोबारा नियुक्त किया जा रहा है। युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा, और महंगाई दिन-ब-दिन बढ़ रही है, जिससे निम्न और मध्यम वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है।
यूनियनें सार्वजनिक क्षेत्र में भर्ती फिर से शुरू करने, निजीकरण, आउटसोर्सिंग और ठेकाकरण पर रोक लगाने, चारों लेबर कोड रद्द करने, मनरेगा के कार्यदिवस और मजदूरी बढ़ाने तथा शहरी बेरोजगारों के लिए योजना लाने की मांग कर रही हैं। इसके अलावा वे शिक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) पर खर्च बढ़ाने की बात कर रही हैं।
न्यूनतम वेतन को ₹26,000 मासिक करने, पुरानी पेंशन योजना बहाल करने, कृषि उत्पादों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी और कर्जमाफी जैसे मुद्दे भी इनके एजेंडे में शामिल हैं।