
'मदद कीजिए, मां को असम से भेज दिया गया'- याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हाईकोर्ट जाएं
असम सरकार की उन कार्रवाईयों के खिलाफ, जिनमें कुछ व्यक्तियों को 'घुसपैठिया' घोषित कर बांग्लादेश डिपोर्ट किया जा रहा है, दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट में जाने की सलाह दी है। हालांकि, एक अलग मामले में एक पीड़ित व्यक्ति की व्यक्तिगत याचिका पर अदालत ने अगले सप्ताह सुनवाई तय की है। यूनुस अली नामक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि उसकी मां मोनोवारा को असम पुलिस ने गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया और अब उनका कोई अता-पता नहीं है। उसने कोर्ट से अपनी मां की तत्काल रिहाई की मांग की है।
वरिष्ठ अधिवक्ता शोएब आलम ने कोर्ट के समक्ष दलील दी कि मोनोवारा को 24 मई को धुबरी पुलिस स्टेशन में बयान दर्ज कराने के बहाने बुलाया गया और फिर उन्हें हिरासत में ले लिया गया। अधिवक्ता ने गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य में ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं, जहां लोगों को रातोंरात बांग्लादेश भेज दिया जा रहा है, जबकि उनके कानूनी मामले अदालतों में लंबित हैं।
वकील ने बताया कि मोनोवारा ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की थी, जिस पर नोटिस भी जारी हो चुके हैं। इसके बावजूद, उन्हें कथित रूप से डिपोर्ट कर दिया गया। उन्होंने बताया कि मोनोवारा 12 दिसंबर 2019 से उस सुप्रीम कोर्ट आदेश के तहत जमानत पर थीं, जिसमें कहा गया था कि विदेशी हिरासत शिविरों में तीन साल से अधिक समय बिता चुके लोगों को सशर्त रिहा किया जाए।
याचिका में गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस फैसले को भी चुनौती दी गई है, जिसमें मोनोवारा को विदेशी घोषित करने वाले विदेशी न्यायाधिकरण (Foreigners Tribunal) के निर्णय को सही ठहराया गया था। यूनुस अली का आरोप है कि जब वह थाने पहुंचा और मामले की कानूनी स्थिति बताई, तो न तो उसे अपनी मां से मिलने दिया गया, और न ही उनकी रिहाई पर कोई विचार किया गया।
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