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भारत-पाक युद्धविराम पर चीन का दावा खारिज।

 31 Dec 2025

भारत-पाकिस्तान युद्धविराम का दावा पर भारत का सख्त रुख


भारत-पाकिस्तान युद्धविराम: भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य तनाव को लेकर चीन द्वारा की गई मध्यस्थता की दावेदारी ने नई कूटनीतिक बहस को जन्म दिया है। बीजिंग ने यह संकेत देने की कोशिश की कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम कराने में उसकी भूमिका रही, लेकिन नई दिल्ली ने इस दावे को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया। 

भारत सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा कि दोनों देशों के बीच संघर्षविराम पूरी तरह द्विपक्षीय प्रक्रिया थी और इसमें किसी भी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं रही। विदेश मंत्रालय ने दो टूक शब्दों में कहा कि भारत की नीति लंबे समय से स्पष्ट है—किसी भी विवाद का समाधान केवल भारत और संबंधित देश के बीच सीधे संवाद से ही होगा।

हाल के दिनों में पाकिस्तान की ओर से सीमा पार तनाव बढ़ने के बाद भारत ने सख्त सैन्य कार्रवाई की थी। इसके बाद पाकिस्तान ने स्वयं भारत से संपर्क साधा और स्थिति को शांत करने की बात कही। भारतीय अधिकारियों के अनुसार, यही वह बिंदु था जहां दोनों देशों के सैन्य चैनलों के माध्यम से बातचीत हुई और संघर्षविराम पर सहमति बनी। इस प्रक्रिया में न तो किसी अंतरराष्ट्रीय मंच का उपयोग हुआ और न ही किसी देश ने मध्यस्थता की भूमिका निभाई। इसी पृष्ठभूमि में चीन का दावा भारत के लिए अस्वीकार्य रहा।

चीन के दावे और कूटनीतिक प्रतिक्रिया


चीन के विदेश मंत्री द्वारा सार्वजनिक रूप से यह कहना कि बीजिंग ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम कराने में भूमिका निभाई, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक संदेश देने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि चीन इस क्षेत्र में अपनी कूटनीतिक अहमियत को बढ़ाकर दिखाना चाहता है, खासकर ऐसे समय में जब दक्षिण एशिया की सुरक्षा स्थिति वैश्विक ध्यान का केंद्र बनी हुई है। हालांकि, भारत ने इस दावे को तथ्यों के विपरीत बताते हुए खारिज कर दिया और साफ किया कि इस तरह के बयान वास्तविक घटनाक्रम को गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारत ने हमेशा यह रेखांकित किया है कि पाकिस्तान के साथ सभी मुद्दे द्विपक्षीय हैं। किसी भी प्रकार की तीसरे पक्ष की मध्यस्थता न तो स्वीकार की गई है और न ही भविष्य में की जाएगी। यह प्रतिक्रिया केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि भारत की संप्रभुता और निर्णय-स्वतंत्रता पर आधारित नीति का स्पष्ट संकेत भी थी। इस पूरे घटनाक्रम में भारत-पाकिस्तान युद्धविराम का दावा को लेकर भारत का इनकार उसकी दीर्घकालिक विदेश नीति के अनुरूप माना जा रहा है।

क्षेत्रीय राजनीति और भविष्य की दिशा


इस विवाद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन किस दिशा में जा रहा है। चीन, पाकिस्तान का घनिष्ठ सहयोगी माना जाता है और उसकी किसी भी प्रकार की भूमिका को भारत संदेह की दृष्टि से देखता है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन का यह बयान केवल भारत-पाकिस्तान संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। वहीं भारत यह स्पष्ट करना चाहता है कि वह अपने पड़ोस में किसी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा।

भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम की प्रक्रिया ने यह भी दिखाया कि संकट की घड़ी में प्रत्यक्ष संवाद कितना महत्वपूर्ण है। सैन्य स्तर पर स्थापित संचार तंत्र ने स्थिति को नियंत्रण में रखने में अहम भूमिका निभाई। इससे यह संकेत भी मिला कि यदि दोनों पक्ष चाहें तो बिना किसी अंतरराष्ट्रीय दबाव के भी तनाव को कम किया जा सकता है। इस संदर्भ में भारत-पाकिस्तान युद्धविराम का दावा पर चीन की टिप्पणी को भारत ने न केवल खारिज किया, बल्कि यह भी दोहराया कि भविष्य में भी उसकी नीति में कोई बदलाव नहीं होगा।

दीर्घकालिक दृष्टि से देखें तो यह घटनाक्रम भारत की कूटनीतिक स्पष्टता को दर्शाता है। भारत ने न केवल अपने रुख को मजबूती से रखा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी यह संदेश दिया कि वह अपने राष्ट्रीय हितों पर कोई समझौता नहीं करेगा। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्षेत्रीय शक्तियां इस संदेश को किस तरह समझती हैं और दक्षिण एशिया की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ती है। फिलहाल इतना स्पष्ट है कि भारत-पाकिस्तान युद्धविराम का दावा को लेकर भारत ने अपनी स्थिति पूरी स्थिरताके साथ दुनिया के सामने रख दी है।