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पीएम कौशल विकास योजना में बड़ी गड़बड़ियों का खुलासा

 25 Dec 2025

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना को गरीबों के विकास के लिए लाया गया। लाखों युवाओं को रोजगार–योग्य कौशल देने का वादा किया गया था। लेकिन नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी (CAG) की रिपोर्ट ने दिखाया कि असल में इन युवाओं को धोखा मिला। इसे शी ट्रैक से चलाने की जिम्मेदारी प्रशिक्षण केंद्र, मंत्रालय और नेशनल स्किल डेवलपमेंट कारपोरेशन (NSDC) को सौंपी गई थी।

रिपोर्ट में बड़ा खुलासा


रिपोर्ट के अनुसार योजना का सबसे बड़ा वादा था रोजगार। लेकिन सीएजी ने पाया कि 34 लाख से ज्यादा उम्मीदवारों के भुगतान अब भी लंबित हैं। DBT सिर्फ 18.44% प्रमाणित उम्मीदवारों तक ही पहुंच पाया।

CAG ऑडिट रिपोर्ट 2025 में खुलासा हुआ कि एक ही बैंक अकाउंट नंबर से कई लाभार्थियों को जोड़ दिया गया। वहीं बंद हो चुके ट्रेनिंग सेंटरों के नाम पर फंड जारी होते रहे। अलग अलग राज्यों में एक जैसी लोगों की तस्वीरें अपलोड की गई, लेकिन आज भी लाखों उम्मीदवारों को वादा किया गया पैसा और रोजगार अब भी अधूरा है।

बैंक अकाउंट नंबर भी फर्जी निकले


प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना को 2015 में शुरू किया गया था और पिछले दस सालों में इसे सरकार ने अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश किया। लेकिन दिसंबर 2025 में आई सीएजी की रिपोर्ट ने दिखाया कि इन वर्षों में निगरानी और पारदर्शिता की भरी कमी रही। एक ही बैंक अकाउंट नंबर "1111111111" से कई लाभार्थियों को जोड़ दिया गया। यानी कागज़ पर तो कई लोगों को पैसा मिला, लेकिन असल में यह सब एक ही खाते में जा रहा था।

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कई राज्यों में एक ही फोटो का इस्तेमाल किया गया


इन गड़बड़ियों को पूरे देश में देखा गया। बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों में एक ही फोटो का इस्तेमाल किया गया। कई ट्रेनिंग सेंटर जो बंद हो चुके थे, वे भी भी फंड के लिए सक्रिय दिखाए गए। कैग वर्कर के अनुसार ये बहुत बड़ी गड़बड़ियां थीं। यानी समस्या किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं थी। बल्कि राष्ट्रीय स्तर एक फैली हुई थी।

PMKVY पर CAG की रिपोर्ट साफ बताती है कि योजना का फोकस असल कौशल विकास नहीं बल्कि आंकड़े चमकाने पर था। राजनीतिक दबाव और दिखावे की राजनीति ने इसे नंबर गेम बना दिया।

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 सरकार ने 2015 से 2022 के बीच प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना को लागू किया था। जिसमें लगभग 14,450 करोड़ रुपए का बजट दिया गया था। इस योजना का सही लक्ष्य 1.32 करोड़ युवाओं को आत्मनिर्भर बनाना था। लेकिन कागजी खानापूर्ति की कीमत देश के युवाओं को चुकानी पड़ी।


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