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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के 100 मीटर अरावली नियम को मंजूरी दी

 24 Dec 2025

भारत की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के 100 मीटर अरावली संरक्षण नियम को स्वीकार कर लिया है। इस फैसले, जिसे सुप्रीम कोर्ट का अरावली नियम के नाम से देखा जा रहा है, ने पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन को लेकर एक बार फिर व्यापक बहस छेड़ दी है। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब खुद सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति ने इस नियम का विरोध किया था। इसके बावजूद अदालत ने सरकार के रुख को मंजूरी देते हुए इसे लागू करने की अनुमति दे दी।

क्या है 100 मीटर अरावली नियम?


केंद्र सरकार ने अरावली क्षेत्र में निर्माण और विकास गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए यह नियम बनाया है। सुप्रीम कोर्ट का अरावली नियम के तहत अरावली पहाड़ियों के सीमित दायरे में कुछ गतिविधियों की अनुमति दी गई है, ताकि बुनियादी ढांचे का विकास हो सके। सरकार का तर्क है कि यह नियम पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से तैयार किया गया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट का अरावली नियम के तहत वैधानिक समर्थन मिला है।

विशेषज्ञ समिति का विरोध


दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट की ही एक पैनल ने इस नियम पर आपत्ति जताई थी। समिति का कहना था कि अरावली पर्वत श्रृंखला देश की सबसे पुरानी और संवेदनशील पारिस्थितिक प्रणालियों में से एक है। यहां किसी भी तरह का निर्माण कार्य न केवल जैव विविधता को नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि जलस्तर, वायु गुणवत्ता और जलवायु संतुलन पर भी गंभीर असर डाल सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण


सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि नीतिगत फैसलों में न्यायपालिका को अत्यधिक हस्तक्षेप से बचना चाहिए। अदालत के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट का अरावली नियम को विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन के तौर पर देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भरोसा भी जताया कि संबंधित एजेंसियां नियमों के पालन और पर्यावरण सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाएंगी।

पर्यावरणविदों की चिंता


इस फैसले के बाद पर्यावरण विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों में चिंता बढ़ गई है। उनका मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का अरावली नियम के तहत निर्माण गतिविधियों की अनुमति भविष्य में बड़े पर्यावरणीय खतरे पैदा कर सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि अरावली दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता सुधारने में अहम भूमिका निभाती है और इसका क्षरण पूरे क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है।

सरकार का पक्ष


सरकार का कहना है कि नियम के तहत अंधाधुंध निर्माण की अनुमति नहीं दी गई है। केवल सीमित और नियंत्रित गतिविधियों को मंजूरी दी जाएगी, साथ ही पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) जैसे प्रावधानों का सख्ती से पालन किया जाएगा। सरकार का दावा है कि इस फैसले से रोजगार सृजन और बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा मिलेगा।

निष्कर्ष


कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला विकास बनाम पर्यावरण की बहस को एक बार फिर केंद्र में ले आया है। जहां सरकार इसे संतुलित विकास की दिशा में कदम बता रही है, वहीं पर्यावरणविद इसे प्रकृति के लिए खतरा मान रहे हैं। आने वाले समय में Supreme Court Aravalli rule के प्रभाव यह तय करेंगे कि क्या अरावली जैसी संवेदनशील पारिस्थितिकी वास्तव में सुरक्षित रह पाएगी या नहीं।

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