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Advocate M L Sharma: निर्भया केस वकील का निधन, जनहित याचिकाओं का चमकता करियर

 23 Dec 2025

सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाओं और हाई‑प्रोफाइल मामलों के लिए जाने जाने वाले Advocate M L Sharma का निधन हो गया है। 69 वर्ष की आयु में गुर्दे से जुड़ी बीमारी के इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली, जिससे न्यायिक विशेषज्ञता और विवादित कानूनी मुकदमों के चर्चित चेहरे का अध्याय समाप्त हो गया। 


शर्मा लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएँ (PIL) दायर करने के लिए सुर्खियों में रहे और उन्होंने कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले, राफेल सौदा, अनुच्छेद 370, पेगासस फोन जासूसी आरोपों और हैन्डेनबर्ग रिपोर्ट जैसे कई मामलों में दखल दिया। लेकिन उनकी पहचान सबसे अधिक 2012 के निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में एक आरोपी के वकील के रूप में रही, जिसने उन्हें विवादों के बीच सार्वजनिक और कानूनी बहस का प्रमुख पात्र बना दिया।

Advocate M L Sharma की कानूनी पहचान और विवादित करियर


Advocate M L Sharma ने अपने करियर की शुरुआत इलाहाबाद हाई कोर्ट में 1991 में की और बाद में दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में स्थान बनाया। उन्हें ‘सीरियल पेटीशनर’ के रूप में जाना जाता था क्योंकि वे अक्सर सुप्रीम कोर्ट में हर बड़े राजनीतिक मुद्दे पर जनहित याचिका (PIL) दायर करते थे, जिससे वह न्यायिक सक्रियता का एक मुखर चेहरा बन गए।

उनकी पहचान मुख्यतः कोर्ट में दाखिल किए गए PIL के कारण थी, जिनमें कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले में वह मुख्य पिटीशनर थे। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उस घोटाले को अवैध, मनमाना और पारदर्शिता के बिना जारी बताया था, जिसने देश की मीडिया और नीति निर्माताओं में तीव्र चर्चा को जन्म दिया।

इसके अलावा, शर्मा ने राफेल विमान सौदे, मोदी सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, हैन्डेनबर्ग रिपोर्ट और पेगासस फोन जासूसी जैसे मामलों में भी दायरियाँ कीं, जिनमें से कई ने सार्वजनिक और राजनीतिक बहस को प्रभावित किया।

हालांकि कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने उनके याचिकाओं को खारिज कर दिया और उन्हें बिना पर्याप्त कानूनी आधार के “अनावश्यक” या “समय बर्बाद करने वाली” सलाह दी, फिर भी उनका सक्रियता के साथ न्यायपालिका के अवसरवादी उपयोग ने उन्हें एक अलग कानूनी छवि दी।

निर्भया मामला और विवाद: वकालत से आलोचना तक


संयुक्त रूप से Advocate M L Sharma की सबसे विवादित भूमिका 2012 के निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में एक दोषी के लिए पैरवी करना थी। उस समय उन्होंने एक आरोपी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जिरह की और इस भूमिका ने उन्हें विवादों के केंद्र में ला दिया।

इस मामले में उनकी पैरवी के अलावा कुछ वक्तव्य और टिप्पणियों ने राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना का कारण भी बने। भारतीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में, शामिल एक BBC डॉक्यूमेंट्री के सन्दर्भ में उनके आपत्तिजनक बयानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट वुमन्स लॉयर्स एसोसिएशन ने कोर्ट में उनके खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसमें उनका कोर्ट में प्रवेश प्रतिबंधित करने की मांग की गई थी।

उनके विवादित बयानों के कारण, कुछ उच्च न्यायालयों ने उन पर क़ानूनी प्रतिबंध लगाने या दंडित करने की भी सोची, और कई बार अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि फ्रिवोलस या तुच्छ आधारों पर दायर की गई याचिकाओं के कारण न्यायिक समय की बर्बादी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उनकी यह भूमिका आलोचनाओं के बावजूद कानूनी बहस में एक स्थायी विषय बनी रही, जिसमें न्याय, संवेदनशील मुद्दों और कानूनी दायित्वों के बीच संतुलन की आवश्यकता पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई।

विदाई और कानूनी विरासत: यादों में Advocate M L Sharma


उनके निधन के बाद कई वरिष्ठ वकीलों, न्यायविदों और टिप्पणीकारों ने उनके परिवार और सहयोगियों के प्रति शोक व्यक्त किया है। उनकी मृत्यु से भारतीय कानूनी परिदृश्य में एक विवादास्पद लेकिन हमेशा चर्चा में रहने वाला चेहरा चला गया, जिसने सुप्रीम कोर्ट की प्रक्रिया और जनहित याचिकाओं के उपयोग दोनों पर अलग-अलग प्रभाव डाला।

Advocate M L Sharma ने सुप्रीम कोर्ट की चुनौतियों और अवसरों को बदलते समय के साथ अनुभव किया और अपनी ही विशिष्ट शैली में न्यायपालिका का उपयोग करते रहे। उनकी चर्चा अभी भी कानूनी और सामाजिक मंचों पर होती है, खासकर उन सुकूनपरक मामलों में जिनमें नागरिक अधिकार, सार्वजनिक हित और संवेदनशील मुद्दे जुड़े रहे।

उनके निधन की खबर ने कई युवा वकीलों को भी अपने पेशे के प्रति जिम्मेदारी और नैतिकता पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है। यह याद दिलाती है कि कानूनी पेशा केवल याचिकाओं और सुर्खियों के लिए सीमित नहीं है, बल्कि न्याय, नैतिकता और संवेदनशीलता जैसे मूल्यों के साथ जुड़ा होना चाहिए — विशेषकर ऐसे मामले में जिसमें समाज के लिए संवेदनशील मुद्दों का सामना करना पड़ता हो।