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धनंजय सिंह के बयान ने 'कोडीन भैया' को लेकर अखिलेश पर साधा निशाना
17 Dec 2025
राजनीतिक बयान से फिर गरमाई उत्तर प्रदेश की सियासत
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर जुबानी जंग तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की ‘कोडीन भैया’ टिप्पणी को लेकर जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ नेता धनंजय सिंह ने कड़ी नाराज़गी जताई है। धनंजय सिंह का बयान के बाद यह मामला राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। उन्होंने इस बयान को गैर-जिम्मेदाराना बताते हुए कहा कि इस तरह की टिप्पणियां राजनीति के स्तर को गिराती हैं और जनता के असली मुद्दों से ध्यान भटकाती हैं।
वरिष्ठ नेताओं से जिम्मेदार भाषा की अपेक्षा
धनंजय सिंह ने कहा कि अखिलेश यादव जैसे अनुभवी और वरिष्ठ नेता से इस तरह की भाषा की उम्मीद नहीं की जाती। धनंजय सिंह का बयान में साफ तौर पर कहा गया कि राजनीति मज़ाक या तंज का मंच नहीं है, बल्कि यह जनता की समस्याओं को उठाने और उनके समाधान की दिशा में काम करने का माध्यम है। बेरोज़गारी, महंगाई, कानून-व्यवस्था और सामाजिक सौहार्द जैसे मुद्दों पर गंभीर चर्चा की ज़रूरत है, न कि व्यक्तिगत कटाक्षों की।
सोशल मीडिया पर वायरल बयान और लोकतांत्रिक विमर्श
‘कोडीन भैया’ जिब पर प्रतिक्रिया देते हुए जेडीयू नेता ने कहा कि ऐसे बयान सोशल मीडिया पर भले ही वायरल हो जाएं, लेकिन इससे लोकतांत्रिक विमर्श को नुकसान पहुंचता है। Dhananjay Singh statement में यह भी कहा गया कि राजनीतिक नेताओं की भाषा का असर समाज पर पड़ता है, खासकर युवाओं पर, जो नेताओं को आदर्श मानते हैं।
चुनावी माहौल में बढ़ती बयानबाज़ी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनावी माहौल के करीब आते ही इस तरह की बयानबाज़ी तेज़ हो जाती है। व्यक्तिगत हमले और व्यंग्यात्मक टिप्पणियां सुर्खियां तो बनाती हैं, लेकिन इससे नीतिगत बहस और विकास से जुड़े मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। धनंजय सिंह का बयान के अनुसार जनता अब खोखले बयानों से ऊब चुकी है और ठोस काम देखना चाहती है।
समाजवादी पार्टी की सफाई
वहीं समाजवादी पार्टी की ओर से इस पूरे विवाद पर सफाई भी दी गई है। पार्टी नेताओं का कहना है कि अखिलेश यादव के बयान को संदर्भ से अलग करके पेश किया जा रहा है और विपक्ष जानबूझकर इसे तूल दे रहा है। सपा समर्थकों का तर्क है कि राजनीतिक कटाक्ष नई बात नहीं है और इसे मुद्दा बनाकर असली सवालों से ध्यान हटाया जा रहा है।
राजनीतिक मर्यादा पर उठते सवाल
इसके बावजूद यह विवाद एक बड़े सवाल को फिर सामने लाता है—क्या भारतीय राजनीति में मर्यादा और गंभीरता की कमी होती जा रही है? कई राजनीतिक विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों का मानना है कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सम्मानजनक संवाद बेहद ज़रूरी है। बयानबाज़ी की जगह नीति, विकास और जनहित को केंद्र में रखा जाना चाहिए।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, धनंजय सिंह और अखिलेश यादव के बीच यह जुबानी टकराव सिर्फ एक राजनीतिक विवाद नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति की बदलती भाषा और संस्कृति पर भी सवाल खड़ा करता है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राजनीतिक दल इस तरह की टिप्पणियों से सबक लेते हैं या बयानबाज़ी का सिलसिला यूं ही जारी रहता है।
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