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IPS आत्महत्या केस ने बढ़ाया हरियाणा DGP चयन विवाद
03 Dec 2025
हरियाणा ने अपने अगले पुलिस महानिदेशक (DGP) की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी।जिसमें राज्य संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को भेजे जाने वाले भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के पाँच वरिष्ठ अधिकारियों का एक पैनल तैयार किया जा रहा है।
सरकार के इस कदम पर चर्चाएं तेज हो गई हैं कि क्या शत्रुजीत सिंह कपूर डीजीपी (DGP) के पद पर वापस आ सकते हैं। 1990 बैच के अधिकारी कपूर को आईपीएस वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या के केस में दर्ज एफआईआर में नाम आने के बाद 14 अक्टूबर को छुट्टी पर भेज दिया था। कुमार के परिजनों ने एफआईआर में नामजद लोगों के खिलाफ कार्रवाई होने तक उनके शव का पोस्टमार्टम कराने से भी इनकार किया था।
हरियाणा सरकार द्वारा तैयार पैनल में 1990 से 1993 बैच के पांच IPS अधिकारी शामिल किए गए हैं जिसमें कपूर, संजीव कुमार जैन (1991 बैच), अजय कुमार सिंघल (1992 बैच), और 1993 बैच के दो अधिकारी आलोक मित्तल और अर्शिंदर सिंह चावला का नाम है।हालांकि दो वरिष्ठ अधिकारी अनुपस्थित हैं, जिसमें 1989 बैच के मुहम्मद अकील और 1992 बैच के वर्तमान हरियाणा डीजीपी ओपी सिंह का नाम है। दोनों अधिकारी 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं, जिससे वे मानक चयन प्रक्रिया के तहत अयोग्य माने जाएंगे।
हरियाणा डीजीपी शॉर्टलिस्ट विवाद की पूरी घटना से एक बार फिर सवाल उठता है कि क्या शत्रुजीत सिंह कपूर DGP पद पर बने रहेंगे, क्योंकि सरकार आमतौर पर मौजूदा पद पर बने रहने के लिए ऐसी प्रक्रिया शुरू नहीं करती। हालांकि, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह जिनकी 2006 की याचिका के आधार पर डीजीपी चयन करने पर ढाँचा बनाया गया बाद में उन्होंने कहा कि “कपूर का नाम शामिल करना प्रक्रियागत रूप से सही है, क्योंकि छह महीने या उससे ज़्यादा सेवाकाल वाले सभी अधिकारियों के नाम पर विचार किया जाना चाहिए।”
उन्होंने ज़ोर देकर आगे कहा कि अंतिम तीन नामों वाली सूची में किसे शामिल किया जाना चाहिए, यह यूपीएससी के विवेकाधिकार में है।बाद में अंतिम नाम राज्य सरकार तय करती है।
सिंह ने कहा, “आईपीएस वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या के मामले में कपूर के खिलाफ सिर्फ एफआईआर दर्ज करना उन्हें दौड़ से बाहर करने के लिए काफी नहीं हो सकता है, क्योंकि यह देखना होगा कि एफआईआर में उल्लिखित अपराध में व्यक्ति किस हद तक शामिल है। उन्होंने आगे बताया कि एक लाख से अधिक कर्मियों वाले पुलिस बल को प्रभावित करने वाली प्रत्येक घटना के लिए सिर्फ डीजीपी को सही रूप से जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता।
हरियाणा डीजीपी शॉर्टलिस्ट विवाद
सरकार के इस कदम पर चर्चाएं तेज हो गई हैं कि क्या शत्रुजीत सिंह कपूर डीजीपी (DGP) के पद पर वापस आ सकते हैं। 1990 बैच के अधिकारी कपूर को आईपीएस वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या के केस में दर्ज एफआईआर में नाम आने के बाद 14 अक्टूबर को छुट्टी पर भेज दिया था। कुमार के परिजनों ने एफआईआर में नामजद लोगों के खिलाफ कार्रवाई होने तक उनके शव का पोस्टमार्टम कराने से भी इनकार किया था।
हरियाणा सरकार द्वारा तैयार पैनल में 1990 से 1993 बैच के पांच IPS अधिकारी शामिल किए गए हैं जिसमें कपूर, संजीव कुमार जैन (1991 बैच), अजय कुमार सिंघल (1992 बैच), और 1993 बैच के दो अधिकारी आलोक मित्तल और अर्शिंदर सिंह चावला का नाम है।हालांकि दो वरिष्ठ अधिकारी अनुपस्थित हैं, जिसमें 1989 बैच के मुहम्मद अकील और 1992 बैच के वर्तमान हरियाणा डीजीपी ओपी सिंह का नाम है। दोनों अधिकारी 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं, जिससे वे मानक चयन प्रक्रिया के तहत अयोग्य माने जाएंगे।
हरियाणा डीजीपी शॉर्टलिस्ट विवाद की पूरी घटना से एक बार फिर सवाल उठता है कि क्या शत्रुजीत सिंह कपूर DGP पद पर बने रहेंगे, क्योंकि सरकार आमतौर पर मौजूदा पद पर बने रहने के लिए ऐसी प्रक्रिया शुरू नहीं करती। हालांकि, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह जिनकी 2006 की याचिका के आधार पर डीजीपी चयन करने पर ढाँचा बनाया गया बाद में उन्होंने कहा कि “कपूर का नाम शामिल करना प्रक्रियागत रूप से सही है, क्योंकि छह महीने या उससे ज़्यादा सेवाकाल वाले सभी अधिकारियों के नाम पर विचार किया जाना चाहिए।”
उन्होंने ज़ोर देकर आगे कहा कि अंतिम तीन नामों वाली सूची में किसे शामिल किया जाना चाहिए, यह यूपीएससी के विवेकाधिकार में है।बाद में अंतिम नाम राज्य सरकार तय करती है।
सिंह ने कहा, “आईपीएस वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या के मामले में कपूर के खिलाफ सिर्फ एफआईआर दर्ज करना उन्हें दौड़ से बाहर करने के लिए काफी नहीं हो सकता है, क्योंकि यह देखना होगा कि एफआईआर में उल्लिखित अपराध में व्यक्ति किस हद तक शामिल है। उन्होंने आगे बताया कि एक लाख से अधिक कर्मियों वाले पुलिस बल को प्रभावित करने वाली प्रत्येक घटना के लिए सिर्फ डीजीपी को सही रूप से जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता।
राज्य पुलिस महानिदेशकों का चयन कैसे करती हैं?
किसी भी राज्य में डीजीपी का चयन सर्वोच्च न्यायालय के 2006 के प्रकाश सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ मामले में दिए गए ऐतिहासिक निर्णय द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन करता है। सर्वोच्च न्यायालय के 2006 के फैसले ने पूरे भारत में पुलिस प्रशासन के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किए, जिनमें DGP के चयन में कई राज्यों द्वारा अपनाई गई, जिसमें मनमानी नियुक्तियों की प्रथा को समाप्त करना भी शामिल था।
ये 2019 में आयोग के आदेश में थे और 26 सितंबर 2023 को यूपीएससी द्वारा संशोधित किए गए थे। आयोग ने 26 सितंबर, 2023 को अपने दिशानिर्देशों में और संशोधन किया। द प्रिंट के मुताबिक, सामान्य विचाराधीन क्षेत्र में वेतन मैट्रिक्स के लेवल 16 में DGP पद पर आसीन अधिकारी शामिल हैं। इसमें 1994 बैच के दो अधिकारी, नवदीप सिंह विर्क और उनकी पत्नी कला रामचंद्रन, जो दोनों अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक हैं, शामिल नहीं हैं, जबकि उन्होंने 30 साल की सेवा पूरी कर ली है।
यूपीएससी को भेजी जाने वाली अधिकारियों की सूची में वरिष्ठता अधिसूचना, बायोडाटा, अनुशासनात्मक या आपराधिक कार्यवाही का विवरण, वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट और दंड (यदि कोई हो) जैसे विवरण शामिल होने चाहिए। यूपीएससी पैनल में यूपीएससी अध्यक्ष, भारत सरकार के गृह सचिव या उनके द्वारा नामित व्यक्ति, राज्य के मुख्य सचिव, राज्य के डीजीपी तथा केंद्रीय पुलिस संगठनों या केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के प्रमुखों में से एक अधिकारी शामिल होते हैं, जो उस कैडर से संबंधित नहीं होते जिसके लिए चयन किया जाना है।
हरियाणा के वर्तमान डीजीपी ओपी सिंह इस पैनल का हिस्सा होंगे।
हरियाणा डीजीपी शॉर्टलिस्ट विवाद के बाद अब ये देखा जाएगा कि पैनल किसका चयन करती है, हालांकि संशोधित दिशानिर्देशों में यह प्रावधान है कि पैनल अधिकारियों की उपयुक्तता के वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन के लिए अपनी स्वयं की पद्धति और प्रक्रिया अपनाएगा। समिति अपनी बैठक से पहले अधिकारियों की पिछले 10 वर्षों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) का मूल्यांकन भी करेगी।
दिशानिर्देशों में यह भी प्रावधान है कि पैनल लगाए गए किसी भी दंड पर विचार करेगा तथा किसी भी अधिकारी को, जो निलंबित है या जिसके विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही लंबित है, जिसका सत्यनिष्ठा प्रमाणपत्र राज्य सरकार द्वारा रोक लिया गया है या जो पिछले 10 वर्षों के दौरान “निंदा” के अलावा किसी अन्य दंड के अधीन रहा है या पिछले तीन वर्षों के दौरान "निंदा" के अधीन रहा है, ऐसे अधिकारियों को इस सूची से बाहर कर देगा।
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