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दिल्ली स्कूल सुसाइड केस — कैसे 'नृत्य अभ्यास पर चेतावनी' ने एक छात्र को अंत तक पहुँचाया

 21 Nov 2025

दिल्ली में एक प्राइवेट स्कूल में घटित इस दिल्ली स्कूल सुसाइड केस ने शिक्षा व्यवस्था, मानसिक स्वास्थ्य और विद्यालयी व्यवहार की गंभीर चुनौतियों को उजागर किया है। घटना में St Columba’s School, Delhi (न्यू दिल्ली) के कक्षा दस के 16 वर्षीय छात्र Shourya Patil ने आत्महत्या कर ली है।​ घटना के पीछे बताए जा रहे कई कारक हैं, जिनमें न केवल एक गलती बल्कि माह‑मह से चल रहा धक्का‑मुक्की, अपमान और चेतावनियाँ शामिल हैं।


छात्र ने घटना के दिन स्कूल से निकलने के बाद नोबल स्टेशन (Rajendra Place Metro Station) पर आत्महत्या कर ली थी।​ उस दिन, एक नृत्य अभ्यास के दौरान उसने टखने में मोच (sprain) लगने की बात स्कूल को पहले ही बता दी थी।​ लेकिन शिक्षक‑प्रशासन द्वारा उसे अभ्यास में भाग न लेने की अनुमति देते हुए उसकी मेहनत, स्थिति या स्वास्थ्य को पर्याप्त समझ नहीं दिया गया। इसके बजाय उसे चेतावनी दी गई थी, कि यदि वह नृत्य कार्यक्रम में नहीं भाग लेगा या अभ्यास नहीं करेगा, तो आंतरिक मूल्यांकन में अंक कट सकते हैं।​

इसके बाद, स्कूल में उसे ऐसा महसूस हुआ कि शिक्षक‑प्रशासन द्वारा लगातार अपमान, चेतावनियाँ, ट्रांसफर सर्टिफिकेट की धमकी और सार्वजनिक तौर पर टिप्पणी की जा रही थी।​ इस दिल्ली स्कूल सुसाइड केस में छात्र ने अपनी अंतिम इच्छा भी लिखी थी कि यदि उसके शरीर के कोई अंग काम करें तो कृपया उन्हें दान कर दें — साथ ही अपने माता‑पिता, भाई­बहन से माफी माँगी थी।​

दिल्ली स्कूल सुसाइड केस में क्या हुआ?


इस भाग में हम घटना का क्रम और उसमें बताए गए मुख्य बिंदुओं को देखेंगे।

  • छात्र शौर्य अंशतः नृत्य‑प्रस्तुति में भाग लेने वाला था। अभ्यास के समय उसने अपनी टखने की मोच के कारण भाग न लेने की बात कही थी।​

  • स्कूल ने उस छात्र को चेतावनी दी कि अगर वह नृत्य कार्यक्रम में भाग नहीं लेगा या पर्याप्त तैयारी नहीं करेगा, तो आंतरिक मूल्यांकन (internal marks) कट सकती हैं।​

  • उसके पिता का कहना है कि पिछले ८‑१० महीनों से छात्र शिकायत करता रहा था कि कुछ शिक्षक उन्हें बार‑बार अपमानित करते हैं, सार्वजनिक रूप से तानोंं देते हैं, और कोई सुनवाई नहीं होती।​

  • घटना के दिन उसने स्कूल से बाहर निकलकर मेट्रो स्टेशन पर आत्महत्या कर ली। वहाँ उसकी स्कूल‑बैग मिली जिसमें उसने अपना आखिरी संदेश लिखा था।​

  • इस दिल्ली स्कूल सुसाइड केस के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है और विद्यालय ने चार शिक्षकों को निलंबित किया है।​

यह पूरी घटना हमें बताती है कि कैसे एक छात्र को मात्र एक चेतावनी और लगातार अपमान का सामना करना पड़ा — और उसपर इतना दबाव बन गया कि उसने यह आखिरी कदम उठा लिया।

दिल्ली स्कूल सुसाइड केस — शिक्षकों पर आरोप व बनायी गयी कार्रवाई


इस सेक्शन में हम इस दिल्ली स्कूल सुसाइड केस में शिक्षकों‑प्रशासन पर लगे आरोपों और घटना के बाद उठाए गए कदमों को देखेंगे।

  • पिता ने आरोप लगाया है कि शिक्षक ने छात्र को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया, “बहुत रो ले, मुझे फर्क नहीं पड़ता” जैसे कथित शब्द बोले।​

  • छात्र ने अपनी आत्महत्या से पहले लिखे नोट में कहा था कि “स्कूल की शिक्षक अब ऐसे हैं, मैं क्या बोलू” और बताया कि उसके मन में आत्महत्यात्मक विचार थे।​

  • स्कूल ने, एफआईआर दर्ज होने के बाद, चार शिक्षकों को निलंबित किया।​

  • सरकार ने एक उच्च‑स्तरीय समिति गठित की है जो इस दिल्ली स्कूल सुसाइड केस की व्यापक जांच करेगी।​

  • छात्र के माता‑पिता और सहपाठियों ने स्कूल प्रांगण में विरोध प्रदर्शन किया और न्याय की मांग की कि किसी अन्य छात्र के साथ ऐसा न हो।​

इन बिंदुओं से स्पष्ट है कि इस दिल्ली स्कूल सुसाइड केस ने सिर्फ एक छात्र की त्रासदी नहीं बल्कि विद्यालय‑प्रशासनात्मक प्रणाली में मौजूद खामियों को उजागर किया है — विशेष रूप से यह कि जब छात्र पहले से असहज महसूस कर रहा हो और शिकायत कर रहा हो, तब भी उसकी आवाज़ क्यों नहीं सुनी गई?

दिल्ली स्कूल सुसाइड केस के बाद छोड़ गये प्रश्न और आवश्यक सुधार


यह दिल्ली स्कूल सुसाइड केस हमें कई महत्वपूर्ण प्रश्न देते हैं — और साथ ही सुधार की दिशा में संकेत भी।

  • प्रश्न उठता है कि एक स्कूल में क्यों प्रणालीगत तौर पर छात्र की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया गया? पिछले छह महीने से छात्र दबाव में था और शिकायत कर रहा था।​

  • तब क्या कारण है कि शिक्षा‑प्रशासन, शिक्षक‑मंडली और स्कूल‑काउंसलर मिलकर उस छात्र के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान क्यों नहीं रख पाए?

  • क्या आंतरिक मूल्यांकन के डर, चेतावनियाँ, ट्रांसफर सर्टिफिकेट की धमकी जैसे उपाय आज के शिक्षा‑परिस्थितियों में उपयुक्त हैं? यदि विद्यार्थी किसी कारणवश किसी गतिविधि से भाग न ले पा रहा हो, तो उसे कैसे संभाला जाना चाहिए?

  • इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए विद्यालयों में सक्रिय साइको‑सामाजिक सहायता और मूल्यांकन‑परख प्रक्रिया होना कितना महत्वपूर्ण है — यह सवाल उठता है।

सुधारों में क्या किया जाना चाहिए? उदाहरण के लिए:

  • शिक्षक‑प्रशिक्षण: बच्चों के प्रति संवेदनशील व्यवहार, मानसिक स्वास्थ्य‑जानकारी।

  • छात्र‑शिकायत तंत्र: हाथ में हो, गुप्त हो और तुरंत कार्रवाई हो।

  • स्कूल‑नीति: जब छात्र स्वास्थ्य‑समस्या बता रहा हो (जैसे चोट), तो उसे दबाव‑चेतावनी से बचाया जाना चाहिए।

  • मूल्यांकन‑पद्धति: केवल अंक‑कटौती का डर, चेतावनी आदि विद्यार्थी को तनावग्रस्त बना सकते हैं। संतुलित प्रणाली आवश्यक।

इस तरह, यह दिल्ली स्कूल सुसाइड केस न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि शिक्षा‑पर्यावरण में सुधार की अपील भी है। यदि आज हम इन सवालों पर गंभीरता से विचार करें और सुधार करें, तो भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है।