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“बिहार राजनीति में हलचल — ‘Bihar Politics’ में बड़ा झटका, डॉ. शकील अहमद ने छोड़ी कांग्रेस”
13 Nov 2025
‘Bihar Politics’ का नया मुड़ — चुनाव खत्म होते ही आए इस्तीफे के सियासी इशारे
डॉ. शकील अहमद ने मतदान के दूसरे एवं अंतिम चरण के बाद ही पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उन्हें सता रहा था कि उन्होंने पहले यह निर्णय ले रखा था, लेकिन उन्होंने चुनाव के दौरान इसे सार्वजनिक नहीं किया ताकि ‘Bihar Politics’ में कांग्रेस को किसी तरह का नुकसान न हो।
उन्होंने अपने इस्तीफे में कहा- “बहुत भारी मन से मैंने कांग्रेस की सदस्यता छोड़ने का निर्णय लिया है। मेरा यह कदम पार्टी की विचारधारा के विरुद्ध नहीं है।”
‘Bihar Politics’ की दृष्टि से यह इस्तीफा समय-सापेक्ष माना जा रहा है क्योंकि एक वरिष्ठ नेता का किसी बड़े चुनाव के तुरंत बाद निष्क्रमण राजनीतिक संकेत देता है — यह संकेत हो सकता है कि अंदरूनी मतभेद व रणनीतिक असहमति गहरी है।
‘Bihar Politics’ के परिदृश्य में कांग्रेस को सही समय पर झटका, कारण और बहाना
शकील अहमद ने स्पष्ट किया कि उनका इस्तीफा किसी दूसरी पार्टी में शामिल होने का नहीं है, बल्कि वे अब सक्रिय राजनीति से दूरी ले जाना चाहते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने चुनाव के पहले ऐसा फैसला नहीं उठाया क्योंकि उन्हें डर था कि ‘Bihar Politics’ में उनकी घोषणा से कांग्रेस को कुछ वोटों की हानि हो सकती थी।
उनके अनुसार समस्या पार्टी की विचारधारा या नीतियों से नहीं थी बल्कि ‘कुछ व्यक्तियों के साथ’ उनका मतभेद था जिन्होंने राज्य इकाई में निर्णायक भूमिका निभाई।
इस तरह, ‘Bihar Politics’ में कांग्रेस के लिए यह एक चेतावनी-संदेश भी है कि जिन्हे ताकतवर माना गया है, वे यदि अपेक्षित मार्गदर्शन न पा रहे हों तो विद्यमान राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं।
‘Bihar Politics’ के लिए क्या संदेश देता है डॉ. शकील अहमद का अलग होना?
पहला संदेश यह है कि आज के समय में ‘Bihar Politics’ में बड़े नेता भी तब तक स्थिर नहीं रहते जब तक उन्हें उपयुक्त निर्णय-संव भागीदारी महसूस न हो। वरिष्ठ नेता कह सकते हैं कि वे विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध हैं, लेकिन राजनीतिक व्यवहार में यदि स्थान व सम्मान न मिले तो उनका रवैया अलग हो सकता है।
दूसरा संदेश यह है कि किसी पार्टी के लिए यह जरूरी है कि लगातार संवाद, नेतृत्व-भूत हिस्सेदारी और सक्रिय भूमिका सुनिश्चित हो। ‘Bihar Politics’ में खामियों को दूर करना और नेताओं को भागीदारी देना भविष्य के लिए सुरक्षित रणनीति हो सकती है।
तीसरा संदेश यह है कि जनता व वोटर-बेस भी वरिष्ठ नेताओं के अलगाव को नजरअंदाज नहीं करेगा। ‘Bihar Politics’ में स्थिरता एवं विश्वसनीयता की छवि बनी रहना राजनीतिक दलों के लिए आवश्यक है।
निष्कर्ष
‘Bihar Politics’ में यह घटना सिर्फ एक नेता के इस्तीफे से अधिक है — यह एक संकेत है कि राजनीतिक दलों को विषय-विश्लेषण, आंतरिक संयोजन और नेतृत्व-संतुष्टि पर ध्यान देना होगा। डॉ. शकील अहमद का कांग्रेस से अलग होना यह दर्शाता है कि दल-भागीदारी, निर्णय-प्रक्रिया और मान-सम्मान तत्व अब अधिक महत्व प्राप्त कर चुके हैं।
कांग्रेस को इस झटके के बाद यह सोचना होगा कि भविष्य में ‘Bihar Politics’ में अपनी स्थिति को कैसे सुदृढ़ बनाए। नेताओं को ऐसा माहौल देना होगा कि वे पार्टी के भीतर आत्मसात महसूस करें। यदि आपने चाहा, तो मैं इस घटना के भविष्य-प्रभाव पर भी एक विस्तृत विश्लेषण तैयार कर सकता हूँ जिसे ‘Bihar Politics’ के संदर्भ में पहचाना जा सके।