जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल वैष्णो देवी में हाल ही में एक भीषण भूस्खलन की घटना ने पूरे देश को हिला दिया है। वैष्णो देवी लैंडस्लाइड में अब तक 41 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि कई अन्य श्रद्धालु अभी भी लापता बताए जा रहे हैं। यह हादसा मंगलवार की दोपहर उस समय हुआ जब भारी बारिश के कारण ट्रिकुटा पहाड़ियों की ढलानों से अचानक बड़े-बड़े पत्थर गिरने लगे। श्रद्धालु पवित्र गुफा की ओर यात्रा कर रहे थे तभी यह विनाशकारी मंजर सामने आया। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि किसी को संभलने का भी मौका नहीं मिला और पलक झपकते ही पूरा मार्ग मलबे में दब गया।
प्रशासन ने घटना के बाद बचाव कार्यों के लिए सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और स्थानीय पुलिस बल को मौके पर भेजा है। अब तक 50 से ज्यादा लोगों को मलबे से सुरक्षित निकाला गया है, लेकिन कुछ लोगों की हालत गंभीर बताई जा रही है। बचाव कार्य लगातार जारी है, लेकिन दुर्गम पहाड़ी इलाका और मूसलधार बारिश राहत कार्यों में बाधा बन रही है। यह वैष्णो देवी लैंडस्लाइड न केवल प्राकृतिक आपदा है, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की ओर भी इशारा करती है, क्योंकि मौसम विभाग द्वारा पहले ही भारी बारिश और भूस्खलन की चेतावनी दी गई थी।
श्रद्धालुओं की चीख-पुकार और तबाही का मंजर
जिस समय यह हादसा हुआ, उस वक्त हजारों श्रद्धालु कटरा से माता वैष्णो देवी की यात्रा पर थे। कई लोग बच्चे और बुजुर्गों के साथ यात्रा कर रहे थे। चश्मदीदों के अनुसार, अचानक तेज आवाज के साथ पहाड़ से चट्टानें गिरनी शुरू हो गईं और सभी को भागने का मौका तक नहीं मिला। एक श्रद्धालु ने बताया, “मैंने अपनी आंखों के सामने लोगों को दबते देखा, सब कुछ मिनटों में तबाह हो गया।” यह वैष्णो देवी लैंडस्लाइड इतना भयावह था कि लोगों को भागने की दिशा भी समझ नहीं आई। यात्रा मार्ग के किनारे बने कई अस्थायी ढाबे और विश्राम स्थल भी इस भूस्खलन की चपेट में आ गए, जिससे कई दुकानदार और स्थानीय मजदूर भी प्रभावित हुए हैं।
घटना के बाद से मृतकों की पहचान की प्रक्रिया जारी है। अब तक जिन 41 लोगों की मौत हुई है, उनमें 16 महिलाएं और 3 बच्चे भी शामिल हैं। कई शव इतने बुरी तरह क्षत-विक्षत हैं कि उनकी पहचान मुश्किल हो रही है। सरकार ने मृतकों के परिजनों को मुआवज़ा देने की घोषणा की है, वहीं घायलों को मुफ्त इलाज उपलब्ध कराया जा रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि मौसम विभाग की चेतावनी को गंभीरता से लिया जाता, तो शायद यह त्रासदी टाली जा सकती थी। इस वैष्णो देवी लैंडस्लाइड ने यात्रा की सुरक्षा व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनका उत्तर मिलना अभी बाकी है।
प्रशासनिक लापरवाही और भविष्य की चुनौतियाँ
जहां एक ओर बचाव कार्यों में प्रशासन जुटा है, वहीं दूसरी ओर नेताओं और जनता की ओर से सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि सरकार ने मौसम विभाग की चेतावनी के बावजूद यात्रा को रोका नहीं, जिससे यह वैष्णो देवी लैंडस्लाइड जैसी आपदा हुई। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और मौसम की हर चेतावनी पर त्वरित निर्णय लिए जाएं। इसके साथ ही वैष्णो देवी यात्रा मार्ग पर सुरक्षा व्यवस्था को आधुनिक बनाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।
भविष्य में इस तरह की आपदाओं से बचाव के लिए स्थायी उपाय करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि वैष्णो देवी लैंडस्लाइड जैसी घटनाएं जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित निर्माण और अपर्याप्त जल निकासी प्रणाली का परिणाम हैं। ट्रिकुटा पहाड़ियों की भौगोलिक स्थिति पहले ही संवेदनशील मानी जाती रही है और लगातार बढ़ती पर्यटक संख्या के दबाव से यहां की पारिस्थितिकी प्रणाली पर भी खतरा मंडरा रहा है। इसके चलते अब सरकार को वैष्णो देवी यात्रा की योजना पुनर्गठित करनी होगी जिसमें पर्यावरणीय अध्ययन, संरचनात्मक सुधार और आपदा प्रबंधन प्रणाली को प्रमुखता देनी होगी।
इस बार की वैष्णो देवी लैंडस्लाइड न केवल एक चेतावनी है, बल्कि यह संकेत भी देती है कि यदि अब भी पर्यावरणीय और सुरक्षा मानकों को अनदेखा किया गया, तो भविष्य में इससे भी बड़ी आपदाएं हो सकती हैं। आम जनता को भी चाहिए कि वे यात्रा से पहले मौसम की जानकारी लें और प्रशासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करें। श्रद्धा और आस्था जरूरी है, लेकिन जीवन की सुरक्षा उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है।