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बिहार वोटर लिस्ट विवाद: लोकतांत्रिक अधिकारों पर मंडरा रहा खतरा
14 Aug 2025

बिहार वोटर लिस्ट से 65 लाख नाम हटे, 22 लाख को बताया गया मृत
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट की विशेष जांच की गई, जिसे ‘SIR’ यानी Special Intensive Revision कहा गया। इस प्रक्रिया में करीब 65 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए, जिनमें से 22 लाख लोगों को मृत बताया गया। इसके अलावा 36 लाख लोग ऐसे बताए गए जो अब बिहार में नहीं रहते, और 7 लाख नाम डुप्लीकेट या गलती से दर्ज पाए गए। चुनाव आयोग का कहना है कि यह कदम वोटर लिस्ट को साफ और सही बनाने के लिए उठाया गया था। यह भी बताया गया कि पिछले 22 सालों में पहली बार पूरे राज्य में एक साथ ऐसी जांच की गई है।
चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि किसी भी सही मतदाता को बिना बताए लिस्ट से नहीं हटाया गया। हर किसी को सूचना दी गई और जिनके नाम हटे, उन्हें दोबारा दावा करने का मौका भी मिला। इसके लिए घर-घर जाकर जांच की गई, फॉर्म ऑनलाइन और ऑफलाइन दिए गए और शहरों व गांवों में कैंप भी लगाए गए ताकि लोग अपने कागज़ दिखा सकें। आयोग का यह भी कहना है कि जिनके नाम गलती से हटे हैं, वो फिर से वोटर लिस्ट में शामिल हो सकते हैं।
लेकिन विपक्षी पार्टियों और सामाजिक संगठनों को इस प्रक्रिया पर भरोसा नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शी (स्पष्ट) नहीं थी, और जानबूझकर गरीबों, मजदूरों और गांवों के लोगों को लिस्ट से बाहर किया गया। कांग्रेस, आरजेडी और CPI(ML) ने इसे “वोटर सर्जरी” कहा, यानि वोट काटने की साजिश। CPI(ML) ने तो यह भी कहा कि यह संविधान पर हमला है, क्योंकि प्रवासियों और मजदूरों को बिना वजह लिस्ट से बाहर किया गया। जेडीयू (JDU) के कुछ नेताओं ने भी कहा कि मॉनसून के मौसम में ये काम करना गलत था क्योंकि उस वक्त कई लोग घर पर नहीं मिलते।
चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि किसी भी सही मतदाता को बिना बताए लिस्ट से नहीं हटाया गया। हर किसी को सूचना दी गई और जिनके नाम हटे, उन्हें दोबारा दावा करने का मौका भी मिला। इसके लिए घर-घर जाकर जांच की गई, फॉर्म ऑनलाइन और ऑफलाइन दिए गए और शहरों व गांवों में कैंप भी लगाए गए ताकि लोग अपने कागज़ दिखा सकें। आयोग का यह भी कहना है कि जिनके नाम गलती से हटे हैं, वो फिर से वोटर लिस्ट में शामिल हो सकते हैं।
लेकिन विपक्षी पार्टियों और सामाजिक संगठनों को इस प्रक्रिया पर भरोसा नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शी (स्पष्ट) नहीं थी, और जानबूझकर गरीबों, मजदूरों और गांवों के लोगों को लिस्ट से बाहर किया गया। कांग्रेस, आरजेडी और CPI(ML) ने इसे “वोटर सर्जरी” कहा, यानि वोट काटने की साजिश। CPI(ML) ने तो यह भी कहा कि यह संविधान पर हमला है, क्योंकि प्रवासियों और मजदूरों को बिना वजह लिस्ट से बाहर किया गया। जेडीयू (JDU) के कुछ नेताओं ने भी कहा कि मॉनसून के मौसम में ये काम करना गलत था क्योंकि उस वक्त कई लोग घर पर नहीं मिलते।
सुप्रीम कोर्ट की नाराज़गी और पारदर्शिता की मांग
जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने कहा कि वोटर लिस्ट को सही करना गलत नहीं है, लेकिन इसे करने का समय और तरीका सही नहीं था। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी का नाम हटाना है तो पहले उसे जानकारी मिलनी चाहिए और उसे फिर से नाम जोड़ने का मौका भी मिलना चाहिए। अदालत ने ये भी कहा कि SIR करवाना चुनाव आयोग का हक है, लेकिन ये काम साफ-सुथरे और ईमानदार तरीके से होना चाहिए।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि जिन 65 लाख लोगों के नाम हटाए गए हैं, उनकी लिस्ट और हटाने का कारण (जैसे - मृत, प्रवासी, डुप्लीकेट) हर जिले और हर बूथ की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाए। ताकि जिनका नाम गलत तरीके से हटा दिया गया है, वे अपने हक के लिए फिर से आवेदन कर सकें। कोर्ट ने ये भी कहा कि आधार कार्ड, राशन कार्ड या अन्य पहचान पत्र को वोटर के तौर पर मान्यता दी जानी चाहिए, ताकि किसी को वोट देने से न रोका जाए।
राजनीतिक पार्टियों ने भी इस पर खूब विरोध किया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मजाक में कहा कि उन्होंने “मृत लोगों के साथ चाय पी” — यानि जो लोग मृत बताए जा रहे हैं, वे असल में जीवित हैं। उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि चुनाव आयोग की जांच में गड़बड़ी हुई है। कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए, और दिल्ली में कुछ नेताओं को पुलिस ने रोका भी। इससे लोगों के बीच इस मुद्दे को लेकर काफी चर्चा और नाराज़गी बढ़ गई है।
असल में, इस पूरे मामले का सबसे बड़ा सवाल यह है कि वोट देना हर नागरिक का अधिकार है, और अगर किसी का नाम लिस्ट से हटता है तो उसे यह जरूर जानने का हक है कि क्यों हटाया गया। अगर 22 लाख लोगों को मृत बता दिया गया है, तो उनका कोई रिकॉर्ड सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि ऐसे मामलों में पूरी पारदर्शिता जरूरी है, ताकि लोगों को भरोसा बना रहे कि लोकतंत्र में उनका अधिकार सुरक्षित है।