बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) अभियान को लेकर पटना से दिल्ली तक विरोध(SIR विवाद) की लहर है। इसी बीच चुनाव आयोग (ECI) ने मतदाताओं और राजनीतिक दलों को राहत देते हुए घोषणा की है कि 1 अगस्त से 1 सितंबर तक कोई भी पात्र व्यक्ति या मान्यता प्राप्त दल वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने का अनुरोध कर सकता है।
आयोग ने स्पष्ट किया कि एसआईआर आदेश के पृष्ठ 3, पैरा 7(5) के अनुसार, यदि किसी पात्र मतदाता का नाम बीएलओ/बीएलए द्वारा छूट गया है या गलत तरीके से नाम हटाया गया है, तो उसकी शिकायतें दर्ज की जा सकती हैं और नाम जुड़वाए जा सकते हैं।
क्या है SIR विवाद?
24 जून 2025 से शुरू हुआ यह विशेष पुनरीक्षण अभियान, बिहार की वोटर लिस्ट को अद्यतन करने के लिए चलाया जा रहा है। इसके तहत फर्जी वोटरों, मृत व्यक्तियों और अप्रासंगिक नामों को सूची से हटाया जा रहा है। आयोग का दावा है कि इसका उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है, ताकि केवल पात्र भारतीय नागरिकों को ही वोट डालने का अधिकार मिले।
बिहार में फिलहाल लगभग 7.89 करोड़ मतदाता हैं, लेकिन इस रिवीजन के बाद बड़ी संख्या में नामों के कटने की संभावना है, जिसे लेकर विपक्ष ने गहरी आपत्ति जताई है।
कांग्रेस, राजद, सीपीआई-एमएल जैसे कई विपक्षी दलों ने इस अभियान को 'अलोकतांत्रिक और पक्षपातपूर्ण' बताया है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “अगर पहले इन्हीं मतदाताओं ने बीजेपी को वोट दिया था, तो अब उनके नाम हटाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? क्या सत्ता पक्ष यह स्वीकार कर रहा है कि वह पहले धोखे से सत्ता में आया था?”
तेजस्वी ने संकेत दिया कि यदि आयोग प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं रखता, तो महागठबंधन चुनाव बहिष्कार जैसे कठोर कदम पर विचार कर सकता है।
तेजस्वी ने केंद्र सरकार पर भी सीधा हमला बोलते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह इस रिवीजन के पीछे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य को नई दिल्ली से रिमोट कंट्रोल किया जा रहा है। चुनाव आयोग का असली चेहरा 1 अगस्त के बाद सामने आएगा, जब फाइनल लिस्ट तैयार होगी। उन्होंने कहा कि वह महागठबंधन के सभी सहयोगी दलों से मिलकर आगे की रणनीति तय करेंगे।