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रोक सको तो रोक लो': उमर अब्दुल्ला ने दीवार फांदकर मजार-ए-शुहदा पर पढ़ी फातिहा
14 Jul 2025

3 जुलाई को जम्मू-कश्मीर की नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) पार्टी द्वारा हर साल मनाया जाने वाला ‘शहीद दिवस’ इस बार प्रशासनिक पाबंदियों की भेंट चढ़ गया। प्रशासन ने पार्टी को मजार-ए-शुहदा पर श्रद्धांजलि सभा की अनुमति नहीं दी। इस पर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दावा किया कि उन्हें घर में नजरबंद कर दिया गया था।
हालांकि तमाम बाधाओं के बावजूद उमर अब्दुल्ला ने मजार-ए-शुहदा पहुंचकर फातिहा पढ़ी। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें रास्ते में रोका गया और पुलिस द्वारा धक्का-मुक्की की गई। उनका यह भी कहना था कि सुरक्षा बलों ने न सिर्फ उनके काफिले को रोका बल्कि उनके घर के बाहर देर रात तक बंकर भी तैनात किया गया।
"हम गुलाम नहीं, जनता के सेवक हैं" – उमर अब्दुल्ला
मीडिया से बात करते हुए उमर अब्दुल्ला ने नाराज़गी जताई और कहा,
“यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लोग खुद को सिर्फ लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने का जिम्मेदार मानते हैं, उन्होंने अपने राजनीतिक पूर्वाग्रहों के तहत हमें 13 जुलाई को श्रद्धांजलि देने से रोका। हमें सुबह से ही घर में बंद कर दिया गया और जब मैंने कंट्रोल रूम को फातिहा पढ़ने की सूचना दी, तो कुछ ही मिनटों में मेरे घर के बाहर बंकर लगा दिए गए, जो देर रात तक नहीं हटाए गए।”
उन्होंने यह भी कहा कि इस बार उन्होंने प्रशासन को बिना बताए मजार की ओर निकलने का फैसला किया। उमर ने कहा, “मैंने खुद गाड़ी चलाई और चौक पर अपनी गाड़ी रोकी। वहां पर सीआरपीएफ का बंकर सामने लगा हुआ था। जब मैंने आगे बढ़ने की कोशिश की, तो पुलिस ने न सिर्फ रोकने की कोशिश की, बल्कि हाथापाई भी की।" उन्होंने तीखे शब्दों में कहा,
“हम किसी के गुलाम नहीं हैं, अगर हैं, तो इस धरती के लोगों के हैं। हम इस ज़मीन के खादिम हैं, न कि किसी सत्ता के आदेशपाल।”
मुख्यमंत्री ने जोर देते हुए कहा कि शहीदों की याद सिर्फ 13 जुलाई तक सीमित नहीं है। इन लोगों को लगता है कि 13 जुलाई को कब्रें बनती हैं, जबकि वो तो साल के हर दिन यहां हैं। चाहे 12 जुलाई हो या 15 दिसंबर – क्या ये हमें हर दिन रोकेंगे?”
उमर अब्दुल्ला ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने पार्टी के झंडे को फाड़ने की कोशिश की और उन्हें जबरन हिरासत में लेने का प्रयास भी किया गया। हमने इनकी हर कोशिश को नाकाम कर दिया। हम वहां पहुंचे, फातिहा पढ़ी, और अपने शहीदों को श्रद्धांजलि दी चाहे प्रशासन को मंजूर हो या न हो।