भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अपने 75 साल के इतिहास में पहली बार अपने प्रशासनिक कर्मचारियों की सीधी भर्ती और प्रमोशन में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण नीति लागू की है। यह नीति 23 जून, 2025 से प्रभावी है, जिसमें SC के लिए 15% और ST के लिए 7.5% आरक्षण का प्रावधान है। यह नीति रजिस्ट्रार, सीनियर पर्सनल असिस्टेंट, असिस्टेंट लाइब्रेरियन, जूनियर कोर्ट असिस्टेंट, और चैंबर अटेंडेंट जैसे गैर-न्यायिक पदों पर लागू होती है। साथ ही, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए भी आरक्षण लागू किया गया है। यह ऐतिहासिक कदम सामाजिक न्याय और समावेशिता को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण है। इस लेख में हम इस नीति की पृष्ठभूमि, इसके महत्व, और न्यायपालिका में SC/ST प्रतिनिधित्व की स्थिति को आसान भाषा में समझेंगे।
भारत के संविधान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों को सशक्त बनाने के लिए की गई थी। संविधान के अनुच्छेद 15 और 16(4) के तहत सरकार को इन समुदायों के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण प्रदान करने का अधिकार है। केंद्र और राज्य सरकारों के कई विभागों में यह नीति पहले से लागू थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के प्रशासनिक कर्मचारियों के लिए ऐसी कोई औपचारिक व्यवस्था नहीं थी। 24 जून, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें बताया गया कि 200-पॉइंट रोस्टर सिस्टम के तहत SC, ST, और OBC के लिए आरक्षण लागू किया गया है। यह रोस्टर सुप्रीम कोर्ट के आंतरिक नेटवर्क ‘Supnet’ पर अपलोड किया गया है, और कर्मचारी इसे देखकर रजिस्ट्रार (भर्ती) को किसी त्रुटि की जानकारी दे सकते हैं। यह नीति मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई के नेतृत्व में लागू हुई, जो स्वयं SC समुदाय से हैं। CJI गवई ने कहा, “अगर अन्य सरकारी संस्थानों और हाई कोर्ट में SC/ST आरक्षण लागू है, तो सुप्रीम कोर्ट को इससे अलग क्यों रखा जाए? हमारे काम हमारे सिद्धांतों को दर्शाने चाहिए।”
यह नीति कई कारणों से महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, यह सामाजिक समावेशिता को बढ़ावा देती है। SC/ST समुदायों ने लंबे समय तक सामाजिक और आर्थिक भेदभाव का सामना किया है, और सुप्रीम कोर्ट जैसी शीर्ष संस्था द्वारा आरक्षण लागू करना इन समुदायों को मुख्यधारा में लाने का एक बड़ा कदम है। दूसरा, यह न्यायपालिका में विविधता की कमी को दूर करने की दिशा में एक प्रयास है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में SC/ST का प्रतिनिधित्व ऐतिहासिक रूप से कम रहा है। यह नीति प्रशासनिक स्तर पर उनकी भागीदारी बढ़ाएगी, जिससे लंबे समय में न्यायिक प्रक्रियाओं में उनकी आवाज मजबूत हो सकती है। तीसरा, यह संवैधानिक दायित्व को पूरा करता है, क्योंकि अनुच्छेद 16(4) उन समुदायों के लिए आरक्षण की अनुमति देता है जो सरकारी सेवाओं में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते। यह कदम अन्य स्वायत्त संस्थानों के लिए भी एक उदाहरण प्रस्तुत करता है।
न्यायपालिका में SC/ST का प्रतिनिधित्व हमेशा से कम रहा है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम के माध्यम से होती है, जिसमें कोई औपचारिक आरक्षण नीति नहीं है। हालांकि, कॉलेजियम ने समय-समय पर SC/ST समुदायों के व्यक्तियों को नामित किया है, जैसे CJI बी.आर. गवई और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह। फिर भी, इन समुदायों की हिस्सेदारी सीमित है। उदाहरण के लिए, निचली न्यायपालिका (जिला और अधीनस्थ न्यायालयों) में कुछ राज्यों में SC/ST के लिए आरक्षण लागू है, लेकिन कार्यान्वयन में असमानता देखी जाती है। सुप्रीम कोर्ट के प्रशासनिक कर्मचारियों में भी पहले कोई औपचारिक आरक्षण नीति नहीं थी, जिसे अब इस कदम से संबोधित किया गया है। हालांकि, 2006 के एम. नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रमोशन में आरक्षण के लिए सरकार को यह साबित करना होगा कि संबंधित समुदाय पिछड़ा है, उसका प्रतिनिधित्व कम है, और आरक्षण से प्रशासनिक क्षमता प्रभावित नहीं होगी। इस नीति के तहत सुप्रीम कोर्ट ने इन मानदंडों का पालन करते हुए रोस्टर सिस्टम लागू किया है।
इस नीति की आवश्यकता कई कारणों से थी। पहला, यह ऐतिहासिक भेदभाव को सुधारने का प्रयास है। SC/ST समुदायों ने सदियों तक सामाजिक और आर्थिक असमानता का सामना किया है, और संविधान निर्माताओं ने इसे पहचानकर उनके लिए विशेष प्रावधान किए थे। दूसरा, न्यायपालिका में इन समुदायों का कम प्रतिनिधित्व एक गंभीर मुद्दा है। यह नीति प्रशासनिक स्तर पर उनकी भागीदारी बढ़ाकर इस कमी को दूर करने की दिशा में काम करेगी। तीसरा, यह सामाजिक विश्वास को मजबूत करता है। जब SC/ST समुदाय के लोग न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व करते हैं, तो यह उनके बीच विश्वास पैदा करता है कि उनकी आवाज सुनी जा रही है।
इस नीति से जुड़े कुछ अन्य पहलू भी महत्वपूर्ण हैं। 6 जुलाई, 2025 को LawChakra ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST के साथ-साथ OBC, शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों, भूतपूर्व सैनिकों, और स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों के लिए भी आरक्षण लागू किया है। यह नीति 200-पॉइंट रोस्टर सिस्टम के तहत लागू की गई है, जो पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करता है। सामाजिक और राजनीतिक हलकों में इस कदम की सराहना की गई है। कांग्रेस सांसद माणिकम टैगोर ने इसे सामाजिक न्याय की जीत बताया। हालांकि, कुछ चुनौतियाँ भी हैं। कुछ आलोचकों का मानना है कि SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर (आर्थिक रूप से सक्षम लोग) को बाहर करने की चर्चा होनी चाहिए, जैसा कि OBC के लिए होता है। 1 अगस्त, 2024 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में CJI गवई ने सुझाव दिया था कि SC/ST के लिए भी क्रीमी लेयर सिद्धांत लागू हो सकता है, जिसे चार अन्य जजों ने समर्थन दिया था। साथ ही, न्यायिक पदों (जजों) पर SC/ST प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए और कदम उठाने की जरूरत है।
अंततः निष्कर्ष यह है कि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC/ST और OBC के लिए आरक्षण नीति लागू करना एक ऐतिहासिक कदम है। यह सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है और न्यायपालिका में विविधता को प्रोत्साहित करता है। यह नीति केवल एक शुरुआत है। प्रशासनिक और न्यायिक स्तर पर SC/ST और OBC प्रतिनिधित्व को और बढ़ाने के लिए नीतिगत सुधार और प्रभावी कार्यान्वयन की जरूरत है। यह कदम न केवल इन समुदायों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक समान और न्यायपूर्ण भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण है।