
Article
बिहार के पूर्णिया में डायन के नाम पर नरसंहार: अंधविश्वास की जड़ें और समाज की चुप्पी
08 Jul 2025

6 जुलाई 2025 की रात बिहार के पूर्णिया जिले के टेटगामा गांव में एक ऐसी घटना हुई, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। एक ही परिवार के पांच लोगों को गांव की भीड़ ने डायन होने के शक में पहले बेरहमी से पीटा, फिर जिंदा जला दिया। इस हत्याकांड का इकलौता गवाह, परिवार का एक किशोर, किसी तरह भागकर अपनी जान बचाने में कामयाब रहा। उसने पुलिस को बताया कि भीड़ ने रात के अंधेरे में उनके घर को घेर लिया और इस क्रूर वारदात को अंजाम दिया। यह घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि भारत में अंधविश्वास, डायन प्रथा, और सामाजिक अज्ञानता की गहरी जड़ों को उजागर करती है। आइए, इस घटना के कारण, कानून, और सामाजिक स्थिति को समझें और जानें कि इस बुराई को जड़ से खत्म करने के लिए क्या किया जा सकता है।
घटना की जानकारी
- 2022 में भारत में डायन प्रथा के नाम पर 85 हत्याएं दर्ज की गईं।
- 2020 में जादू-टोना और मानव बलि के कारण 88 और 11 मौतें हुईं।
- बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में डायन प्रथा से संबंधित हिंसा के मामले विशेष रूप से अधिक हैं।
- बिहार: बिहार जादू-टोना निषेध अधिनियम, 1999 के तहत डायन प्रथा को बढ़ावा देना या डायन के नाम पर हिंसा करना दंडनीय है। इसके तहत 3 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 103 (हत्या) और धारा 351 (आपराधिक साजिश) के तहत इस मामले में आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक की सजा हो सकती है।
- झारखंड: डायन प्रथा निषेध अधिनियम, 2001 में डायन के आरोप में हिंसा करने पर 3-7 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
- असम, ओडिशा, कर्नाटक, और राजस्थान: इन राज्यों में भी डायन प्रथा के खिलाफ कानून हैं, जिनमें 3-7 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा कानूनों का कमजोर लागू होना और केंद्रीय कानून की कमी इस समस्या को बढ़ावा देती है।
- अफ्रीका: तंजानिया, नाइजीरिया, और घाना जैसे देशों में डायन प्रथा की वजह से हर साल सैकड़ों लोग मारे जाते हैं।
- पापुआ न्यू गिनी: यहां डायन प्रथा (जिसे 'संगुमा' कहा जाता है) के नाम पर दर्जनों लोग मारे जाते हैं।
- नेपाल: तराई क्षेत्र में डायन प्रथा की घटनाएं आम हैं।
- शिक्षा की कमी: टेटगामा जैसे गांवों में स्कूल और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। NCRB की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, डायन प्रथा की 70% घटनाएं उन क्षेत्रों में होती हैं, जहां साक्षरता दर 50% से कम है।
- स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव: ग्रामीण भारत में प्रति 10,000 लोगों पर सिर्फ 1 डॉक्टर उपलब्ध है (विश्व स्वास्थ्य संगठन, 2020)। इस कमी के कारण लोग बीमारी का इलाज ओझाओं और तांत्रिकों से करवाते हैं।
- सामाजिक और आर्थिक कारण: डायन प्रथा का इस्तेमाल अक्सर संपत्ति विवाद, पारिवारिक झगड़े, या सामाजिक बहिष्कार के लिए किया जाता है।
- सांस्कृतिक मान्यताएं: कई समुदायों में जादू-टोने की मान्यता गहरी है, जो ऐसी इवेंट्स को बढ़ावा देती है।
- शिक्षा और जागरूकता: स्कूलों में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना और ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाना जरूरी है।
- स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार: ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बढ़ाने और डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित करने से लोग तांत्रिकों पर निर्भरता कम करेंगे।
- कानून का सख्ती से पालन: मौजूदा कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करना और एक राष्ट्रीय स्तर का डायन-शिकार निषेध कानून बनाना जरूरी है।
- सामाजिक सुधार: महिलाओं को डायन के नाम पर निशाना बनाने की प्रवृत्ति को रोकने के लिए लैंगिक समानता और सामाजिक जागरूकता पर जोर देना होगा।