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बिहार के पूर्णिया में डायन के नाम पर नरसंहार: अंधविश्वास की जड़ें और समाज की चुप्पी

 08 Jul 2025

6 जुलाई 2025 की रात बिहार के पूर्णिया जिले के टेटगामा गांव में एक ऐसी घटना हुई, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। एक ही परिवार के पांच लोगों को गांव की भीड़ ने डायन होने के शक में पहले बेरहमी से पीटा, फिर जिंदा जला दिया। इस हत्याकांड का इकलौता गवाह, परिवार का एक किशोर, किसी तरह भागकर अपनी जान बचाने में कामयाब रहा। उसने पुलिस को बताया कि भीड़ ने रात के अंधेरे में उनके घर को घेर लिया और इस क्रूर वारदात को अंजाम दिया। यह घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि भारत में अंधविश्वास, डायन प्रथा, और सामाजिक अज्ञानता की गहरी जड़ों को उजागर करती है। आइए, इस घटना के कारण, कानून, और सामाजिक स्थिति को समझें और जानें कि इस बुराई को जड़ से खत्म करने के लिए क्या किया जा सकता है।


घटना की जानकारी

पुलिस की जांच के अनुसार, यह हत्याकांड अंधविश्वास से प्रेरित था। गांव में एक बच्चे की बीमारी और मौत के बाद स्थानीय लोगों ने एक परिवार पर जादू-टोना करने का आरोप लगाया। इस आरोप के बाद पंचायत बुलाई गई, जिसमें परिवार को डायन घोषित कर उनकी हत्या का फैसला लिया गया। यह कोई नई बात नहीं है। ग्रामीण भारत में बीमारी, फसल खराब होने या अन्य दुर्भाग्य को अक्सर जादू-टोने से जोड़ दिया जाता है। खासकर महिलाएं - विशेष रूप से विधवाएं, अकेली रहने वाली, या आर्थिक रूप से कमजोर, इस तरह के आरोपों का आसान शिकार बनती हैं। पूर्णिया की इस घटना में भी एक बीमार बच्चे की मौत को बहाना बनाकर एक पूरे परिवार को खत्म कर दिया गया।

डायन प्रथा: डेटा और तथ्य

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े इस समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं: 
  • 2022 में भारत में डायन प्रथा के नाम पर 85 हत्याएं दर्ज की गईं।
  • 2020 में जादू-टोना और मानव बलि के कारण 88 और 11 मौतें हुईं।
  • बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में डायन प्रथा से संबंधित हिंसा के मामले विशेष रूप से अधिक हैं।

झारखंड में डायन प्रथा के नाम पर होने वाली हिंसा के आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं। झारखंड में वर्ष 2022 के 9 महीनों में डायन, तंत्र-मंत्र और जादू के नाम पर 2 दर्जन से ज्यादा हत्याएं हुई थी. मारे गये लोगों में 95 फीसदी महिलाएं थी. पिछले सात वर्षों में डायन-बिसाही के नाम पर झारखंड में हर साल औसतन 35 हत्याएं हुई हैं. अपराध अनुसंधान विभाग (CID) के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में डायन बताकर 46 लोगों की हत्या हुई. साल 2016 में 39, 2017 में 42, 2018 में 25, 2019 में 27, 2020 में 28 और 2021 में 22 हत्याएं हुई हैं. अपराध अनुसंधान विभाग (CID) के अनुसार, 2015 से 2022 तक हर साल औसतन 30-40 हत्याएं डायन प्रथा के नाम पर हुईं। इनमें अधिकांश पीड़ित महिलाएं थीं।

कानून: क्या है स्थिति?

भारत में डायन प्रथा और अंधविश्वास से संबंधित अपराधों को रोकने के लिए कोई केंद्रीय कानून नहीं है, लेकिन कई राज्यों ने अपने स्तर पर कानून बनाए हैं:

  • बिहार: बिहार जादू-टोना निषेध अधिनियम, 1999 के तहत डायन प्रथा को बढ़ावा देना या डायन के नाम पर हिंसा करना दंडनीय है। इसके तहत 3 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 103 (हत्या) और धारा 351 (आपराधिक साजिश) के तहत इस मामले में आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक की सजा हो सकती है।
  • झारखंड: डायन प्रथा निषेध अधिनियम, 2001 में डायन के आरोप में हिंसा करने पर 3-7 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
  • असम, ओडिशा, कर्नाटक, और राजस्थान: इन राज्यों में भी डायन प्रथा के खिलाफ कानून हैं, जिनमें 3-7 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा कानूनों का कमजोर लागू होना और केंद्रीय कानून की कमी इस समस्या को बढ़ावा देती है।  

संयुक्त राष्ट्र (UN) मानवाधिकार परिषद की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2009 से 2019 के बीच 60 देशों में डायन प्रथा के नाम पर 20,000 से अधिक हिंसक घटनाएं दर्ज हुईं।

  • अफ्रीका: तंजानिया, नाइजीरिया, और घाना जैसे देशों में डायन प्रथा की वजह से हर साल सैकड़ों लोग मारे जाते हैं।
  • पापुआ न्यू गिनी: यहां डायन प्रथा (जिसे 'संगुमा' कहा जाता है) के नाम पर दर्जनों लोग मारे जाते हैं। 
  • नेपाल: तराई क्षेत्र में डायन प्रथा की घटनाएं आम हैं।
UN की रिपोर्ट में कहा गया कि डायन प्रथा के नाम पर होने वाली हिंसा मानवाधिकारों का उल्लंघन है और इसे रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर कानून और जागरूकता की जरूरत है।

पूर्णिया कांड: पुलिस और समाज की प्रतिक्रिया

पूर्णिया पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया है। पुलिस अधीक्षक ने एक विशेष जांच दल (SIT) गठित किया है, जो गांव में गवाहों और सबूतों की तलाश कर रहा है। फॉरेंसिक टीम ने हत्या में इस्तेमाल किए गए सामान को जब्त किया है। पुलिस के अनुसार, गांव में डर का माहौल है, और कई ग्रामीण मौके से फरार हो गए हैं। विपक्षी नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस घटना की कड़ी निंदा की है और सख्त कार्रवाई की मांग की है। सामाजिक संगठन अब इस तरह की घटनाओं के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने की मांग कर रहे हैं।

अंधविश्वास के पीछे की वजह

  • शिक्षा की कमी: टेटगामा जैसे गांवों में स्कूल और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। NCRB की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, डायन प्रथा की 70% घटनाएं उन क्षेत्रों में होती हैं, जहां साक्षरता दर 50% से कम है। 
  • स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव: ग्रामीण भारत में प्रति 10,000 लोगों पर सिर्फ 1 डॉक्टर उपलब्ध है (विश्व स्वास्थ्य संगठन, 2020)। इस कमी के कारण लोग बीमारी का इलाज ओझाओं और तांत्रिकों से करवाते हैं। 
  • सामाजिक और आर्थिक कारण: डायन प्रथा का इस्तेमाल अक्सर संपत्ति विवाद, पारिवारिक झगड़े, या सामाजिक बहिष्कार के लिए किया जाता है। 
  • सांस्कृतिक मान्यताएं: कई समुदायों में जादू-टोने की मान्यता गहरी है, जो ऐसी इवेंट्स को बढ़ावा देती है।

इस बुराई को कैसे रोका जाए?

  • शिक्षा और जागरूकता: स्कूलों में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना और ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाना जरूरी है।
  • स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार: ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बढ़ाने और डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित करने से लोग तांत्रिकों पर निर्भरता कम करेंगे। 
  • कानून का सख्ती से पालन: मौजूदा कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करना और एक राष्ट्रीय स्तर का डायन-शिकार निषेध कानून बनाना जरूरी है। 
  • सामाजिक सुधार: महिलाओं को डायन के नाम पर निशाना बनाने की प्रवृत्ति को रोकने के लिए लैंगिक समानता और सामाजिक जागरूकता पर जोर देना होगा।

पूर्णिया का यह हत्याकांड हमें सोचने पर मजबूर करता है कि 21वीं सदी में भी हम अंधविश्वास के अंधेरे में क्यों जी रहे हैं? यह घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि हमारे समाज की उस सोच का दर्दनाक सच है, जो अज्ञानता और अंधविश्वास में डूबी हुई है। इसे रोकने के लिए शिक्षा, कानून, और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देना होगा, ताकि भविष्य में कोई और परिवार इस तरह की क्रूरता का शिकार न बने।