मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मसले पर शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक अहम सुनवाई हुई। इस सुनवाई में हिंदू पक्ष की ओर से शाही ईदगाह को विवादित ढांचा घोषित करने की मांग को लेकर दाखिल की गई याचिका पर अदालत ने फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता महेंद्र प्रताप सिंह की अर्जी को खारिज करते हुए शाही ईदगाह से जुड़ी संपत्ति को विवादित घोषित करने से इनकार कर दिया। कोर्ट के इस निर्णय को हिंदू पक्ष के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
याचिका में क्या कहा गया था?
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा दाखिल याचिका में आग्रह किया गया था कि मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित किया जाए, ठीक वैसे ही जैसे अयोध्या में बाबरी मस्जिद को माना गया था। याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया था कि शाही ईदगाह का निर्माण मूल श्रीकृष्ण जन्मभूमि के गर्भगृह को ध्वस्त करके किया गया था। उनके अनुसार, यह स्थल करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर वहां मंदिर के अस्तित्व के प्रमाण भी मौजूद हैं।
इस याचिका का मुस्लिम पक्ष ने पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कोर्ट में लिखित आपत्ति दाखिल करते हुए कहा कि इस तरह की याचिका न केवल सांप्रदायिक सौहार्द्र को प्रभावित कर सकती है बल्कि पहले से चले आ रहे समझौते और अदालती फैसलों की भी अनदेखी करती है। मुस्लिम पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि शाही ईदगाह और जन्मभूमि ट्रस्ट के बीच 1968 में हुए समझौते को चुनौती देना वैधानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है।
दोनों पक्षों की विस्तृत दलीलें सुनने के बाद, कोर्ट ने इस मामले पर निर्णय सुरक्षित रख लिया था और 4 जुलाई को फैसला सुनाने की तारीख तय की थी। अब इस निर्णय के तहत अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि केवल भावनात्मक या ऐतिहासिक आधार पर किसी संरचना को विवादित ढांचा घोषित नहीं किया जा सकता। इसके लिए ठोस कानूनी और ऐतिहासिक प्रमाणों की आवश्यकता होती है। यह विवाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि और उसके समीप स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर है। हिंदू पक्ष का कहना है कि यह मस्जिद उस स्थल पर बनी है जो भगवान श्रीकृष्ण का मूल जन्मस्थान है। जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह मस्जिद ऐतिहासिक रूप से वैध और पूर्व में हुए समझौते के अंतर्गत स्थापित है।