इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव ने मध्य-पूर्व के हालात को और अधिक जटिल और खतरनाक बना दिया है। बीते सप्ताह इजरायल द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर ताबड़तोड़ हमले किए गए, जिनमें ईरान की सैन्य नेतृत्व वाली टॉप 20 कमांडरों की हत्या भी शामिल है। इन हमलों के बाद इजरायल को उम्मीद थी कि ईरान कमजोर पड़ जाएगा और कड़े जवाब से बचने की कोशिश करेगा, लेकिन अब स्थिति कुछ और ही दिख रही है। ईरान ने तत्काल जवाबी कार्रवाई करते हुए रविवार की रात को इजरायल पर मिसाइलों की बारिश कर दी, जिससे वहां भारी तबाही मची है।
ईरानी मिसाइल हमलों के कारण तेल अवीव समेत कई इलाकों में बड़े पैमाने पर इमारतें गिर गई हैं और कई नागरिक गंभीर रूप से घायल हुए हैं। खबरों के मुताबिक, इन हमलों में 5 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि करीब 100 से ज्यादा घायल हुए हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि तेल अवीव में स्थित अमेरिकी कौंसुलेट भी इस हमले की चपेट में आ गया।
अमेरिकी राजदूत माइक हकाबी ने इस बात की पुष्टि करते हुए बताया कि कौंसुलेट को मामूली नुकसान पहुंचा है, लेकिन वहां के सभी कर्मचारी सुरक्षित हैं। यह घटना इस जंग की गम्भीरता और उसकी अंतरराष्ट्रीय प्रभाव को दर्शाती है।
इजरायल ने भी कड़ा रुख अपनाया है। देश के रक्षा मंत्री इजरायल काट्ज ने स्पष्ट किया कि ईरान को इस हमले की भारी कीमत चुकानी होगी। उन्होंने आरोप लगाया कि ईरान ने जानबूझकर इजरायली नागरिकों को निशाना बनाया है, जो कायरता और आतंक का प्रतीक है। काट्ज ने कहा कि ईरान के तानाशाहों ने इजरायली नागरिकों पर हमला किया है और अब इसका जवाब तानाशाही के गढ़ तेहरान में दिया जाएगा।
दूसरी ओर, तेहरान में आम जनता खौफ और अस्थिरता के माहौल में जी रही है। पेट्रोल पंपों और गैस स्टेशनों पर लंबी कतारें लगी हैं, क्योंकि लोग बड़े पैमाने पर शहर छोड़कर दूर-दराज के इलाकों में जाने की कोशिश कर रहे हैं।
तेहरान की सड़कों पर भारी ट्रैफिक जाम है और लोग भयभीत होकर सुरक्षित ठिकानों की ओर भाग रहे हैं। आम नागरिकों के लिए यह समय बेहद मुश्किल और अनिश्चितता से भरा हुआ है।
इस खूनी संघर्ष में अब तक 224 ईरानी मारे जा चुके हैं, साथ ही बड़ी संख्या में लोग घायल हैं। दूसरी ओर, ईरानी हमलों में 14 इजरायली मारे गए हैं और लगभग 400 से अधिक नागरिक घायल हुए हैं। इस विनाशकारी जंग का कोई भी पक्ष फिलहाल सीजफायर की ओर नहीं बढ़ रहा है, और न ही किसी भी देश ने शांति वार्ता की पहल की है।
इजरायल और ईरान के बीच बढ़ती तनाव की इस पृष्ठभूमि में, अमेरिका की प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण रही है। अमेरिका ने एक तरफ यह साफ किया है कि इजरायल के हमलों में उसकी कोई भूमिका नहीं है, जबकि दूसरी तरफ अमेरिकी अधिकारियों ने इजरायल के हमले को अत्यंत सटीक और प्रभावी बताया है। यह दर्शाता है कि अमेरिका इस संघर्ष में एक तरह से इजरायल के पक्ष में खड़ा है, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर तनाव और भी बढ़ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह संघर्ष केवल दो देशों के बीच सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति संतुलन की लड़ाई है। ईरान इस जंग को अपने अस्तित्व और क्षेत्रीय वर्चस्व की लड़ाई के रूप में देख रहा है और किसी भी हालत में कमजोर पड़ना नहीं चाहता। उसकी प्रतिक्रिया में यह स्पष्ट है कि वह हर हाल में अपनी सैन्य और रणनीतिक ताकत का प्रदर्शन करना चाहता है।
हालांकि, तनाव कम करने और युद्ध को खत्म करने के लिए कुछ कूटनीतिक पहलें भी हो रही हैं।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दोनों देशों से शांति वार्ता की मेज पर आने की अपील की है, लेकिन फिलहाल इस अपील का कोई ठोस परिणाम नहीं निकला है।
इस स्थिति में मध्य-पूर्व की सुरक्षा और स्थिरता को लेकर वैश्विक स्तर पर गंभीर चिंताएं बढ़ रही हैं। लंबे समय से जारी इस संघर्ष का कोई तत्काल अंत नहीं दिख रहा है, और अगर समय रहते कोई कूटनीतिक समाधान नहीं निकला तो इसका असर न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक शांति और सुरक्षा पर भी पड़ सकता है।