मिडिल ईस्ट एक बार फिर युद्ध की आग में जल रहा है। इजरायल और ईरान के बीच बढ़ता तनाव अब खुली जंग में तब्दील हो गया है। दोनों देश एक-दूसरे को पूरी तरह खत्म करने के इरादे से मैदान में उतर चुके हैं। 13 जून की सुबह इजरायल ने ईरान पर भीषण हवाई हमला किया। 'ऑपरेशन राइजिंग लॉयन' नाम के इस सैन्य अभियान में 200 फाइटर जेट्स की मदद से ईरान के 300 से अधिक सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया गया। तेहरान समेत कई शहरों में विस्फोटों की गूंज सुनाई दी और आसमान धुएं से भर गया।
इस हमले में ईरान के 100 से अधिक नागरिकों के मारे जाने की पुष्टि हुई है। मारे गए लोगों में ईरानी सेना के चीफ ऑफ स्टाफ, आईआरजीसी (IRGC) प्रमुख और देश के टॉप न्यूक्लियर वैज्ञानिक भी शामिल बताए जा रहे हैं। हालात की गंभीरता को देखते हुए ईरान ने पूरे देश में आपातकाल लागू कर दिया और अपने एयरस्पेस को बंद कर दिया है।
इजरायल की इस आक्रामक कार्रवाई के जवाब में ईरान ने भी जवाबी हमलों की झड़ी लगा दी। 13 जून की रात ईरान ने ‘ट्रू प्रॉमिस 3’ के तहत 100 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं। ये मिसाइलें इजरायल की राजधानी तेल अवीव समेत कई अहम शहरों में गिरीं, जिससे पूरे देश में रेड अलर्ट जारी कर दिया गया।
इन हमलों में अब तक एक व्यक्ति की मौत और 65 से अधिक लोगों के घायल होने की खबर है। हमलों की तीव्रता को देखते हुए लाखों नागरिकों को बंकरों में शरण लेनी पड़ी।
इस सैन्य टकराव का असर अब कूटनीति पर भी साफ दिखने लगा है। ईरान ने अमेरिका पर इजरायली हमले का समर्थन करने का आरोप लगाया है और कहा है कि वाशिंगटन ने "लक्ष्मण रेखा" पार कर दी है। ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बघेई ने कहा,
"अब अमेरिका के साथ कूटनीति की कोई संभावना नहीं बची है। इजरायल ने अमेरिकी समर्थन से हमला किया है, और अब उसे अंजाम भुगतना होगा।"