Article

यूपी पंचायत चुनाव : योगी सरकार की 'सनक' ने उजाड़ दिए 550 अध्यापकों के परिवार

 30 Apr 2021

कोरोना संकट के बीच चुनावी रैलियों पर रोक न लगाने पर पिछले दिनों मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को फटकार लगाते हुए उसे महामारी की दूसरी वेव का जिम्मेदार बताया था। और कहा था कि क्यों न जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाया जाए। अब ये खबर देखिए। उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में ड्यूटी करते वक्त 550 अध्यापकों की मौत हो गई। ये आंकड़ा तीसरे चरण तक का है। चौथे चरण और 2 मई को होने वाली मतगणना के बाद ये संख्या हजार पार कर जाए तो ताज्जुब नहीं करिएगा। इसको देखने बाद एकबार फिर से मद्रास हाईकोर्ट का कथन याद आ गया- क्यों न जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाया जाए। 

ऐसा नहीं है कि ये सभी मौत एकसाथ हो गई। लेकिन हां पहले स्तर के चुनाव के वक्त ही आंकड़े आने शुरु हो गए। तमाम अध्यापकों ने चिट्ठी लिखी, बताया कि उनकी तबियत खराब है लेकिन प्रशासन ने कह दिया कि चुनाव में जाना है तो जाना है। भले वहां से लाश ही आए। गोंडा जिले के रविंद्र जायसवाल की कहानी कुछ ऐसी ही है। वह बीमार थे लेकिन चुनावी 19 अप्रैल को चुनावी ड्यूटी में जाना था। गए और बूथ से उनकी लाश आई। पत्नी इंद्रावती रोते रोते बेसुध हो जाती हैं। बेटी बस इतना कहती है कि मैं मां से पापा को ड्यूटी पर नहीं जाने को कहती रही लेकिन वह चले गए। 

दर्दनाक कहानियों की लंबी श्रंखला है. सुल्तानपुर के रमेश कुमार यादव और जौनपुर के सुनील कुमार सिंह लंबी जद्दोजहद के बाद दिसंबर 2020 में संपन्न हुई 69 हजार शिक्षक भर्ती में चयनित हुए थे। सरकारी नौकरी का पहला वेतन भी नहीं प्राप्त हुआ था और कोरोना से अपनी जान गवां बैठे। वाराणसी के अनंत कुमार राय 9 अप्रैल को इलेक्शन ट्रेनिंग ड्यूटी में गए। वहां से लौटे तो थका हुआ महसूस करने लगे। लेकिन उनकी दबाओं के डिस्ट्रिब्यूशन और दूसरे कामों में लगा दिया गया। तबियत खराब होती गई। वाराणसी के तमाम अस्पतालों का चक्कर लगाने के बाद टाटा के कैंसर संस्थान में भर्ती किया गया जहां 23 अप्रैल को मौत हो गई। 

मीडिया से बात करते वक्त अनंत के ससुर आरएस राय फूटफूटकर रोने लगे। वह कहते हैं कि मीडिया श्मशान घाट की चिताओं को दिखा रहा है। अस्पतालों में शवों को दिखा रहा है लेकिन खामियों को नहीं दिखा रहा है। मीडिया का काम खामियों को उजागर करना है लेकिन इस वक्त टीआरपी बटोरने पर ही ध्यान है। श्रावस्ती में शशांक सिंह की पत्नी संगीता सिंह प्रेग्नेंट थी। दो बच्चों की मां बनने वाली थी। 10 अप्रैल को ट्रेनिंग पर गई थी तो बीमार हो गई। लिखकर दिया कि सांस फूल रही है चुुनावी ड्यूटी कैंसिल कर दी जाए। संगीता बहुत रोई लेकिन अफसर नहीं माने। 17 तारीख को संगीता की मौत हो गई। यही कहानी फैजाबाद के नमन कुमार आकाश की है। नमन बीमार थे। ड्यूटी कैंसिल करवाने बात कही तो जवाब आया रिजाइन दे दो। घर पर बैठो। इन सबके बीच शिक्षक संघ बेचारा बना ये सब देखता रहा। 

कितनी घटनाएं बताऊं। हर घटना में असीम दर्द छिपा हुआ है। सब कुछ एक सरकार की सनक के चलते हो रहा है। महामारी के बीच प्रशिक्षण से लेकर मतपेटी जमा करने तक कर्मचारी इतनी भीड़ का सामना करता है कि संक्रमण से बचे रहना उसके लिए संभव ही नहीं है। सोशल डिस्टेंसिंग तो यहां सिर्फ एक जुमला साबित होता है। हमारे एक अध्यापक मित्र के मुताबिक- यूपी सरकार का मतलब योगी आदित्यनाथ है। वन मैन आर्मी टाइप। एकबार फैसला ले लिया तो पीछे हटना बेइज्जती समझते हैं इसके लिए चाहे जितने लोगों के प्राण ही क्यों न चले जाएं। अध्यापक दोस्त कहता है कि शुरु से ही डिमांड की जा रही थी कि कम से कम प्रशिक्षण ऑनलाइन करवा दीजिए इससे बड़ी गैदरिंग से बचा जा सकता था लेकिन कब किसी की सुना जो सुन लेते। 

यूपी का पंचायत चुनाव ऐतिहासिक रहा। कभी न भूलने वाला। इतिहास जब कभी इस चुनाव को याद करेगा तो देखेगा कि कैसे एक गैरजरूरी चुनाव के लिए हजारों की संख्या में कर्मचारियों के प्राणों की आहुति दी गई। असल में ये ठंडे दिमाग से किए गए कत्ल हैं। जिसे लोग प्रचार और प्रोपेगेंडा में फंसकर भले ही भूल जाएं लेकिन चुनाव में जान गंवाने वाले कर्मचारियों के परिजन और जान हथेली पर लेकर ड्यूटी करने वाले कर्मचारी ये सब कभी नहीं भूल पाएंगे। 

यह भी पढ़ें - मुख्तार अंसारी की क्राइम हिस्ट्री, परिवार के कहने पर चलता तो नहीं बनता पूर्वांचल का सबसे बड़ा डॉन