पाकिस्तान इन दिनों अपने नेताओं के विवादित बयानों से उपजे संकट को संभालने में जुटा हुआ है। ताजा मामला उसके रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के शिमला समझौते पर दिए गए विवादास्पद बयान का है, जिसमें उन्होंने इसे "मृत दस्तावेज" और "सिर्फ एक कागज का टुकड़ा" करार दिया था। इस बयान के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने सफाई देते हुए कहा है कि भारत के साथ किसी भी द्विपक्षीय समझौते को रद्द करने का कोई निर्णय नहीं लिया गया है। इस स्पष्टीकरण का उद्देश्य भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश देना है कि पाकिस्तान अब भी कूटनीतिक प्रक्रियाओं को लेकर गंभीर है।
गौरतलब है कि ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए थे। इन घटनाओं के जवाब में पाकिस्तान ने शिमला समझौते को खत्म करने की धमकी दी थी। हालांकि, इस पर कोई ठोस कदम उठाने से पहले ही पाकिस्तान को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी।
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारत के हालिया बयानों और कार्रवाइयों के चलते आंतरिक चर्चाएं तेज हुई हैं। लेकिन अब तक शिमला समझौते समेत किसी भी द्विपक्षीय समझौते को रद्द करने का औपचारिक निर्णय नहीं लिया गया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सभी मौजूदा समझौते प्रभावी बने हुए हैं।
रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक टेलीविजन बहस में न केवल शिमला समझौते की आलोचना की, बल्कि भारत के साथ मौजूदा तनाव पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि दोनों देश 1948 की स्थिति पर वापस आ गए हैं और अब इन विवादों को बहुपक्षीय मंचों या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुलझाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, उन्होंने सिंधु जल संधि पर भी सवाल उठाते हुए इसे निलंबित करने का सुझाव दिया।
बहस के दौरान ख्वाजा आसिफ ने यह चौंकाने वाला बयान दिया कि पाकिस्तान ने तीन दशकों तक अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों के लिए आतंकवादी समूहों का समर्थन, प्रशिक्षण और वित्तपोषण किया। उन्होंने इसे पाकिस्तान की "गलती" बताया और स्वीकार किया कि इस नीति का खामियाजा देश को भुगतना पड़ा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ख्वाजा आसिफ के इन बयानों से पाकिस्तान की कूटनीतिक साख को बड़ा झटका लगा है। उनके बयानों से यह साफ होता है कि पाकिस्तान आंतरिक और बाहरी दबावों के बीच फंसा हुआ है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी पाकिस्तान पर लगातार यह दबाव बना रहा है कि वह अपने पड़ोसी देशों के साथ शांति बनाए और आतंकवाद के प्रति अपनी नीतियों में बदलाव करे।
दक्षिण एशिया में भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर टिप्पणी करते हुए ख्वाजा आसिफ ने यह भी कहा कि क्षेत्र के कई देश शांति बहाली की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
इसके बावजूद भारत के साथ पाकिस्तान के संबंधों में सुधार होता नहीं दिख रहा। उनका बयान इस बात का भी संकेत देता है कि पाकिस्तान अब भी भारत के साथ अपने रिश्तों में सुधार के लिए कोई ठोस रणनीति अपनाने में असमर्थ है।
इस पूरे प्रकरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि पाकिस्तान को अपनी नीति और नेतृत्व पर आत्ममंथन करने की आवश्यकता है। खासकर ऐसे समय में, जब देश राजनीतिक और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। शिमला समझौते जैसे महत्वपूर्ण कूटनीतिक दस्तावेजों को लेकर दिए गए गैर-जिम्मेदाराना बयान पाकिस्तान की स्थिति को और कमजोर कर सकते हैं।