बिहार में आरक्षण सीमा बढ़ाने की मांग को लेकर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को खुला पत्र लिखते हुए गंभीर आरोप लगाए हैं। तेजस्वी ने सोशल मीडिया पर पत्र साझा करते हुए कहा कि नीतीश सरकार महागठबंधन के समय तय की गई 65% आरक्षण सीमा को 9वीं अनुसूची में शामिल कराने में नाकाम रही है।
तेजस्वी यादव ने अपने पत्र में मुख्यमंत्री से मांग की है कि बिहार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर कुल 85% आरक्षण के लिए विधेयक पारित किया जाए और उसे संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को तीन सप्ताह के भीतर भेजा जाए।
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार ऐसा नहीं करती है, तो राज्यभर में वंचित वर्गों के हित में एक व्यापक जन आंदोलन शुरू किया जाएगा।
तेजस्वी यादव ने पत्र में लिखा कि महागठबंधन सरकार के दौरान 2023 में जातिगत गणना पूरी की गई थी। इसके आधार पर राज्य में पिछड़े, अति पिछड़े, दलित और आदिवासी वर्गों को 65% आरक्षण तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को 10% आरक्षण देने का विधेयक पारित किया गया था। इस तरह कुल आरक्षण 75% तक पहुंच गया था।
हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने इसे इस आधार पर खारिज कर दिया कि जातियों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व का वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया था।
तेजस्वी ने पत्र में कहा कि अब समय आ गया है कि सर्वदलीय समिति गठित कर वैज्ञानिक अध्ययन कराया जाए और उसी आधार पर नया आरक्षण विधेयक पारित कर उसे संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल किया जाए, ताकि “आरक्षण विरोधी ताकतों और भाजपा सरकार” को इसे दोबारा चुनौती देने का मौका न मिले।
तेजस्वी ने यह भी सवाल उठाया कि क्या भाजपा और आरएसएस की सोच से प्रभावित मौजूदा सरकार नहीं चाहती कि बिहार के वंचित तबकों को पर्याप्त आरक्षण मिले?
तेजस्वी ने आरोप लगाया कि नीतीश सरकार इस मुद्दे को जानबूझकर लटका रही है। उन्होंने दावा किया कि महागठबंधन सरकार के 17 महीनों के दौरान लाखों युवाओं को नौकरी दी गई और 3.5 लाख पदों पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू की गई थी।