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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने छीना शेख मुजीबुर रहमान से 'राष्ट्रपिता' का दर्जा

 04 Jun 2025

शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश की राजनीति में उथल-पुथल थमने का नाम नहीं ले रही। अब अंतरिम सरकार ने देश के संस्थापक और स्वतंत्रता सेनानी शेख मुजीबुर रहमान से 'राष्ट्रपिता' की उपाधि वापस ले ली है। इस ऐतिहासिक फैसले को लागू करने के लिए स्वतंत्रता सेनानी परिषद अधिनियम (National Freedom Fighters Council Act) में संशोधन किया गया है। 


इससे पहले अंतरिम सरकार ने शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीरों को नई करेंसी नोटों से हटा दिया था। अब इस नए अध्यादेश के जरिए कानून की उन धाराओं को पूरी तरह हटा दिया गया है, जिनमें 'राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान' का उल्लेख था। बांग्लादेश मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक, 'मुक्ति संग्राम' की परिभाषा में भी संशोधन करते हुए शेख मुजीब के स्वतंत्रता संग्राम में नेतृत्व के उल्लेख को हटा दिया गया है। संशोधित अधिनियम के अनुसार, मुजीबनगर सरकार से जुड़े एमएनए (राष्ट्रीय विधानसभा सदस्य) और एमपीए (प्रांतीय विधानसभा सदस्य), जिन्हें पहले स्वतंत्रता सेनानी माना जाता था, अब केवल "मुक्ति संग्राम के सहयोगी" की श्रेणी में आएंगे।

अब किन्हें मिलेगा 'स्वतंत्रता सेनानी' का दर्जा?

संशोधित कानून के अनुसार, वे लोग जो 26 मार्च से 16 दिसंबर 1971 के बीच, युद्ध प्रशिक्षण में शामिल हुए, भारत में प्रशिक्षण शिविरों में दाखिला लिया, पाकिस्तानी सेना और उनके स्थानीय सहयोगियों के खिलाफ हथियार उठाए, और जो उस समय सरकार द्वारा तय न्यूनतम आयु सीमा में थे, उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा मिलेगा। स्थानीय सहयोगियों में रजाकार, अल-बद्र, अल-शम्स, मुस्लिम लीग, जमात-ए-इस्लामी, नेजाम-ए-इस्लाम और शांति समितियों के सदस्य शामिल हैं।

बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के संस्थापक, और पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली अस्मिता के सबसे बड़े प्रतीक थे। उनका 7 मार्च 1971 का ऐतिहासिक भाषण स्वतंत्रता संग्राम का सूत्रपात माना जाता है। आवामी लीग के नेता के रूप में उन्होंने 1970 के आम चुनाव में भारी जीत हासिल की, लेकिन सत्ता हस्तांतरण से इनकार के बाद 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। भारत के सहयोग से लड़ी गई मुक्ति संग्राम के बाद जब बांग्लादेश आजाद हुआ, तो शेख मुजीब को 'राष्ट्रपिता' की उपाधि दी गई।