बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बड़ा राजनीतिक कदम उठाया है। उन्होंने राज्य में उच्च जातियों के विकास के लिए एक विशेष आयोग के गठन की घोषणा की है, जिसे उच्च जाति आयोग का नाम दिया गया है। इस आयोग का अध्यक्ष भाजपा नेता महाचंद्र प्रसाद सिंह को बनाया गया है, जबकि जनता दल यूनाइटेड (JDU) के मुख्य प्रवक्ता राजीव रंजन को इसका उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। आयोग का कार्यकाल तीन वर्षों का होगा।
गौरतलब है कि बिहार में पहले भी सवर्ण आयोग की स्थापना की गई थी, लेकिन लंबे समय से यह निष्क्रिय था।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अब इसके पुनर्गठन का निर्णय लिया है, जिसे आगामी चुनावों से पहले सामान्य वर्ग के वोटरों को लुभाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
राज्य सरकार ने हाल ही में अल्पसंख्यक आयोग का भी पुनर्गठन किया है। इस आयोग का नेतृत्व अब JDU के पूर्व राज्यसभा सांसद गुलाम रसूल बल्यावी को सौंपा गया है। बल्यावी लंबे समय से वक्फ कानून और अल्पसंख्यक अधिकारों को लेकर मुखर रहे हैं और सरकार की नीतियों की आलोचना करते आए हैं। ऐसे में उन्हें आयोग की जिम्मेदारी सौंपना, राजनीतिक संतुलन साधने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है।
इसके साथ ही राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। शैलेंद्र कुमार को नया अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि सुरेंद्र उरांव उपाध्यक्ष नियुक्त हुए हैं। इसके अलावा प्रेमशिला गुप्ता, तल्लू बासकी और राजू कुमार को आयोग के सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। इस आयोग का कार्यकाल भी तीन साल का होगा।
बिहार में जाति जनगणना पहले ही पूरी हो चुकी है और केंद्र सरकार भी अब राष्ट्रीय स्तर पर इसे लागू करने की दिशा में कदम उठा रही है। ऐसे में नीतीश सरकार द्वारा अगड़ी जातियों के लिए आयोग का गठन उस दिशा में एक प्रतीकात्मक और राजनीतिक रूप से अहम पहल मानी जा रही है।
अब सभी की निगाहें इस पर टिकी हैं कि यह आयोग जातिगत आंकड़ों के आधार पर क्या सिफारिशें करता है और किस तरह से सामान्य वर्ग के लोगों के लिए विकास योजनाएं तैयार की जाती हैं।
चुनावी मौसम में इन तमाम आयोगों का पुनर्गठन साफ तौर पर संकेत देता है कि सरकार सामाजिक समूहों को साधने की व्यापक रणनीति पर काम कर रही है, जिसका असर आने वाले चुनावों में देखने को मिल सकता