भारत सरकार ने एक बार फिर यह पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर से जुड़ा कोई भी मुद्दा पूरी तरह द्विपक्षीय है, और इसका समाधान केवल भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी बातचीत से ही संभव है। किसी तीसरे पक्ष की इसमें कोई भूमिका नहीं हो सकती, और भारत ने हमेशा इसी रुख को अपनाया है। मंगलवार को आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस नीति को दोहराते हुए पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया कि उसे जम्मू-कश्मीर के उस हिस्से को, जिस पर उसने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है (जिसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर या पीओके कहा जाता है), खाली करना ही होगा। उन्होंने कहा कि भारत का यह रुख नया नहीं है, बल्कि लंबे समय से भारत इसी नीति पर अडिग है और इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है, न ही होगा।
रणधीर जायसवाल ने यह भी बताया कि 10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य स्तर पर महत्वपूर्ण बातचीत हुई, जिसमें दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (डीजीएमओ) के बीच संघर्षविराम को लेकर सहमति बनी।
दिलचस्प बात यह रही कि इस बातचीत की पहल पाकिस्तान की तरफ से हुई थी। उस दिन सुबह 12:37 बजे पाकिस्तान ने भारत से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन तकनीकी कारणों से वे हॉटलाइन का इस्तेमाल नहीं कर सके। इसके बाद, भारतीय पक्ष ने उपलब्धता के अनुसार बातचीत का समय 15:35 बजे तय किया। यह इस बात का संकेत था कि पाकिस्तान सैन्य दबाव में था और तत्काल संघर्ष विराम चाहता था।
विदेश मंत्रालय ने इस पूरे घटनाक्रम की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह पाकिस्तान की "मजबूरी" थी, क्योंकि उसी दिन सुबह भारतीय वायुसेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान के कई अहम वायुसेना ठिकानों पर अत्यधिक सटीक और प्रभावशाली हमले किए थे। इन हमलों में पाकिस्तान को भारी नुकसान हुआ, जिसकी पुष्टि बाद में कई अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों और सैटेलाइट इमेजरी ने भी की। मंत्रालय ने कहा, “यह भारत की सैन्य शक्ति और रणनीतिक तैयारियों का ही परिणाम था कि पाकिस्तान संघर्ष विराम के लिए तुरंत बातचीत का अनुरोध करने को विवश हुआ।”
प्रवक्ता ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत ने न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि अन्य अंतरराष्ट्रीय साझेदारों को भी यह स्पष्ट संदेश दिया है कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत ने केवल और केवल आतंकवादी ढांचे को निशाना बनाया है। उन्होंने कहा कि भारत की नीति साफ है — यदि पाकिस्तान की तरफ से किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई होती है, तो भारत भी उसी भाषा में जवाब देगा। लेकिन यदि पाकिस्तान अपनी ओर से कोई उकसावे की कार्रवाई नहीं करता, तो भारत भी सैन्य गतिविधियां नहीं बढ़ाएगा। इसी नीति के तहत, ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत से पहले भी पाकिस्तान को यह स्पष्ट रूप से सूचित किया गया था कि भारत आतंकवाद को किसी भी रूप में सहन नहीं करेगा। दुर्भाग्यवश, पाकिस्तान ने उस समय इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया।
अब जब पाकिस्तान को ऑपरेशन सिंदूर के परिणामस्वरूप भारी नुकसान उठाना पड़ा है, तो उसकी सरकार और सेना अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सफाई देने और समर्थन जुटाने में लगी है। लेकिन भारत की सख्त नीति और दृढ़ सैन्य रणनीति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब कोई भी आतंकी दुस्साहस बिना जवाब के नहीं जाएगा।