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पोलाची गैंगरेप केस: संगठित यौन अपराध में छह साल बाद नौ दोषियों को आजीवन कारावास की सजा

 13 May 2025

तमिलनाडु के बहुचर्चित पोलाची यौन उत्पीड़न मामले में आखिरकार छह वर्षों के लंबे इंतजार के बाद न्याय की जीत हुई है। 13 मई 2025 को कोयंबटूर की एक महिला अदालत ने इस मामले में सभी नौ आरोपियों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने यह सजा बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, बार-बार बलात्कार, आपराधिक साजिश, यौन उत्पीड़न और जबरन वसूली जैसे संगीन अपराधों में दी। यह निर्णय न केवल कानूनी प्रणाली की मजबूती को दर्शाता है, बल्कि उन पीड़िताओं के साहस को भी मान्यता देता है जिन्होंने भय और सामाजिक दबाव के बावजूद आवाज उठाई। यह पूरा मामला वर्ष 2019 में सामने आया था, जब पोलाची की एक 19 वर्षीय कॉलेज छात्रा ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। उसने बताया कि उसका परिचित, सबरीराजन (जिसे रिश्वंत के नाम से भी जाना जाता है), उसे मुलाकात के बहाने पोलाची बस स्टॉप पर बुलाकर एक कार में ले गया। वहां पहले से मौजूद तीन अन्य लोगों थिरुनवुक्करसु, सतीश और वसंतकुमार ने मिलकर उसका यौन उत्पीड़न किया। 


आरोपियों ने इस कुकृत्य का वीडियो भी बनाया और बाद में उसे ब्लैकमेल करने लगे, पैसे और यौन संबंध की मांग करते रहे। पीड़िता ने प्रारंभ में डर और सामाजिक शर्मिंदगी के कारण अपने परिवार को कुछ नहीं बताया, लेकिन जब आरोपियों की धमकियां बढ़ने लगीं, तो उसने अपने भाई को पूरी घटना बताई। इस मामले की गंभीरता तब और बढ़ गई जब पीड़िता के भाई ने आरोपियों की गतिविधियों की जांच की और उनके फोन से कई और महिलाओं के वीडियो बरामद किए। इन वीडियो को पुलिस को सौंपा गया, जिससे खुलासा हुआ कि यह केवल एक घटना नहीं थी, बल्कि एक बड़े संगठित रैकेट का हिस्सा थी। आरोपियों ने वर्षों तक सैकड़ों महिलाओं को शिकार बनाया था, जिन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से फंसाया गया और फिर धमकी व वीडियो के माध्यम से शोषण किया गया। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, इस रैकेट में लगभग 275 महिलाओं के वीडियो शामिल थे, जिनमें छात्राएं, प्रोफेशनल महिलाएं और यहां तक कि शिक्षकाएं भी थीं। राज्य स्तर पर मामला तूल तब पकड़ने लगा जब यह सामने आया कि आरोपियों में से एक, नागराज, सत्ताधारी पार्टी एआईएडीएमके से जुड़ा हुआ था और उसने पीड़िता के भाई पर हमला करने की कोशिश की थी। 

इसके बाद विपक्षी पार्टियों, खासकर डीएमके, ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए। विपक्ष का आरोप था कि सरकार आरोपियों को बचाने का प्रयास कर रही है और पुलिस ने जानबूझकर पीड़िता की पहचान उजागर कर अन्य पीड़िताओं को डराने की कोशिश की। डीएमके सांसद कनिमोझी ने इस मुद्दे को लेकर बड़ा विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें सैकड़ों कॉलेज छात्र-छात्राएं शामिल हुए। जैसे-जैसे जनता में आक्रोश बढ़ता गया और मीडिया में मामला गर्माने लगा, तमिलनाडु सरकार को अंततः इस केस को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंपना पड़ा। सीबीआई ने मामले की गहन जांच की और सभी नौ आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत जुटाए। जांच के दौरान थिरुनवुक्करसु के फार्महाउस से कई दस्तावेज, एक डायरी और करीब 30 सीडी मिलीं, जिनमें से अधिकांश में यौन उत्पीड़न के वीडियो रिकॉर्ड थे। जांच एजेंसी ने इन सामग्रियों को अदालत में पेश किया, जिन्हें सबूत के रूप में स्वीकार कर लिया गया।

इन नौ दोषियों को 2019 से ही सलेम सेंट्रल जेल में रखा गया था और सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि उन्होंने न केवल बलात्कार किया, बल्कि ब्लैकमेलिंग और हिंसा के लिए सुनियोजित ढंग से एक गिरोह की तरह काम किया। अदालत ने उनके अपराधों को अत्यंत जघन्य और समाज विरोधी मानते हुए उन्हें अधिकतम सजा दी। यह सजा केवल इन नौ लोगों के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि इस प्रकार के अपराधों को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस कांड की सबसे दर्दनाक परिणति यह रही कि पोलाची शहर की सामान्य लड़कियों को भी समाज में उपेक्षा और भेदभाव का सामना करना पड़ा। सोशल मीडिया पर उनकी छवि धूमिल की गई और कहा गया कि पोलाची की लड़कियों से विवाह नहीं किया जाना चाहिए। इससे कई परिवार सामाजिक शर्मिंदगी से बचने के लिए अपनी बेटियों की जल्दबाजी में शादी करने लगे, भले ही वे इस मामले से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े न रहे हों।