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भूमि विवादों में फंसी जनता: बिहार के डीसीएलआर की निष्क्रियता से बढ़ रही समस्याएं

 05 May 2025

बिहार के विभिन्न अनुमंडलों में कार्यरत भूमि सुधार उप समाहर्ता (DCLR) की कार्यशैली इन दिनों सरकार के लिए परेशानी का कारण बनती जा रही है। इन अधिकारियों पर आरोप है कि वे जमीन से संबंधित मामलों की सुनवाई के बाद भी निर्णय को महीनों तक "सुरक्षित" रख देते हैं, जिससे संबंधित पक्षकारों को अपने मामलों की स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती। जब तक फैसला सार्वजनिक नहीं होता, तब तक कोई भी पक्ष अपील की प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकता, जिससे न्याय पाने की प्रक्रिया बाधित होती है। यह स्थिति सिर्फ कुछ दिनों की नहीं बल्कि कई महीनों तक बनी रहती है, जिससे आम लोग लंबे समय तक मानसिक और प्रशासनिक तनाव में रहते हैं। डीसीएलआर के समक्ष आने वाले मुकदमे, जो आमतौर पर भूमि विवाद, म्यूटेशन और दाखिल-खारिज जैसे मामलों से जुड़े होते हैं, पहले ही वर्षों तक लंबित रहते हैं। और जब इनकी सुनवाई होती है, तो निर्णय देने के बाद भी उसे सार्वजनिक करने में अनावश्यक देरी की जाती है। 


यह देरी न्याय की अवधारणा और लोगों के विश्वास को ठेस पहुँचाती है। नियम के अनुसार, जब किसी मामले की सुनवाई पूरी हो जाती है, तो निर्णय अधिकतम 15 दिनों के भीतर सार्वजनिक कर देना चाहिए। फिर भी राज्य के लगभग सभी जिलों – पटना, सारण, रोहतास, गया, दरभंगा, छपरा आदि – में यह नियम अमल में नहीं आ रहा है। डीसीएलआर फैसला देने के बाद उसे महीनों तक ‘रिजर्व’ कर रखते हैं, जिससे पक्षकारों को यह तक नहीं पता चलता कि उन्हें न्याय मिला या नहीं। सरकार की ओर से बार-बार निर्देश दिए गए हैं कि राजस्व विभाग से संबंधित सभी सेवाएं पूरी तरह ऑनलाइन उपलब्ध हैं, जिससे जनता को आसानी हो। लेकिन इसके बावजूद अनुमंडल और अंचल कार्यालयों में लोगों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि कई अधिकारी जानबूझकर ऑनलाइन प्रणाली में गड़बड़ियाँ करते हैं, ताकि लोग परेशान होकर फिजिकली कार्यालय का रुख करें और वहाँ अधिकारियों की मनमानी का शिकार बनें। हाल ही में राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की एक समीक्षा बैठक में मंत्री संजय सरावगी ने इस लापरवाही पर गहरी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि डीसीएलआर को प्राथमिकता देकर कोर्ट से जुड़े मामलों की सुनवाई पूरी करनी चाहिए और लंबित मामलों का शीघ्र निपटारा करना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कई अनुमंडलों में एक साल से भी अधिक पुराने मामले अब तक लंबित हैं, जो बिल्कुल अस्वीकार्य है। मंत्री ने यह निर्देश भी दिया कि म्यूटेशन अपील संबंधी मामलों का समयबद्ध निष्पादन सुनिश्चित किया जाए। 

 विभाग के अपर सचिव दीपक कुमार सिंह ने अधिकारियों को निर्देशित किया कि फैसलों को बैक डेट में अपलोड न किया जाए। डिजिटल हस्ताक्षर की तिथि और अपलोडिंग की तिथि एक ही होनी चाहिए, जिससे पारदर्शिता बनी रहे। यदि किसी अधिकारी द्वारा इस नियम का उल्लंघन किया जाता है, तो उसे चिह्नित कर विभागीय कार्रवाई की जाएगी। वर्तमान स्थिति यह दर्शाती है कि भले ही सरकार तकनीक का सहारा लेकर राजस्व प्रशासन को पारदर्शी और सरल बनाना चाहती हो, लेकिन जब तक फील्ड में तैनात अधिकारी ईमानदारी और संवेदनशीलता से अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं करेंगे, तब तक आम लोगों को राहत नहीं मिल पाएगी।