नोएडा स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने रविवार को बड़ी सफलता हासिल करते हुए सेक्टर-3 इलाके से नीट-यूजी जैसी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं में फर्जीवाड़ा करने वाले एक शातिर गैंग का भंडाफोड़ किया है। इस गैंग का सरगना समेत तीन सदस्यों को गिरफ्तार किया गया है, जो देशभर के छात्रों और उनके अभिभावकों को ठगने में लगे थे। एसटीएफ को गुप्त सूचना मिली थी कि कुछ लोग खुद को एजुकेशन कंसल्टेंट बताकर नीट जैसी परीक्षा में अभ्यर्थियों को पास करवाने का झांसा दे रहे हैं और इसके बदले में लाखों रुपये वसूल रहे हैं। ये आरोपी अभ्यर्थियों की जगह सॉल्वर बैठाने के साथ-साथ ओएमआर शीट्स में हेरफेर करने का दावा करते थे।
पकड़े गए तीनों आरोपियों की पहचान दिल्ली निवासी विक्रम कुमार साह (लक्ष्मी नगर), अनिकेत कुमार और धर्मपाल सिंह (सागरपुर) के रूप में हुई है। इनके पास से छह मोबाइल फोन, चार पर्सनल मोबाइल, दो फर्जी आधार कार्ड, पैन कार्ड, डेबिट और क्रेडिट कार्ड, पासपोर्ट, अभ्यर्थियों की डेटा शीट्स, चेकबुक, एक ऐप्पल मैकबुक और एक लग्ज़री फॉर्च्यूनर कार बरामद की गई है।
एसटीएफ के अनुसार, यह गिरोह वर्षों से देशभर में फैले प्रतियोगी परीक्षा केंद्रों को निशाना बना रहा था। मुख्य आरोपी विक्रम कुमार साह मूल रूप से बिहार के दरभंगा का निवासी है और उसने 2011 में विनायक मिशन यूनिवर्सिटी, चेन्नई से बायोटेक्नोलॉजी में स्नातक की पढ़ाई की थी। यहीं उसकी मुलाकात अनिकेत से हुई, जिसके बाद दोनों ने मिलकर शिक्षा क्षेत्र में धोखाधड़ी करने की योजना बनाई। प्रारंभ में उन्होंने एनजीओ की आड़ में 30 प्रतिशत कमीशन पर छात्रों को मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन दिलवाने का काम शुरू किया।
इसके बाद वे दिल्ली शिफ्ट हो गए और 'एडमिशन व्यू' नाम से फर्जी कंपनी बनाकर बड़े पैमाने पर ठगी करने लगे। गिरोह का तीसरा सदस्य धर्मपाल सिंह, परीक्षा केंद्रों पर सॉल्वर बैठाने की जिम्मेदारी निभाता था। गिरोह पहले परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों की निजी जानकारी और शैक्षणिक रिकॉर्ड्स जुटाता था। फिर वे अभिभावकों से संपर्क कर कहते थे कि उनके बच्चे को नीट जैसी परीक्षा में आसानी से पास करा सकते हैं, इसके लिए उन्हें पांच लाख रुपये की रकम देनी होगी।
गिरोह का दावा होता कि वे परीक्षा से पहले ओएमआर शीट में सही उत्तर भरवा देंगे या सॉल्वर से पेपर हल करवा देंगे। कई बार अभिभावकों से पूरी रकम पहले ही वसूल ली जाती थी, और जब छात्र का चयन नहीं होता, तो न तो पैसे वापस किए जाते और न ही संपर्क साधा जाता।
कई मामलों में जब अभिभावकों ने दबाव बनाया, तो आरोपी अपने ठिकानों से फरार हो जाते थे और नए नाम या फर्जी पहचान के साथ ठगी का खेल किसी और जगह शुरू कर देते थे।
जांच में यह भी सामने आया कि वर्ष 2023 में इस गिरोह ने 'श्रीयनवी एजुकेशन ओपीसी प्राइवेट लिमिटेड' नाम से एक नई फर्जी कंपनी की शुरुआत की, जिससे उनकी ठगी का दायरा और भी बड़ा हो गया। इस कंपनी के जरिए भी देशभर के छात्रों से लाखों रुपये की ठगी की गई। पुलिस अब इस बात की भी जांच कर रही है कि इन आरोपियों के संपर्क में और कितने सॉल्वर या फर्जी दस्तावेज तैयार करने वाले लोग जुड़े हुए हैं। इसके अलावा जिन छात्रों को इस गिरोह के माध्यम से फर्जी तरीके से एडमिशन मिला था, उनकी भी पहचान की जा रही है ताकि संस्थागत स्तर पर हुई धांधली का भी पर्दाफाश किया जा सके।
इस ऑपरेशन को अंजाम देने वाले अधिकारियों में अपर पुलिस अधीक्षक राज कुमार मिश्रा और निरीक्षक नवेंद्र कुमार की विशेष भूमिका रही। पुलिस का कहना है कि गैंग के अन्य सदस्यों और संभावित नेटवर्क की तलाश तेजी से की जा रही है और जल्द ही अन्य गिरफ्तारियां भी हो सकती हैं।
यह मामला एक बार फिर दर्शाता है कि किस तरह प्रतियोगी परीक्षा प्रणाली को धोखेबाज गिरोहों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है और कैसे संगठित अपराधी शिक्षा व्यवस्था में सेंध लगाने का प्रयास कर रहे हैं।
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