Article

सुप्रीम कोर्ट ने समृद्ध अवैध कॉलोनियों के नियमितीकरण पर उठाए सवाल, एमसीडी को जारी किए निर्देश

 30 Apr 2025

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी दी है, जिसमें उसने कहा कि अनधिकृत झुग्गीवासियों की सुरक्षा के लिए कुछ उदार कदम उठाए जा सकते हैं, लेकिन समृद्ध अवैध कॉलोनियों को संरक्षण देना गंभीर चिंता का विषय है। यह बयान तब दिया गया, जब कोर्ट एक याचिका की सुनवाई कर रहा था, जो अवैध निर्माणों से जुड़ी थी। याचिका में वसंत कुंज में श्री साईं कुंज जैसी कॉलोनियों में हो रहे अवैध निर्माण पर सवाल उठाए गए थे। यह मामला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ के सामने था, जिन्होंने मामले की गहरी समीक्षा की और एक दिशा-निर्देश जारी किया। कोर्ट ने दिल्ली सरकार, केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने उनसे दो महीने के भीतर यह स्पष्ट करने के लिए हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया कि समृद्ध अनधिकृत कॉलोनियों के नियमितीकरण और संरक्षण का क्या औचित्य है। इस मामले की गंभीरता इसलिए बढ़ गई है क्योंकि इन समृद्ध कॉलोनियों में उच्च वर्ग के लोग रहते हैं, जिनमें राजनेता, व्यवसायी, नौकरशाह और सेवानिवृत्त रक्षा अधिकारी शामिल हैं। इन कॉलोनियों के नियमितीकरण का विषय केवल एक कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि यह राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी संवेदनशील बन गया है। 


इन कॉलोनियों में अवैध निर्माणों के संरक्षण की कोशिशें, और विशेष रूप से समृद्ध वर्गों के लिए नियमितीकरण की मांग, सुप्रीम कोर्ट के सामने चिंता का कारण बन गई है। कोर्ट ने इस संदर्भ में कहा कि यदि समृद्ध वर्गों के लिए अवैध कॉलोनियों का नियमितीकरण किया जाता है, तो यह बुनियादी कानूनों और विनियमों का उल्लंघन होगा और शहरी नियोजन में व्यवधान उत्पन्न करेगा। एमसीडी द्वारा दाखिल की गई स्टेटस रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया कि श्री साईं कुंज कॉलोनी में कुल 126 फ्लैट्स हैं। इनमें से केवल 10 फ्लैट्स ही 2014 के विशेष प्रावधान अधिनियम के तहत संरक्षित पाए गए हैं, जबकि 116 फ्लैट अवैध पाए गए हैं। एमसीडी ने बताया कि बाकी 88 फ्लैट्स के लिए नोटिस जारी करने की प्रक्रिया चल रही है। इसके साथ ही, एमसीडी ने पीएम-उदय योजना का हवाला भी दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि 2019 में बनाए गए नियमों के तहत समृद्ध अवैध कॉलोनियां पीएम-उदय योजना के दायरे से बाहर हैं। 

 कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि श्री साईं कुंज जैसी समृद्ध कॉलोनियों को पीएम-उदय योजना के तहत नियमित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ये कॉलोनियां उच्च वर्ग के लोगों द्वारा बसाई गई हैं और इन पर लागू नियमों के तहत इन्हें नियमित करने का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने एमसीडी से यह सवाल भी पूछा कि उसने पीएम-उदय योजना का हवाला क्यों दिया, जबकि उसे यह स्पष्ट था कि श्री साईं कुंज एक समृद्ध कॉलोनी है। इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने एमसीडी को आदेश दिया कि वे एक सप्ताह के भीतर बाकी अवैध फ्लैट्स को नोटिस जारी करें और इस प्रक्रिया को शीघ्र समाप्त करें। इस मामले में एमिकस क्यूरी (न्यायमित्र), वरिष्ठ अधिवक्ता एस गुरु कृष्ण कुमार ने भी अपनी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि समृद्ध अवैध कॉलोनियों के निर्माण को नियमित करना कानून की स्थिति को कमजोर करने जैसा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अधिकारियों ने श्री साईं कुंज और अन्य समृद्ध कॉलोनियों में अवैध निर्माणों को बढ़ावा दिया है, जो कि पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा कि इससे नागरिक अव्यवस्था फैलती है और शहरी नियोजन पर गंभीर दबाव पड़ता है। 

कोर्ट ने इस पर जोर दिया कि जब तक समृद्ध अवैध कॉलोनियों को नियमित किया जाता रहेगा, तब तक यह शहरी बुनियादी ढांचे पर दबाव बनाए रखेगा, और इससे नागरिक व्यवस्था में गड़बड़ी हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि समृद्ध वर्गों द्वारा बसाई गई अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने का प्रयास शहरी नियोजन में एक बड़ी खामी को जन्म देगा। यह एक गंभीर समस्या है, क्योंकि इससे नागरिक बुनियादी ढांचे पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा और शहरी विकास की योजनाओं में असंतुलन पैदा होगा। कोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाया और कहा कि इस तरह के अवैध निर्माणों को संरक्षण देना शहरी विकास की दृष्टि से पूरी तरह गलत है। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी रूप में अवैध निर्माणों को नियमित करना, विशेष रूप से समृद्ध वर्गों द्वारा स्थापित कॉलोनियों में, एक गलत परंपरा को बढ़ावा देने जैसा होगा। इससे न केवल कानून का उल्लंघन होगा, बल्कि यह अन्य नागरिकों के लिए भी नजीर बनेगा कि वे भी अवैध निर्माण कर सकते हैं और बाद में उन्हें नियमित करा सकते हैं। कोर्ट के इस फैसले के बाद अब दिल्ली नगर निगम और अन्य संबंधित अधिकारियों के लिए यह चुनौती होगी कि वे समृद्ध अवैध कॉलोनियों को नियमित करने के लिए कोई वैध और कानूनी प्रक्रिया अपनाएं। साथ ही, यह भी देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन कैसे किया जाता है और क्या इससे अवैध निर्माणों को नियंत्रित किया जा सकेगा।