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नेहा सिंह राठौर और डॉ. माद्री काकोटी पर देशद्रोह की जांच तेज, सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर विवाद

 30 Apr 2025

लोक गायिका नेहा सिंह राठौर और लखनऊ विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफेसर डॉ. माद्री काकोटी के खिलाफ दर्ज देशद्रोह के मामलों की जांच को उत्तर प्रदेश पुलिस ने गंभीरता से लेते हुए तेज कर दिया है। दोनों पर हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले को लेकर सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणियां करने का आरोप है, जिसे आधार बनाकर देशद्रोह की धाराओं में केस दर्ज किया गया है। हजरतगंज पुलिस द्वारा नेहा सिंह राठौर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बाद, अब इस मामले में कवि और वादी अभय प्रताप सिंह का बयान दर्ज कर लिया गया है। पुलिस ने उनसे एक्स (पूर्व ट्विटर) पर की गई पोस्ट का स्क्रीनशॉट और अन्य डिजिटल साक्ष्य एकत्र किए हैं। साथ ही, साइबर क्राइम सेल को भी इस जांच में शामिल किया गया है जो नेहा के सोशल मीडिया अकाउंट्स, उनके फॉलोअर्स, री-पोस्ट करने वालों और विशेष रूप से पाकिस्तान से जुड़े सोशल मीडिया हैंडल्स की गतिविधियों की बारीकी से जांच कर रही है। 


 पुलिस यह भी पता लगाने की कोशिश कर रही है कि उनके सोशल मीडिया पोस्ट पर पाकिस्तान से किन-किन अकाउंट्स से प्रतिक्रिया दी गई, किन्होंने इसे शेयर किया या री-पोस्ट किया। इसके अलावा यह भी देखा जा रहा है कि पूर्व में इस हैंडल से किस प्रकार की सामग्री पोस्ट या डिलीट की गई है। इस संबंध में साइबर विशेषज्ञों की टीम फोरेंसिक स्तर पर डेटा स्कैनिंग और डिजिटल ट्रेसिंग कर रही है। जल्द ही नेहा सिंह राठौर को पुलिस द्वारा पूछताछ के लिए नोटिस जारी किया जाएगा। उधर, लखनऊ विश्वविद्यालय की शिक्षिका डॉ. माद्री काकोटी के खिलाफ हसनगंज थाने में दर्ज मुकदमे की जांच भी तेजी से आगे बढ़ रही है। पुलिस ने एक्स कंपनी से उनके सोशल मीडिया अकाउंट की गतिविधियों और उनके पोस्ट को री-पोस्ट करने वाले यूजर्स की डिटेल मांगी है। मामले में वादी व अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के महानगर सहमंत्री जतिन शुक्ला से भी पोस्ट की प्रमाणिकता से संबंधित स्क्रीनशॉट और अन्य दस्तावेज मांगे गए हैं। 

 इंस्पेक्टर हसनगंज के अनुसार, माद्री काकोटी के खिलाफ जुटाए गए डिजिटल साक्ष्य और बयान के आधार पर ही अगली कार्रवाई तय की जाएगी। वहीं दूसरी ओर, इस मामले को लेकर विरोध की भी आवाज़ें बुलंद होने लगी हैं। जन संस्कृति मंच (जसम) ने दोनों ही मामलों में एफआईआर दर्ज करने और नोटिस जारी करने की कड़ी निंदा की है। मंच ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया और मांग की कि दर्ज मामले तुरंत वापस लिए जाएं। जसम के उत्तर प्रदेश इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने बयान जारी करते हुए कहा कि सरकार और प्रशासन, असहमति की आवाज़ों को दबाने के लिए सत्ता और कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने भी विरोध दर्ज कराया है। 

पार्टी के जिला प्रभारी रामेश सिंह सेंगर ने कहा कि यह घटनाएं लोकतंत्र के मूलभूत मूल्यों के खिलाफ हैं और सरकार को इन मामलों की निष्पक्ष जांच कराते हुए दोषियों की जवाबदेही तय करनी चाहिए, न कि बौद्धिक और सांस्कृतिक व्यक्तित्वों को निशाना बनाना चाहिए। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए यह स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में इस पर और राजनीतिक व कानूनी बहस हो सकती है। यह घटनाक्रम न केवल सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आज़ादी और उसकी सीमाओं को लेकर बहस को जन्म दे रहा है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा कर रहा है कि क्या किसी की राय या आलोचना को देशद्रोह की श्रेणी में रखा जा सकता है? क्या आप चाहेंगे कि मैं इस केस में इस्तेमाल की गई IPC की धाराओं, साइबर कानून या देशद्रोह से संबंधित कानूनी प्रक्रिया की भी जानकारी दूं?